भोपाल। देश की पहली ट्रांसजेंडर कथक नृत्यांगना देविका देवेन्द्र ने ईटीवी भारत की चीफ रिपोर्टर शिफाली पांडे से खास बातचीत की और अपने ताली से ताल तक के सफर पर विस्तार से प्रकाश डाला. देविका की शिवराज सरकार से मांग है कि, यूपी और दक्षिण भारत के राज्यों की तरह मध्यप्रदेश में भी ट्रांसजेंडर बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए. देविका ने कहा कि, ट्रांसजेंडर भी मुख्यधारा का हिस्सा बनना चाहते हैं. लंबे संघर्ष के बाद रेड लाईट से कथक के जरिए लाईम लाईट तक पहुंची देविका ने 14 बरस की उम्र में घर छोड़ दिया, क्योकि वो देविका बनना चाहती थीं और मां बाप की जिद थी कि वो देवेन्द्र ही बने रहें. ईटीवी भारत की गुजारिश पर देविका ने चंद सेकेण्ड में कथक के भावों के जरिए अपनी जिंदगी की कहानी दर्शकों तक पहुंचाई है.
एमपी में भी बनें ट्रांसजेंडर बोर्ड: देश की पहली ट्रांसजेंडर कथक नृत्यांगना देविका देवेन्द्र ने कहा है कि, मध्यप्रदेश सरकार को चाहिए कि 6 लाख से ज्यादा की आबादी वाले ट्रांसजेंडर को उनका हक दिलाने को जल्द से जल्द यहां भी ट्रांसजेंडर बोर्ड का गठन करें. उन्होने कहा कि, जब स्त्री पुरुष सबके अधिकारों की बात होती है, तो फिर ट्रांसजेंडर क्यों वंचित रहें. सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के बावजूद देश के कई राज्यों में इस बोर्ड का गठन होना बाकी है, जिसमें मध्यप्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं.
भावों में देखिए ताली से ताल का सफर: ट्रासंजेंडर देविका बताती हैं, वह 14 बरस की थीं. जब पहली बार मन और शरीर के द्वंद से सामना हुआ. कहती हैं, मेरे भीतर जो संघर्ष चल रहा था, उसे कोई नहीं समझ पाया. माता पिता से कहा, मैं देविका बनकर जीना चाहती हूं देवेन्द्र नहीं. उन्हें ये मंजूर नहीं था, तो आधी रात को घर छोड़ दिया. स्टेशन पर रात बिताई, 14 रुपए लेकर घर से भागी थी, फिर मेरे समुदाय के लोग मुझे ले गए. भीख मांगते रेड लाईट पर आई. उस दिन को याद करते हुए देविका की आंखों में चमक आ जाती है. उन्होनें बताया कि, मैं तो भीख मांगते हुए लोगों का मनोरंजन कर रही थी. उसी दौरान मेरी गुरु कपिला राज शर्मा जी का वहां से गुजरना हुआ. उन्होनें कहा, नृत्य सीखो और उसे जारी रखो. वह एक लम्हा मेरी जिदगी का टर्निंग पाइंट बन गया.
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मर्द को भी दर्द देना चाहिए: ट्रांसजेंडर के रुप में महिला बनना क्यों चुना, इस पर देविका कहती हैं कि समाज में स्त्रियों की जो हालत है. उस लिहाज से आपका सवाल सही है. मन चाही लैंगिकता को संभालना आसान नहीं था. लेकिन प्रकृति भी तो स्त्री है, सृष्टि स्त्री है, स्त्री रुप ही परिपूर्ण है. बेशक ये सही है कि, मर्द को दर्द नहीं होता दर्द सारे औरत के ही हिस्से आएँ हैं. उनके लिए मैं कहती हूं कि मर्द को भी दर्द दे देना चाहिए.
ट्रांसजेंडर के लिए मान्यता की लड़ाई सबसे बड़ी: देविका बताती हैं कि, मैं चाहती हूं हमारे समुदाय के बच्चे बाहर आएं और उन्हें राह मिले. लेकिन अब भी उनके लिए संघर्ष बहुत लंबा है. दूसरी तरफ जिन बच्चों को मैं कथक सिखाती हूं, उनके और हमारे बीच खाई बड़ी है. समाज में इस दीवार को पाटना बेहद जरुरी है. जब तक समाज में ये दूरी खत्म नहीं होगी, ट्रांसजेंडर सहज रुप से समाज का हिस्सा नहीं बन पाएंगे. अगर मैं उनके लिए मिसाल बनी हूं, तो मैं चाहती हूं कि देविका जैसे और किसी बच्चे को सिग्नल पर भीख मांगने की नौबत ना आए. इसके लिए कोशिश सरकार और समाज दोनों को मिलकर करनी होगी.