ETV Bharat / city

लॉकडाउन के बाद डिप्रेशन में जा रहा युवा वर्ग, भविष्य की चिंता और नौकरी की तलाश से बढ़ा तनाव - युवा वर्ग तेजी से कर रहा आत्महत्या

लॉकडाउन के बाद युवा वर्ग तेजी से अवसाद और तनाव का शिकार हो रहा है. क्योंकि कोरोनाकॉल में कई युवाओं की नौकरियां चली गई. तो कई युवाओं को अपने भविष्य की चिंता है. ऐसे में युवा डिप्रेशन की तरफ जा रहा है. जिससे आत्महत्या जैसे गंभीर मामले बढ़ते जा रहे है. ऐसे ही कुछ युवाओं ने ईटीवी भारत से अपने अनुभव शेयर किए जो लॉकडाउन के बाद नौकरी या पढ़ाई छूटने से घर पर बैठे हैं....

bhopal news
भोपाल न्यूज
author img

By

Published : Aug 8, 2020, 7:52 PM IST

भोपाल। कोरोना के चलते देश में लगाए गए लॉकडाउन के परिणाम अब सामने आ रहे हैं. लॉकडाउन से देश का युवा वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ. पिछले चार महीनों में हजारों युवाओं की नौकरियां गई, तो कई युवाओं की की पढ़ाई छूट गई, तो किसी को इंटर्नशिप बीच में छोड़नी पड़ी. लिहाजा घर बैठे युवा तेजी से डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. स्टूडेंट्स को भविष्य की चिंता सता रही है, नॉकरी वालो को नयी नौकरी की तलाश है और जो नॉकरी छोड़ चुके है उन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है. ऐसे में युवा वर्ग अवसाद में जा रहा है. राजधानी भोपाल में भी युवा तनाव और अवसाद का शिकार हो रहे हैं. जिससे आत्महत्या जैसी गंभीर घटनाओं के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं.

लॉकडाउन के बाद डिप्रेशन में जा रहा युवा वर्ग

फैमिली कोर्ट में बढ़ रहे डिप्रेशन से संबंधित मामले

फैमिली कोर्ट में भी ऐसे मामलों की कॉउंसलिंग का अंबार लगा हुआ है. इन दिनों फैमिली कोर्ट में डिप्रेशन से संबंधित मामलों की कॉउंसलिंग चल रही है और ये मामले एक या दो नहीं है. बल्कि दर्जनों मामले है. इन मामलों में ज़्यादातर लोग 18 से 40 वर्ष की उम्र के है और ये वो लोग है जिनके भविष्य पर कोरोना की मार पड़ी है. स्कूल पास होने के बाद जो छात्र पढ़ाई के लिए बाहर नहीं जा पा रहे वो भी मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं, जबकि जो छात्र बाहर से अछे खासे पैकेज पर जॉब छोड़ कर वे भी अपने भविष्य के लिए चिंतिंत है.

इंदौर में रहकर पढ़ाई के साथ-साथ जॉब करने वाली ईशा कहती है कि लॉकडाउन के बाद उनकी पढ़ाई और जॉब दोनों छूट गई. जिससे अब किसी काम में मन नहीं लगता. ईशा कहती है कि उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनका यह पूरा साल खराब हो चुका है. क्योंकि पढ़ाई बीच में छूट गई है. जो कब शुरु होगी इसका कोई अंदाजा नहीं है. हर समय घर में बैठने से अब मन नहीं लगता.

कुछ ऐसी बात करती नजर आती है. अनुभा सोन्हिया जो पुणे की एक कंपनी में जॉब करती थी. उन्हें लगा की लॉकडाउन जल्द खत्म हो जाएगा. लेकिन लॉकडाउन बढ़ता ही गया जिससे अनुभा की जॉब छूट गई. अनुभा कहती है कि उनका कैरियर में एक बड़ा गेप आ गया है. जो कब तक भरेगा कुछ कहा नहीं जा सकता.

जनरल प्रमोशन वाले छात्र भी परेशान

जिन छात्रों को कॉलेज से जनरल प्रमोशन मिला है उनकी भी चिंता बढ़ी हुई है. एमबीए करने वाले अभिषेक मिश्रा कहते है कि उन्हें जनरल प्रमोशन मिला. लेकिन यह चिंता सता रही है कि क्या कंपनियां उन्हें जनरल प्रमोशन के आधार पर जॉब देगी. क्योंकि न तो उनके पास एक्सपीरिंयस और न ही कोई प्रैक्टिकल उन्होंने किया. ऐसे में किसी कंपनी में नौकरी मिलना उन्हें मुश्किल नजर आती है.

पेरेंट्स करा रहे अपने बच्चों की काउसलिंग

आलम यह कि पैरेट्स अपने बच्चों को इस मुश्किल से निकालने के लिए काउंसलरों का दरवाजा खटखटा रहे हैं. फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता रज़ानि कहती है कि इस वक्त युवा बेहद तनाव और अवसाद के दौर से गुजर रहा है. जिनकी देखभाल करना जरुरी है. लेकिन इन मामलों में कॉउंसलिंग करना भी मुश्किल होता है ऐसे मामलों की कॉउंलसिंग लंबे समय तक चलती है. बहुत कम केस ऐसे होते है जहां सफलता मिल पाती है. क्योंकि लोग डिप्रेशन में इतना ज्यादा फ्रस्ट्रेट हो जाते है कि उन्हें कुछ समझ नहीं आता.

ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि यह ये दौर बेहद मुश्किल है, जहां युवाओं को पढाई का टेंशन, भविष्य की चिंता और करियर पर लगा पूर्ण विराम ने उनकी परेशानियां बढ़ा दी है. जानकारों का कहना है कि इस मुश्किल दौर में युवाओं को खुद को नियंत्रित रखना बहुत जरुरी है. जबकि पैरेट्स अपने बच्चों पर पूरा ध्यान रखे. क्योंकि तनाव को दरकिनार नहीं किया जा सकता.

भोपाल। कोरोना के चलते देश में लगाए गए लॉकडाउन के परिणाम अब सामने आ रहे हैं. लॉकडाउन से देश का युवा वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ. पिछले चार महीनों में हजारों युवाओं की नौकरियां गई, तो कई युवाओं की की पढ़ाई छूट गई, तो किसी को इंटर्नशिप बीच में छोड़नी पड़ी. लिहाजा घर बैठे युवा तेजी से डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. स्टूडेंट्स को भविष्य की चिंता सता रही है, नॉकरी वालो को नयी नौकरी की तलाश है और जो नॉकरी छोड़ चुके है उन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है. ऐसे में युवा वर्ग अवसाद में जा रहा है. राजधानी भोपाल में भी युवा तनाव और अवसाद का शिकार हो रहे हैं. जिससे आत्महत्या जैसी गंभीर घटनाओं के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं.

लॉकडाउन के बाद डिप्रेशन में जा रहा युवा वर्ग

फैमिली कोर्ट में बढ़ रहे डिप्रेशन से संबंधित मामले

फैमिली कोर्ट में भी ऐसे मामलों की कॉउंसलिंग का अंबार लगा हुआ है. इन दिनों फैमिली कोर्ट में डिप्रेशन से संबंधित मामलों की कॉउंसलिंग चल रही है और ये मामले एक या दो नहीं है. बल्कि दर्जनों मामले है. इन मामलों में ज़्यादातर लोग 18 से 40 वर्ष की उम्र के है और ये वो लोग है जिनके भविष्य पर कोरोना की मार पड़ी है. स्कूल पास होने के बाद जो छात्र पढ़ाई के लिए बाहर नहीं जा पा रहे वो भी मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं, जबकि जो छात्र बाहर से अछे खासे पैकेज पर जॉब छोड़ कर वे भी अपने भविष्य के लिए चिंतिंत है.

इंदौर में रहकर पढ़ाई के साथ-साथ जॉब करने वाली ईशा कहती है कि लॉकडाउन के बाद उनकी पढ़ाई और जॉब दोनों छूट गई. जिससे अब किसी काम में मन नहीं लगता. ईशा कहती है कि उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनका यह पूरा साल खराब हो चुका है. क्योंकि पढ़ाई बीच में छूट गई है. जो कब शुरु होगी इसका कोई अंदाजा नहीं है. हर समय घर में बैठने से अब मन नहीं लगता.

कुछ ऐसी बात करती नजर आती है. अनुभा सोन्हिया जो पुणे की एक कंपनी में जॉब करती थी. उन्हें लगा की लॉकडाउन जल्द खत्म हो जाएगा. लेकिन लॉकडाउन बढ़ता ही गया जिससे अनुभा की जॉब छूट गई. अनुभा कहती है कि उनका कैरियर में एक बड़ा गेप आ गया है. जो कब तक भरेगा कुछ कहा नहीं जा सकता.

जनरल प्रमोशन वाले छात्र भी परेशान

जिन छात्रों को कॉलेज से जनरल प्रमोशन मिला है उनकी भी चिंता बढ़ी हुई है. एमबीए करने वाले अभिषेक मिश्रा कहते है कि उन्हें जनरल प्रमोशन मिला. लेकिन यह चिंता सता रही है कि क्या कंपनियां उन्हें जनरल प्रमोशन के आधार पर जॉब देगी. क्योंकि न तो उनके पास एक्सपीरिंयस और न ही कोई प्रैक्टिकल उन्होंने किया. ऐसे में किसी कंपनी में नौकरी मिलना उन्हें मुश्किल नजर आती है.

पेरेंट्स करा रहे अपने बच्चों की काउसलिंग

आलम यह कि पैरेट्स अपने बच्चों को इस मुश्किल से निकालने के लिए काउंसलरों का दरवाजा खटखटा रहे हैं. फैमिली कोर्ट की काउंसलर सरिता रज़ानि कहती है कि इस वक्त युवा बेहद तनाव और अवसाद के दौर से गुजर रहा है. जिनकी देखभाल करना जरुरी है. लेकिन इन मामलों में कॉउंसलिंग करना भी मुश्किल होता है ऐसे मामलों की कॉउंलसिंग लंबे समय तक चलती है. बहुत कम केस ऐसे होते है जहां सफलता मिल पाती है. क्योंकि लोग डिप्रेशन में इतना ज्यादा फ्रस्ट्रेट हो जाते है कि उन्हें कुछ समझ नहीं आता.

ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि यह ये दौर बेहद मुश्किल है, जहां युवाओं को पढाई का टेंशन, भविष्य की चिंता और करियर पर लगा पूर्ण विराम ने उनकी परेशानियां बढ़ा दी है. जानकारों का कहना है कि इस मुश्किल दौर में युवाओं को खुद को नियंत्रित रखना बहुत जरुरी है. जबकि पैरेट्स अपने बच्चों पर पूरा ध्यान रखे. क्योंकि तनाव को दरकिनार नहीं किया जा सकता.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.