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'सब पढ़े सब बढ़ें' नीचले तबके के बच्चों से अब भी दूर, अभिभावकों ने स्कूल शिक्षा मंत्री को लिखा पत्र - free and compulsory child education

निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अब गरीब बच्चों के लिए दूर की कौड़ी साबित हो रही है. दरअसल ताजा मामला प्रदेश की राजधानी भोपाल का है. यहां बच्चों को इसलिए स्कूल आने से मना किया जा रहा है क्योंकि वे स्कूल की भारी भरकम फीस भरने में सक्षम नहीं है.

भोपाल
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Published : Mar 23, 2019, 5:51 AM IST

भोपाल। निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अब गरीब बच्चों के लिए दूर की कौड़ी साबित हो रही है. दरअसल ताजा मामला प्रदेश की राजधानी भोपाल का है. यहां बच्चों को इसलिए स्कूल आने से मना किया जा रहा है क्योंकि वे स्कूल की भारी भरकम फीस भरने में सक्षम नहीं है.

भोपाल

2011 में शुरू हुई निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा योजना एक ओर गरीब बच्चों के लिए वरदान है लेकिन सीबीएसई स्कूल के प्रबंधकों द्वारा बच्चों से फीस की डिमांड की जा रही है. बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि शहर के नामी स्कूलों की फीस दो लाख से भी ज्यादा है. बच्चे शुरु से सीबीएसई स्कूल में पढ़े हैं, लेकिन अब इतनी फीस नहीं होने के चलते उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ रहा है.

बच्चों के अभिभावकों ने स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभु राम चौधरी और प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा को पत्र इसके लिए पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है. अभिभावकों की मांग है कि बाल शिक्षा अधिनियम को 12वीं तक बढ़ाया जाए. अभिभावकों के मुताबिक बच्चे मोटी फीस की मांग के चलते मानसिक रुप से भी परेशान हो रहे हैं.

गौरतलब है कि आर्थिक रुप से कमजोर परिवार के बच्चों को सरकार ने बाल शिक्षा अधिनियम आरटीई के तहत 2011 में प्राइवेट स्कूलों में निशुल्क दाखिला कराया था. लेकिन यह स्कीम केवल 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए ही है. अब जो बच्चे आठवीं पास कर चुके है, उन बच्चों से स्कूल प्रबंधक फीस की मांग कर रहा है. ऐसे में बच्चों के भविष्य को लेकर परिनजों के सामने संकट खड़ा हो गया है.

भोपाल। निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अब गरीब बच्चों के लिए दूर की कौड़ी साबित हो रही है. दरअसल ताजा मामला प्रदेश की राजधानी भोपाल का है. यहां बच्चों को इसलिए स्कूल आने से मना किया जा रहा है क्योंकि वे स्कूल की भारी भरकम फीस भरने में सक्षम नहीं है.

भोपाल

2011 में शुरू हुई निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा योजना एक ओर गरीब बच्चों के लिए वरदान है लेकिन सीबीएसई स्कूल के प्रबंधकों द्वारा बच्चों से फीस की डिमांड की जा रही है. बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि शहर के नामी स्कूलों की फीस दो लाख से भी ज्यादा है. बच्चे शुरु से सीबीएसई स्कूल में पढ़े हैं, लेकिन अब इतनी फीस नहीं होने के चलते उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ रहा है.

बच्चों के अभिभावकों ने स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभु राम चौधरी और प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा को पत्र इसके लिए पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है. अभिभावकों की मांग है कि बाल शिक्षा अधिनियम को 12वीं तक बढ़ाया जाए. अभिभावकों के मुताबिक बच्चे मोटी फीस की मांग के चलते मानसिक रुप से भी परेशान हो रहे हैं.

गौरतलब है कि आर्थिक रुप से कमजोर परिवार के बच्चों को सरकार ने बाल शिक्षा अधिनियम आरटीई के तहत 2011 में प्राइवेट स्कूलों में निशुल्क दाखिला कराया था. लेकिन यह स्कीम केवल 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए ही है. अब जो बच्चे आठवीं पास कर चुके है, उन बच्चों से स्कूल प्रबंधक फीस की मांग कर रहा है. ऐसे में बच्चों के भविष्य को लेकर परिनजों के सामने संकट खड़ा हो गया है.

