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MP Congress Rift: भाजपा में जाएंगे अरुण यादव? कमलनाथ के रवैये से दुखी अरुण यादव का बड़ा फैसला?

गुटबाज़ी और आपसी सिरफुटव्वल कांग्रेस आलाकमान के लिए बड़ा सिरदर्द रहा है. पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के बाद अब मध्यप्रदेश में भी आपसी खींचतान चरम पर पहुंच गई है (Congress factionalism in MP). मध्यप्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता अरुण सुभाष यादव मौजूदा अध्यक्ष कमलनाथ के रवैये से इतना दुखी हैं (Kamalnath Arun Yadav rift) कि जल्द ही पार्टी छोड़ने का ऐलान कर सकते हैं (Arun Yadav to quit Congress). लोकसभा उपचुनाव में खंडवा से अरुण यादव का टिकट कटवाने के बाद से ही कमलनाथ और अरुण यादव के बीच तलवारें खिंची हुई हैं. अरुण यादव के नज़दीकी लोगों का कहना है कि जल्द ही 'नेताजी' ज्योतिरादित्य सिंधिया के नक्शेकदम पर चलते हुए कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम सकते हैं.

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Published : Dec 11, 2021, 3:19 PM IST

Updated : Dec 11, 2021, 4:43 PM IST

arun yadav to join bjp
भाजपा में जाएंगे अरुण यादव

खंडवा । मध्यप्रदेश कांग्रेस में जिस तरह सीनियर नेताओं की अनदेखी हो रही है उसका ख़ामियाज़ा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है. मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में जुटे हैं (Kamalnath Arun Yadav rift). इसमें बड़ा नाम दिग्विजय सिंह के नज़दीकी अरुण यादव का भी है. खंडवा लोकसभा उप-चुनाव में कांग्रेस की हार का ठीकरा अरुण यादव के सिर फोड़ा जा रहा है. खंडवा और बुरहानपुर की जिला इकाइयों को भंग कर दिया गया है जिसके अध्यक्ष अरुण यादव के करीबी थे. साफ है अरुण यादव का कद छोटा करने की कोशिश हो रही है. ऐसे में कयास लगने शुरू हो गए हैं कि अरुण यादव पंचायत चुनाव से पहले बड़ा फैसला ले सकते हैं. ऐसा होता है तो कांग्रेस के लिए ये बड़ा झटका होगा(Arun Yadav to quit Congress).

congress factionalism in mp
मध्यप्रदेश कांग्रेस में गुटबाज़ी

मध्यप्रदेश कांग्रेस में गुटबाज़ी पड़ेगी महंगी (MP Congress Rift)

लगातार अनदेखी से दुखी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अरुण यादव ने खंडवा इलाके में समांतर रूप से किसान आंदोलन करने की तैयारी शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि पीसीसी चीफ कमलनाथ और अरुण यादव के बीच अभी भी अनबन बनी हुई है. यहां तक कि उपचुनाव के बाद अब तक अरुण यादव और कमलनाथ के बीच कोई मुलाकात नहीं हुई है.वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल का मानना है कि खंडवा और बुरहानपुर की जिला इकाइयों को भंग करने का मकसद खंडवा लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की हार का ठीकरा अरुण यादव पर फोड़ा जाना है. बोकिल का कहना है कि इसके अलावा पीसीसी चीफ कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच चल रही लड़ाई में अरुण यादव को मोहरा बनाया जा रहा है क्योंकि खंडवा लोकसभा चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह अरुण यादव की उम्मीदवारी की घोषणा कर चुके थे, बाद में कमलनाथ ने अरुण यादव का टिकट कटवा दिया था. कमलनाथ और अरुण यादव के बीच खटास इस कदर बढ़ चुकी है कि दोनों एक दूसरे का चेहरा देखना पसंद नहीं कर रहे.उपचुनाव के बाद अब तक अरुण यादव और कमलनाथ के बीच कोई मुलाकात नहीं हुई है.

