भोपाल। कोरोना संक्रमण के चलते पिछले 5 महीने से कैंटीन बंद हैं. राजधानी के स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालय और निजी कार्यालय में संचालित होने वाली कैंटीन पिछले 5 माह से बंद पड़ी हैं. शासकीय कार्यालय हो या निजी कार्यालय सभी ने ऑफिस में काम तो चालू कर दिया, लेकिन कैंटीन खोलने की इजाजत नहीं दी. ऐसे में जो लोग सरकारी कार्यालय, स्कूल, कॉलेज और सिनेमाघरों में कैंटीन चलाया करते थे, उनके आगे रोजी-रोटी का संकट आ गया है. दूसरों के पेट का ख्याल रखने वाले कैंटीन संचालक, इन दिनों अपने परिवार का पेट पालने के लिए भटक रहे हैं.
कैंटीन संचालकों पर दोहरी मार
देश में लॉकडाउन को पांच महीने से ज्यादा समय हो चुका है, पिछले 3 माह तक देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन रहा, फिर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बढ़ते कोरोना के मामलों के बीच भी सरकार ने होटल, बाजार, शॉपिंग मॉल्स को खोलने की इजाजत दी, सभी निजी और शासकीय कार्यालय भी खुल चुके हैं, लेकिन जो लोग इन कार्यालय में कैंटीन चलाया करते थे चाय, समोसे, सैन्डविच बेचा करते थे, उन लोगों को इस अनलॉक में भी कोरोना की मार झेलनी पड़ रही है.
वीरान पड़े कैंटीन
ऑफिस में काम करने वाले लोग अब टिफिन का इस्तेमाल कर रहे हैं, वो बाहर कैंटीन का खाना खाकर कोई खतरा नहीं लेना चाहते. यही वजह है कि ऑफिस तो खुल गए, लेकिन ऑफिस में चलने वाली कैंटीन बन्द हैं.
लोग चाय, समोसे अब इग्नोर करने लगे हैं, लेकिन इस वजह से उन लोगों पर रोजी रोटी का संकट आ गया है जो लोग कॉलेजों में छात्रों को गरमा-गरम समोसे और चाय पिलाकर कैंटीन में बैठने पर मजबूर करते थे, स्कूल और कॉलेजों में छात्र लाइब्रेरी से ज्यादा समय कैंटीन में बिताया करते थे और खाने-पीने के साथ पढ़ाई का मजा और फ्रेंड्स के साथ समय व्यतीत करते थे, लेकिन अब ये कैंटीन्स वीरान पड़ी हुई हैं.
राजधानी के कैंटीन संचालकों का कहना है कि सिनेमाघर हो या कोई कार्यालय कैंटीन चलाने वालों की हालत बद से बदतर है. जहां सिनेमा घर पब्लिक से ठसा ठस भरे होते थे, वहीं कैंटीन में 5 रुपये का समोसा 20 तो कहीं 90 रुपये का मिलता था, लेकिन आज 5 रुपये का समोसा भी नहीं बेच पा रहे हैं, क्योंकि न ऑफिस में कैंटीन चलाने की इजाजत मिल रही है और न ही कॉलेजों में, ऐसे में अब इस लॉकडाउन से डर लगने लगा है. जिसके बाद अब कैंटीन संचालक सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.