भोपाल। शिक्षक केवल वो नहीं जो स्कूल-कॉलेज में पढाए बल्कि शिक्षक वो है जो जीने की कला सिखाए. जीवन को नया आकार दे और भविष्य को संवार दे. एक शिक्षक जीवन में बेहद महत्वपूर्ण रोल अदा करता है. शिक्षक न केवल स्कूल या कॉलेज में पढ़ाकर अपना फर्ज अदा करता है, बल्कि हमारे भविष्य को नया आकार भी देता है. ऐसे ही शिक्षक हैं भोपाल के अनिल नागर, जिन्होंने अपने जीवन को छात्रों के लिए समर्पित कर दिया. अनिल नागर भोपाल के माध्यमिक शाला नई जेल शासकीय स्कूल में शिक्षक हैं. जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान देकर अपनी अलग पहचान बनाई है.
अनिल नागर एक पैर से विकलांग हैं, बावजूद इसके वो अपनी इस मजबूरी को अपने काम के बीच नहीं आने देते. अनिल नागर ने कोरोना काल में ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों तक शिक्षा पहुंचाने के लिए दिन-रात एक कर दिया. हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचे, कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे, इसलिए अनिल नागर रोजाना बच्चों के घर जाते हैं और अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर बच्चों को पढ़ाते हैं.
अनिल नागर की पहली पोस्टिंग 2003 में शासकीय माध्यमिक शाला पातलपुर में हुई थी. जहां वो अकेले शिक्षक थे और कक्षा 6वीं से 8वीं तक के छात्रों को अकेले ही पढ़ाते थे. पातलपुर जो कि नजीराबाद से 20 किलो मीटर की दूरी पर है. इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए अनिल नागर रोजाना 20 किलोमीटर पैदल चलकर जाते थे, अनिल नागर बताते हैं कि उनके अंदर शिक्षक बनने की ललक बचपन से ही थी. इसलिए जब वो शिक्षक बने तो उन्होंने हर वो काम किया जो विभाग ने उन्हें दिया और जो बच्चों के हित में था.
अनिल नागर बताते हैं कि जब वो शिक्षक बने तब कई मुसीबतें उनके सामने आईं और इन्हीं मुसीबतों को देखते हुए, उन्होंने गांव में ही एक घर में रहने का फैसला किया और धीरे-धीरे उनके संपर्क गांव वालों से बने. फिर विभाग की मदद से उसी गांव में एक स्कूल के लिए भवन का निर्माण करवाया. उन्होंने बताया आजादी के बाद से उस गांव में कोई स्कूल नहीं था. जब वो स्कूल बना तो गांव वाले बहुत खुश हुए और बच्चे भी बेहद खुश हुए. नागर इसे अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं.
8 साल तक ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के बाद अनिल नागर का ट्रांसफर भोपाल की नई जेल शासकीय माध्यमिक शाला में हुआ. यहां आने के बाद अनिल नागर ने इस स्कूल में स्मार्ट क्लासेस शुरू की. ये भोपाल का पहला स्कूल था, जहां स्मार्ट क्लासेस की शुरुआत हुई. अनिल नागर का उत्साह और उमंग शिक्षा के प्रति इतना है कि उन्होंने इस स्कूल की रूपरेखा ही बदल डाली. आज स्कूल में बच्चे डिजिटल क्लास में पढ़ते हैं और साथ ही 100% अटेंडेंस के साथ स्कूल आते हैं.
आज देशभर में कोरोना संक्रमण के चलते स्कूल बंद हैं. ऐसे में छात्रों की कक्षाएं ऑनलाइन लगाई जा रही हैं. इस कोविड-19 में अनिल नागर ने जो कार्य किया वो वाकई सराहनीय है. जब विभाग ने ऑनलाइन कक्षाओं की घोषणा की तब शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले 60% बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं थे. ऐसे में उपकरणों के अभाव में बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित रह गए. अनिल नागर ने बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने के लिए अपने स्कूल के बच्चों के घर जाकर उन्हें शिक्षा दी. इतना ही नहीं जिन बच्चों के पास रेडियो, टीवी और स्मार्टफोन नहीं हैं, उन बच्चों के लिए उन्होंने व्हाइट बोर्ड खरीदा, साथ ही स्वयं के पैसों से एक साउंड सिस्टम खरीदा और ग्रामीण इलाकों में जाकर साउंड सिस्टम लगाया, माइक पर कक्षाएं लगाईं. जिससे आसपास के बच्चे भी अपने घर बैठकर ही पढ़ सकें.
इस कोरोना काल में शिक्षकों ने ना केवल ऑनलाइन कक्षाएं लगाकर छात्रों को शिक्षा दी. बल्कि गैर शैक्षणिक कार्यों में भी शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई. मजदूरों के लिए चलाई जाने वाली स्पेशल ट्रेन, निर्वाचन कार्य, हॉस्पिटल और कलेक्ट्रेट में भी शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई और इन सभी जगह अनिल नागर ने भी कार्य किया. आज उनके इस जज्बे को देखते हुए, राज्य शिक्षा केंद्र ने कोविड-19 में कार्य करने के लिए उन्हें प्रशंसा पत्र भी दिया.