शहडोल। केंद्र ने जब (ujjwala yojana) उज्जवला योजना (increase price of lpg cylinders)की शुरुआत की तो इससे मिलने वाले लाभ को देखते हुए गरीबों के चेहरे पर मुस्कान थी, उन्हें भी लग रहा था कि अब आग और धुंए से उन्हें मुक्ति मिल जाएगी. वे भी गैस पर खाना बनाएं, स्वस्थ जीवन जीएंगे. शुरुआत में योजना का लाभ भी गरीबों को खूब मिला उन्होंने भी स्कीम को हाथों हाथ लिया. तब गैस सिलेंडर को रिफिल कराने के दाम कम थे. लोग सिलेंडर का इस्तेमाल भी कर रहे थे और रिफलिंग भी करा रहे थे, अचानक से केंद्र की ये योजना उन्हें घाटे का सौदा लगने लगी. पिछले कुछ महीने से गैस के बढ़े हुए दामों ने ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में उज्जवला का दम निकाल दिया है. गैस के बढ़े हुए दाम के चलते ग्रामीण फिर से पुराने दौर में लौट रहे हैं.
रसोई गैस के दाम निकाल रहे दम!
गैर सिलेंडर रिफिल कराने का दाम वर्तमान में 922 रुपये 50 पैसे डिलीवरी चार्ज के देने होते हैं. तब जाकर सिलिंडर के रिफिलिंग होती है. गैस के ये बढ़े हुए दाम पिछले 3-4 महीने से इसी के आसपास बने हुए हैं. इन बढ़े हुए दामों ने ग्रामीणों की परेशानी बढ़ा दी है. पहले तो वे किसी तरह जुगाड़ करके सिलिंडर की रिफिलिंग करा लिया करते थे, लेकिन अब गैस के बढ़े हुए दामों ने उनके घर का सारा बजट बिगाड़ दिया है.
कैसे कराएं गैस की रिफलिंग
उज्जवला योजना से मिले गैस कनेक्शन की क्या स्थिति है. इसे जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम कई गांवों में पहुंची और ग्रामीणों से बात कर योजना की हकीकत पता की. इस दौरान जब हम रामकली बैगा हमें चुल्हे पर खाना पकाते नजर आईं. जब हमने उनसे पूछा कि आपके पास तो गैस कनेक्शन हैं फिर ये सब क्यों तो उनका कहना था कि गैस कनेक्शन मिला हुआ है और एक दो बार उन्होंने रिफिलिंग भी करवाई है, लेकिन तब पैसा कम लगता था अब 1 सिलेंडर लगभग 1 हजार रुपए का पड़ता है, जबकि ₹1000 तो उन्हें टोटल मिलते हैं. ऐसे में वे गैस भरवाएं या घर चलाएं. रामकली कहती हैं कि अगर गैस के दाम कुछ कम हो जाएं तो फिर से सोचेंगी, फिलहाल तो जंगल और लकड़ी ही उनका सहारा है जिससे वह खाना बना रही हैं.
सिलेंडर खाली, लकड़ियों का ही सहारा
कुछ ग्रामीणों से भी हमने बात की तो उन्होंने बताया कि गैस के दाम इतने ज्यादा है उज्जवला से गैस कनेक्शन की रिफलिंग कैसे करवाएं, घर में सिलिंडर खाली पड़े हैं उन्हें कौन और कैसे भरवाएं. गैस का दाम बहुत ज्यादा है. इसलिए उनकी मजबूरी है लकड़ी से चूल्हा जलाकर खाना पकाना. स्थानीय आदिवासी समाज में अच्छी पैठ रखने वाले केशव कोल बताते हैं कि योजना की शुरुआत के वक्त लोग काफी खुश थे. ये काफी खुशी की बात थी लोगों को धुएं से मुक्ति मिल रही थी, लेकिन अब कुछ महीने से कोई भी सिलिंडर रिफिल नहीं करा रहा है. गैस के बढ़े हुए दामों ने लोगों का बजट बिगाड़ दिया है. केशव कोल भी मानते हैं कि अगर उज्जवला के माध्यम से गरीबों को गैस कनेक्शन दिया जाता है तो उसे रिफिल कराने के लिए भी सरकार को कुछ रियायत देने के बारे में सोचना चाहिए.
ग्रामीण क्षेत्रों में काम भी कम मिलता है
हम ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों से मिले तो जाना कि गैस के बढ़े दाम से सब परेशान थे. इस दौरान गैस चूल्हे की रिपरिंग करने वाले एक शख्स ने मुलाकात के दौरान बताया कि वह पिछले 10 साल से यह काम कर रहा है. कुछ महीने पहले तो उन्हें अच्छा काम मिल जाता था, लेकिन अब गांव वाले गैस का उपयोग कम ही करते हैं. इसलिए रिपेयरिंग का काम भी कम ही चल रहा है.मिस्त्री सोनू सिंह भी मानते हैं कि गैस के बढ़े हुए दामों का असर उज्जवला योजना पर पड़ा है और लोग लकड़ी और चुल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हुए हैं.
जंगलों में लकड़ी की कटाई भी बढ़ी
गैस के दाम अधिक होने के बाद लकड़ी पर लोगों की डिपेंडेंसी फिर से बढ़ गई है. लोग लकड़ियों की तलाश में जंगल का रुख कर रहे हैं. ग्रामीण अंचलों में सर्दी और बरसात से पहले इसका स्टॉक किया गया है. जंगल जाना और लकड़ियां लाना अब एक बार फिर से उनका रुटीन बन गया है. कोई लकड़ियां बीन कर काम चला रहा है तो कोई ज्यादा जरूरत होने पर जंगल से लकड़ी काट कर ला रहा है. जिनके पास घरों में लकड़ियों का इंतजाम नहीं हैं तो उनके लिए तो जंगल ही एक सहारा है.
बहुत कम लोग करा रहे रिफिलिंग
ग्रामीण अंचल में संचालित एक रसोई गैस एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक उनके यहां से लगभग 13,000 गैस कनेक्शन को उज्जवला के तहत दिए गए हैं, लेकिन महज 1500 से 2000 लोग ही उज्जवला के सिलेंडर रिफिल करा रहे हैं बाकी लोग रिफिल कराने नहीं आ रहे हैं.
उज्जवला योजना का दम निकालते गैस के बढ़े हुए दाम ग्रामीणों को धुएं से मुक्ति दिलाने के बजाए इस योजना को ही धुंआ-धुआं कर रहे हैं. ऐसे में केंद्र सरकार को अपनी इस योजना की सफलता को लेकर दोबारा सोचना होगा कि जो लोग गैस कनेक्शन नहीं ले सकते थे वे इतने महंगे सिलेंडर की हर महीने रिफलिंग कैसे कराएंगे.