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Ukraine crisis: रूस व पश्चिम के बीच 'भू-राजनीतिक' संघर्ष का परिणाम

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Published : Feb 14, 2022, 8:28 PM IST

यूक्रेन व रूस, यूक्रेन और नाटो सदस्य देश, यूरोपीय देशों सहित अमेरिका के बीच पिछले कुछ हफ्तों से चल रहा विवाद मूलत: यूक्रेन संकट (Ukraine crisis) के रुप में सामने है. रूस-यूक्रेन संघर्ष को टालने के लिए कूटनीतिक वार्ता चल रही है लेकिन यह सवाल उठ रहा है कि क्या वे डी-एस्केलेशन करेंगे?

Ukraine crisis
यूक्रेन संकट

नई दिल्ली: यूक्रेन संकट (Ukraine crisis) के बीच बाइडेन और पुतिन के बीच वाक युद्ध (The war of words between Biden and Putin) भी जारी है. यूक्रेन संकट को हल करने के लिए वार्ताकारों के बीच वार्ता के बाद कोई ठोस समाधान नहीं (No concrete solution after talks) मिला है. दुनिया डरी हुई स्थिति को देख रही है जो दूरगामी परिणामों के साथ युद्ध में बदल सकती है.

रूस-यूक्रेन के बीच तनाव चरम पर पहुंचने के बाद जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज कीव पहुंचे. क्योंकि बाइडेन प्रशासन ने चिंता जताई है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण किसी भी समय हो सकता है. यह पूछे जाने पर कि क्या यूक्रेन पर रूसी आक्रमण आसन्न है और इसके क्या निहितार्थ होंगे? पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने कहा रूस-यूक्रेन संकट का पूरा प्रकरण रूस और पश्चिम (अमेरिका) के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है.

दुर्भाग्य से इस प्रक्रिया में यूक्रेनियन फंस गए हैं. ऐसा नहीं लगता है कि युद्ध होगा क्योंकि यह कुल मिलाकर रूस के लिए बुरा साबित होगा. रूस और यूक्रेन की संप्रभुता और किसी प्रकार का राजनयिक समायोजन खोजा जाना चाहिए. वाशिंगटन डीसी और पश्चिम के अन्य देशों से आने वाले बयानों से इसे बहुत अधिक प्रचारित किया जा रहा है. मुझे यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का कोई कारण नहीं दिखता क्योंकि यूक्रेन में रणनीतिक दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र क्रीमिया था, जो रूस के पास पहले से ही है और वे इसे वापस नहीं देने जा रहे.

साथ ही रूस भी नहीं चाहता कि उसकी सुरक्षा से समझौता किया जाए. इसलिए इसमें भारी सुरक्षा चिंताएं हैं. अनिल त्रिगुणायत ने कहा कि इस समय कोई आक्रमण नहीं होगा लेकिन युद्ध हो सकता है क्योंकि जिस तरह का प्रचार किया गया है और 1997 में रूस-यूक्रेन के बीच जो समझौता हुआ था, उसका उल्लंघन किया गया है. कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है. त्रिगुणायत जिन्होंने पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका और विदेश मंत्रालय में कांसुलर डिवीजनों में काम किया है, ने ईटीवी भारत को बताया कि हर युद्ध के बाद एक डी-एस्केलेशन होता है, कोई भी युद्ध हमेशा के लिए जारी नहीं रहता है. मुझे उम्मीद है कि पहले तो कोई युद्ध नहीं होगा लेकिन ऐसा लगता है कि दोनों पक्ष किसी तरह के मोडस विवेन्डी पर पहुंच रहे हैं.

हालांकि इस स्तर पर यह क्या कहना मुश्किल होगा. जब हम बात कर रहे हैं तो मुझे नहीं लगता कि युद्ध निकट है. अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो निश्चित रुप से यूक्रेन पर संभावित रूसी आक्रमण सीधे यूरोपीय लोगों को प्रभावित करेगा. क्योंकि वे चिंतित हैं कि क्रेमलिन गैस की आपूर्ति में कटौती करेगा. यह ध्यान देने योग्य है कि यूरोप के कई देश प्राकृतिक गैस और कुछ हद तक तेल आयात के लिए रूस पर निर्भर हैं. इनमें यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण भागीदार है.

इस बीच जैसा कि युद्ध की आशंका ने पूरी दुनिया को घेर लिया है, कई देशों ने पहले ही यूक्रेन में अपने नागरिकों को जल्द से जल्द लौटने के लिए कहा है. इसके बाद भी भारत ने विकासशील यूक्रेन की स्थिति पर चुप रहने का विकल्प चुना है. यूक्रेन में कम से कम 20000 भारतीय छात्र हैं. हालांकि सूत्रों के अनुसार रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष भड़कने की स्थिति में कीव में भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों को निकासी के लिए पंजीकृत कराने के लिए संपर्क किया है. विदेश मंत्रालय ने अभी तक इस पर आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है.

यह भी पढ़ें- India's Foreign Policy: कठिन परिस्थितियों का सामना कर रही भारत की विदेशी नीति

पूर्व राजनयिक त्रिगुणायत ने आगे दोहराया कि भारत अपनी स्थिति में बहुत स्पष्ट है कि वह युद्ध को आगे बढ़ाना पसंद नहीं करेगा. उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि भारत अमेरिका और रूस के बीच कूटनीति के लिए मध्यस्थ बनने में सक्षम होगा. बीते शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने यूक्रेन पर हमला करने पर रूस को गंभीर कीमत चुकाने की चेतावनी दी. उन्होंने दोहराया कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण व्यापक मानवीय पीड़ा पैदा करेगा और रूस की स्थिति को कमजोर करेगा. हालांकि मॉस्को लगातार हमले के दावों का खंडन करता रहा है. साथ ही पूर्वी यूरोपीय सीमाओं पर सेना की तैनाती को तेज करना जारी रखा है जिससे युद्ध का डर पैदा हो गया है.

