नई दिल्ली : भारतीय देवी-देवताओं के नाम अक्सर किसी न किसी जानवरों के साथ जुड़े हैं. अधिकांश देवी-देवताओं के वाहक के तौर पर उनका नाम जुड़ा होता है. यह हिंदू परंपरा की खासियत रही है कि प्रकृति और जानवर, दोनों की पूजा यहां की जाती है. हालांकि, कई जगहों पर भगवान को खुश करने के नाम पर जानवरों की बलि भी चढ़ाई जाती है. ये अलग बात है कि अब बलि पंरपरा को लेकर विरोध के स्वर उठने लगे हैं. ऐसे में हमें, कुछ उन मंदिरों के बारे में भी जानना चाहिए, जहां पर न सिर्फ जानवरों के आने जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, बल्कि उन्हें भोजन भी कराया जाता है, और उनकी पूजा भी होती है.
केरल के कासरगोड के अनंतपुरा झील मंदिर में आप 'शाकाहारी' मगरमच्छ को देख सकते हैं. यहां आने वाले श्रद्धालु चावल नैवेद्यम चढ़ाते हैं, और यहां का मगरमच्छ उसी प्रसाद को खाता है. यहां के मंदिर में एक मगरमच्छ है, जो 75 साल का है. सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीर भी वायरल है. ऐसा कहा जाता है कि बबिया नाम का मगरमच्छ मंदिर बंद होने के बाद उसके गर्भगृह में भी प्रवेश करता है. भक्तगण इसे लकी मानते हैं. वहां के पंडितों और भक्तजनों ने कभी भी उसका विरोध नहीं किया है.
राजस्थान के बीकानेर के देशनोक कस्बे में स्थित करणी माता मंदिर एक ऐसी जगह है जहां चूहों को रोग फैलाने वाले जानवर के रूप में नहीं, बल्कि पूजनीय माना जाता है. इन्हें कबास कहा जाता है. लगभग 20,000 काले चूहे इस मंदिर में रहते हैं, जहां प्रायः वैसे आगंतुक, जो लंबी यात्रा पर निकलते हैं, अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं.
तमिलनाडु के मदुरै के एक मंदिर में मुर्गो और बैलों को एक साथ देखा जा सकता है. मदुरै अलगार मंदिर में श्रद्धालु गाय के बछड़े को भोजन प्रदान करते हैं. गायों की देखभाल मठों में की जाती है. बैल मंदिर परिसर में यूं ही घूमते रहते हैं.
कर्नाटक के चन्नापटना मंदिर में तो दो कुत्तों की मूर्ति लगी हुई है. लोग इसकी पूजा करते हैं. एक मूर्ति काफी आक्रामक मुद्रा में, जबकि दूसरा शांत मुद्रा में दिखती है. छत्तीसगढ़ में भी एक मंदिर है, जहां पर प्रसाद खाने के लिए हर दिन कई भालू आते हैं. उसके बाद वे मंदिर की नौ बार परिक्रमा कर चले जाते हैं. वे किसी भी श्रद्धालु पर हमला नहीं करते हैं.
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