बीजेपी में जाएंगे अरुण यादव?(congress leader arun yadav to join bjp)

वैसे अरुण यादव के बीजेपी में जाने की अटकलें कई महीनों से लग रही हैं. इसने तब ज़ोर पकड़ा था जब दो महीने पहले खंडवा लोकसभा सीट से अचानक अरुण यादव ने अपना नाम वापस ले लिया जबकि उन्होंने उप चुनाव की घोषणा होने से 6 महीने पहले ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी और क्षेत्रों में प्रचार भी शुरू कर दिया था, हालांकि अरुण यादव ने नाम वापस लेने का कारण उन्होंने पारिवारिक बताया था लेकिन इस दौरान किए गए उनके एक ट्वीट ने अरुण यादव की नाराज़गी साफ कर दी थी. इस ट्वीट में अरुण यादव ने लिखा था कि, "मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं, वक्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं,मेरी गली से गुज़रते हैं छुपा के खंजर,रूबरू होने पर सलाम किया करते हैं." उसके बाद कांग्रेस ने राजनारायण पुरनी को अपना उम्मीदवार बनाया था. उपचुनाव में प्रचार के दौरान भी अरुण यादव और उनके समर्थकों की सक्रियता कम रही.नतीजा यह हुआ कि खंडवा लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. उस समय भी अरुण यादव ने बीजेपी में जाने को सिरे से खारिज कर दिया था लेकिन सत्ता के गलियारे में उनके जाने की सुगबुगाहट शांत नहीं हुई है.

पंचायत चुनाव से पहले बड़ा फैसला!

अरुण यादव ने खंडवा बुरहानपुर ज़िला इकाई भंग करने को डाउनप्ले करने की कोशिश की है और इसे रूटीन बदलाव बताया है. खुद को टारगेट करने के सवाल पर उनका कहना था कि मुझे टारगेट करने का मकसद समझ नहीं आता. खंडवा लोक सभा उपचुनाव में मीडिया प्रभारी रहे और कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है कि संगठन में बदलाव की प्रक्रिया चल रही है और नए लोगों को मौका देने के लिए इस तरह के बदलाव किए जा रहे हैं. खंडवा और बुरहानपुर में भी जिला इकाइयां इसी उद्देश्य से भंग की गई हैं. फिलहाल अरुण यादव बीजेपी में जाने से पहले नफा नुकसान का आकलन करने में जुटे हैं. वैसे बीजेपी में जाने पर अरुण यादव को कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिलेगी इसमें शक है लेकिन कांग्रेस को कमज़ोर करने के लिए बीजेपी को अगर अरुण यादव जैसे बड़े नेता को कोई बड़ा पद देना पड़े तो उससे उन्हें इंकार भी नहीं होगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया की मध्यस्थता से ऐसा हो भी सकता है. फिलहाल दिग्विजय सिंह अरुण यादव रोकने की कोशिश में हैं लेकिन लगातार हो रही अनदेखी और अपमान से आहत अरुण यादव अपना दांव पंचायत चुनाव से पहले चलेंगे ऐसा माना जा रहा है. अगर अरुण यादव कांग्रेस छोड़ते हैं तो खंडवा बुरहानपुर समेत कई सीटों पर कांग्रेस की स्थिति कमज़ोर हो सकती है.

खंडवा । मध्यप्रदेश कांग्रेस में जिस तरह सीनियर नेताओं की अनदेखी हो रही है उसका ख़ामियाज़ा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है. मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने में जुटे हैं (Kamalnath Arun Yadav rift). इसमें बड़ा नाम दिग्विजय सिंह के नज़दीकी अरुण यादव का भी है. खंडवा लोकसभा उप-चुनाव में कांग्रेस की हार का ठीकरा अरुण यादव के सिर फोड़ा जा रहा है. खंडवा और बुरहानपुर की जिला इकाइयों को भंग कर दिया गया है जिसके अध्यक्ष अरुण यादव के करीबी थे. साफ है अरुण यादव का कद छोटा करने की कोशिश हो रही है. ऐसे में कयास लगने शुरू हो गए हैं कि अरुण यादव पंचायत चुनाव से पहले बड़ा फैसला ले सकते हैं. ऐसा होता है तो कांग्रेस के लिए ये बड़ा झटका होगा(Arun Yadav to quit Congress).

congress factionalism in mp
मध्यप्रदेश कांग्रेस में गुटबाज़ी

मध्यप्रदेश कांग्रेस में गुटबाज़ी पड़ेगी महंगी (MP Congress Rift)