Intro:2011 में शुरू हुई बाल शिक्षा अधिनियम आरटीई स्कीम इस स्कीम का लाभ प्रदेश के लाखों बच्चों ने उठाया यह स्कीम 6 साल से 14 वर्ष के बच्चे के लिए है इस स्कीम के तहत गरीब बच्चे सीबीएसई स्कूल में निशुल्क दाखिला ले सकते हैं


Body:बाल शिक्षा अधिनियम आरटीई 2011 के तहत शहर के तमाम विद्यार्थियों ने सीबीएसई स्कूल में एडमिशन लिया इस अधिनियम के तहत जो बच्चे गरीब घर से आते हैं जिनके माता-पिता प्राइवेट सीबीएसई स्कूल की फीस देने में समर्थ नहीं होते हैं वह बच्चे इस अधिनियम के तहत शहर के अच्छे स्कूलों में निशुल्क पढ़ाई कर सकते हैं साल 2011 में शुरू हुई है यह योजना बाल शिक्षा अधिनियम आरटीई के तहत शहर के हजारों विद्यार्थियों ने सीबीएसई स्कूल में निशुल्क दाखिला करवाया किंतु यह स्कीम 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए ही बनी है अब जो बच्चे 14 वर्ष के हो चुके हैं आठवीं कक्षा में पहुंच चुके हैं उन बच्चों को आठवीं के बाद स्कूल में फीस की डिमांड की जा रही है इनमें ज्यादातर बच्चे शहर के नामी स्कूल डीपीएस संस्कार वैली एवं बाल भवन के हैं इन स्कूलों की फीस सालाना दो लाख से ज्यादा है जो बच्चे शुरुआत से सीबीएसई स्कूल में पढ़े अब अचानक जब उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ रहा है तो वे इसके लिए राजी नहीं उनका कहना है कि हम या तो इस स्कूल में पढ़ेंगे या तो हम पढ़ाई ही नहीं करेंगे इस बात से परेशान अभिभावकों ने स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभु राम चौधरी को लिखा पत्र और मांग की बाल शिक्षा अधिनियम को बढ़ाया जाए और 12वीं तक पढ़ाई निशुल्क की जाए अभिभावकों का कहना है कि हमारा बच्चा मानसिक रूप से परेशान हो रहा है जो फैसिलिटी उसे इन सीबीएसई स्कूल में मिल रही थी जैसे कि हॉर्स राइडिंग हॉकी गेम जो कि नेशनल लेवल पर प्रतियोगिता होती थी हमारे बच्चों ने उन्हें पार्टिसिपेट भी किया और वह सिलेक्ट भी हुए लेकिन अब स्कूल छोड़ने के बाद उन्हें इन एक्टिविटी से भी नाता तोड़ना पड़ेगा जिसके लिए बच्चे राजी नहीं है इसके लिए परेशान अभिभावकों ने स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभु राम चौधरी एवं जनसंपर्क मंत्री पी सी शर्मा को पत्र लिखकर उनसे यह मांग की है कि वह उनके बच्चों की मदद करें और इस अधिनियम को बढ़ा कर 12 वीं तक लागू करें


Conclusion:बाल शिक्षा अधिनियम के तहत सीबीएसई स्कूल में पढ़ने वाले वह बच्चे जो अब 14 वर्ष के हो गए हैं उन्हें सीबीएसई का मोह छोड़ सरकारी स्कूल में दाखिला लेना पड़ेगा बाल शिक्षा अधिनियम आरटीई के तहत केवल 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के ही बच्चे इस योजना का लाभ उठा सकते हैं अभिभावकों की चिंता जो बच्चा 6 वर्ष से 14 वर्ष तक सीबीएसई में पड़ा अंग्रेजी में तालीम ली अब सरकारी स्कूल में हिंदी विषयों को कैसे कवर कर पाएगा इसके साथ ही जो तमाम एक्टिविटीज सीबीएसई स्कूल में कराई जाती है वह सरकारी स्कूल में ना मिलने से बच्चा मानसिक रूप से परेशान हैं इसके लिए अभिभावकों ने स्कूल शिक्षा मंत्री प्रभु राम चौधरी को पत्र लिखा और मांग की किस अधिनियम को बढ़ाकर कक्षा बारहवीं तक कर दिया जाए
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