नई दिल्ली: यूक्रेन संकट (Ukraine crisis) के बीच बाइडेन और पुतिन के बीच वाक युद्ध (The war of words between Biden and Putin) भी जारी है. यूक्रेन संकट को हल करने के लिए वार्ताकारों के बीच वार्ता के बाद कोई ठोस समाधान नहीं (No concrete solution after talks) मिला है. दुनिया डरी हुई स्थिति को देख रही है जो दूरगामी परिणामों के साथ युद्ध में बदल सकती है.

रूस-यूक्रेन के बीच तनाव चरम पर पहुंचने के बाद जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज कीव पहुंचे. क्योंकि बाइडेन प्रशासन ने चिंता जताई है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण किसी भी समय हो सकता है. यह पूछे जाने पर कि क्या यूक्रेन पर रूसी आक्रमण आसन्न है और इसके क्या निहितार्थ होंगे? पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने कहा रूस-यूक्रेन संकट का पूरा प्रकरण रूस और पश्चिम (अमेरिका) के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है.

दुर्भाग्य से इस प्रक्रिया में यूक्रेनियन फंस गए हैं. ऐसा नहीं लगता है कि युद्ध होगा क्योंकि यह कुल मिलाकर रूस के लिए बुरा साबित होगा. रूस और यूक्रेन की संप्रभुता और किसी प्रकार का राजनयिक समायोजन खोजा जाना चाहिए. वाशिंगटन डीसी और पश्चिम के अन्य देशों से आने वाले बयानों से इसे बहुत अधिक प्रचारित किया जा रहा है. मुझे यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का कोई कारण नहीं दिखता क्योंकि यूक्रेन में रणनीतिक दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र क्रीमिया था, जो रूस के पास पहले से ही है और वे इसे वापस नहीं देने जा रहे.

साथ ही रूस भी नहीं चाहता कि उसकी सुरक्षा से समझौता किया जाए. इसलिए इसमें भारी सुरक्षा चिंताएं हैं. अनिल त्रिगुणायत ने कहा कि इस समय कोई आक्रमण नहीं होगा लेकिन युद्ध हो सकता है क्योंकि जिस तरह का प्रचार किया गया है और 1997 में रूस-यूक्रेन के बीच जो समझौता हुआ था, उसका उल्लंघन किया गया है. कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है. त्रिगुणायत जिन्होंने पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका और विदेश मंत्रालय में कांसुलर डिवीजनों में काम किया है, ने ईटीवी भारत को बताया कि हर युद्ध के बाद एक डी-एस्केलेशन होता है, कोई भी युद्ध हमेशा के लिए जारी नहीं रहता है. मुझे उम्मीद है कि पहले तो कोई युद्ध नहीं होगा लेकिन ऐसा लगता है कि दोनों पक्ष किसी तरह के मोडस विवेन्डी पर पहुंच रहे हैं.

हालांकि इस स्तर पर यह क्या कहना मुश्किल होगा. जब हम बात कर रहे हैं तो मुझे नहीं लगता कि युद्ध निकट है. अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो निश्चित रुप से यूक्रेन पर संभावित रूसी आक्रमण सीधे यूरोपीय लोगों को प्रभावित करेगा. क्योंकि वे चिंतित हैं कि क्रेमलिन गैस की आपूर्ति में कटौती करेगा. यह ध्यान देने योग्य है कि यूरोप के कई देश प्राकृतिक गैस और कुछ हद तक तेल आयात के लिए रूस पर निर्भर हैं. इनमें यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण भागीदार है.

इस बीच जैसा कि युद्ध की आशंका ने पूरी दुनिया को घेर लिया है, कई देशों ने पहले ही यूक्रेन में अपने नागरिकों को जल्द से जल्द लौटने के लिए कहा है. इसके बाद भी भारत ने विकासशील यूक्रेन की स्थिति पर चुप रहने का विकल्प चुना है. यूक्रेन में कम से कम 20000 भारतीय छात्र हैं. हालांकि सूत्रों के अनुसार रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष भड़कने की स्थिति में कीव में भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों को निकासी के लिए पंजीकृत कराने के लिए संपर्क किया है. विदेश मंत्रालय ने अभी तक इस पर आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है.

यह भी पढ़ें- India's Foreign Policy: कठिन परिस्थितियों का सामना कर रही भारत की विदेशी नीति

पूर्व राजनयिक त्रिगुणायत ने आगे दोहराया कि भारत अपनी स्थिति में बहुत स्पष्ट है कि वह युद्ध को आगे बढ़ाना पसंद नहीं करेगा. उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि भारत अमेरिका और रूस के बीच कूटनीति के लिए मध्यस्थ बनने में सक्षम होगा. बीते शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने यूक्रेन पर हमला करने पर रूस को गंभीर कीमत चुकाने की चेतावनी दी. उन्होंने दोहराया कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण व्यापक मानवीय पीड़ा पैदा करेगा और रूस की स्थिति को कमजोर करेगा. हालांकि मॉस्को लगातार हमले के दावों का खंडन करता रहा है. साथ ही पूर्वी यूरोपीय सीमाओं पर सेना की तैनाती को तेज करना जारी रखा है जिससे युद्ध का डर पैदा हो गया है.

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