लगातार अनदेखी से दुखी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अरुण यादव ने खंडवा इलाके में समांतर रूप से किसान आंदोलन करने की तैयारी शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि पीसीसी चीफ कमलनाथ और अरुण यादव के बीच अभी भी अनबन बनी हुई है. यहां तक कि उपचुनाव के बाद अब तक अरुण यादव और कमलनाथ के बीच कोई मुलाकात नहीं हुई है.वरिष्ठ पत्रकार अजय बोकिल का मानना है कि खंडवा और बुरहानपुर की जिला इकाइयों को भंग करने का मकसद खंडवा लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की हार का ठीकरा अरुण यादव पर फोड़ा जाना है. बोकिल का कहना है कि इसके अलावा पीसीसी चीफ कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच चल रही लड़ाई में अरुण यादव को मोहरा बनाया जा रहा है क्योंकि खंडवा लोकसभा चुनाव से पहले दिग्विजय सिंह अरुण यादव की उम्मीदवारी की घोषणा कर चुके थे, बाद में कमलनाथ ने अरुण यादव का टिकट कटवा दिया था. कमलनाथ और अरुण यादव के बीच खटास इस कदर बढ़ चुकी है कि दोनों एक दूसरे का चेहरा देखना पसंद नहीं कर रहे.उपचुनाव के बाद अब तक अरुण यादव और कमलनाथ के बीच कोई मुलाकात नहीं हुई है.

बीजेपी में जाएंगे अरुण यादव?(congress leader arun yadav to join bjp)

वैसे अरुण यादव के बीजेपी में जाने की अटकलें कई महीनों से लग रही हैं. इसने तब ज़ोर पकड़ा था जब दो महीने पहले खंडवा लोकसभा सीट से अचानक अरुण यादव ने अपना नाम वापस ले लिया जबकि उन्होंने उप चुनाव की घोषणा होने से 6 महीने पहले ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी और क्षेत्रों में प्रचार भी शुरू कर दिया था, हालांकि अरुण यादव ने नाम वापस लेने का कारण उन्होंने पारिवारिक बताया था लेकिन इस दौरान किए गए उनके एक ट्वीट ने अरुण यादव की नाराज़गी साफ कर दी थी. इस ट्वीट में अरुण यादव ने लिखा था कि, "मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं, वक्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं,मेरी गली से गुज़रते हैं छुपा के खंजर,रूबरू होने पर सलाम किया करते हैं." उसके बाद कांग्रेस ने राजनारायण पुरनी को अपना उम्मीदवार बनाया था. उपचुनाव में प्रचार के दौरान भी अरुण यादव और उनके समर्थकों की सक्रियता कम रही.नतीजा यह हुआ कि खंडवा लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. उस समय भी अरुण यादव ने बीजेपी में जाने को सिरे से खारिज कर दिया था लेकिन सत्ता के गलियारे में उनके जाने की सुगबुगाहट शांत नहीं हुई है.

पंचायत चुनाव से पहले बड़ा फैसला!

अरुण यादव ने खंडवा बुरहानपुर ज़िला इकाई भंग करने को डाउनप्ले करने की कोशिश की है और इसे रूटीन बदलाव बताया है. खुद को टारगेट करने के सवाल पर उनका कहना था कि मुझे टारगेट करने का मकसद समझ नहीं आता. खंडवा लोक सभा उपचुनाव में मीडिया प्रभारी रहे और कांग्रेस प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है कि संगठन में बदलाव की प्रक्रिया चल रही है और नए लोगों को मौका देने के लिए इस तरह के बदलाव किए जा रहे हैं. खंडवा और बुरहानपुर में भी जिला इकाइयां इसी उद्देश्य से भंग की गई हैं. फिलहाल अरुण यादव बीजेपी में जाने से पहले नफा नुकसान का आकलन करने में जुटे हैं. वैसे बीजेपी में जाने पर अरुण यादव को कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिलेगी इसमें शक है लेकिन कांग्रेस को कमज़ोर करने के लिए बीजेपी को अगर अरुण यादव जैसे बड़े नेता को कोई बड़ा पद देना पड़े तो उससे उन्हें इंकार भी नहीं होगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया की मध्यस्थता से ऐसा हो भी सकता है. फिलहाल दिग्विजय सिंह अरुण यादव रोकने की कोशिश में हैं लेकिन लगातार हो रही अनदेखी और अपमान से आहत अरुण यादव अपना दांव पंचायत चुनाव से पहले चलेंगे ऐसा माना जा रहा है. अगर अरुण यादव कांग्रेस छोड़ते हैं तो खंडवा बुरहानपुर समेत कई सीटों पर कांग्रेस की स्थिति कमज़ोर हो सकती है.

Last Updated : Dec 11, 2021, 4:43 PM IST
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