नई दिल्ली : ईंधन की बढ़ती कीमतों को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. उन्होंने कहा कि पिछले सात वर्षों में हमने एक नई आर्थिक पैरडाइम देखा है. एक तरफ नोटबंदी और दूसरी तरफ मोनेटाइजेशन.
उन्होंने कहा कि मोदी जी ने पहले कहा था कि मैं डीमोनेटाइजेशन कर रहा हूं और वित्त मंत्री कहती रहती हैं कि मैं मोनेटाइजेशन कर रही हूं. किसानों, मज़दूरों, छोटे दुकानदार, एमएसएमई, सैलरीड क्लास, सरकारी कर्मचारियों और ईमानदार व्यापारियों का डीमोनेटाइजेशन हो रहा है.
राहुल ने कहा कि रसोई गैस की कीमतों में 116 फीसद की बढ़ोतरी हुई है. राहुल ने कहा कि सरकार ने 23 लाख करोड़ रुपये जीडीपी यानी गैस, डीज़ल, पेट्रोल से कमाए हैं. ये 23 लाख करोड़ रुपये गए कहां?
उन्होंने कहा कि किसान, मजदूर, छोटे और मध्यम व्यवसाय, एमएसएमई, वेतनभोगी वर्ग, सरकारी कर्मचारी और ईमानदार उद्योगपति डी-मोनेटाइजेशन कर रहे हैं. किसे मोनेटाइज किया जा रहा है? नरेंद्र मोदी के 4-5 दोस्त- आर्थिक तबादला हो रहा है.
राहुल गांधी ने कहा कि हमारे समय में अतंरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का दाम आज से 32% ज़्यादा था और गैस का दाम 26% ज़्यादा था. अतंरराष्ट्रीय बाज़ार में गैस, पेट्रोल-डीज़ल के दाम गिर रहे हैं और हिन्दुस्तान में बढ़ते जा रहे हैं. दूसरी तरफ हमारी संपत्तियों को बेचा जा रहा है.
रसोई गैस की कीमतों में 25 रुपये की वृद्धि
इससे पहले सरकार ने आज पेट्रोलियम कंपनियों ने दिल्ली में बिना सब्सिडी वाले 14.2 किलोग्राम के सिलेंडर की कीमत को 884.50 रुपये की वृद्धि की. घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 25 रुपये बढ़ा दी है. नई दरें बुधवार से प्रभावी होंगे.
इससे पहले 18 अगस्त को गैस सिलेंडर की कीमतों में 25 रुपये का इजाफा किया गया था. दिल्ली में अब 14.2 किलोग्राम के गैर-सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में 25 रुपये का इजाफा हुआ है. इस बढ़ोतरी के साथ ही अब दिल्ली में 14.2 किलोग्राम के एलपीजी सिलेंडर का दाम बढ़कर 884.50 हो गया है.
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जीडीपी में 20.1 प्रतिशत की वृद्धि
देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में 20.1 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि दर्ज की गई है. कोविड-19 की खतरनाक दूसरी लहर के बावजूद यह वृद्धि हासिल की गई है. हालांकि, पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही का तुलनात्मक आधार नीचे होने की वजह से इस साल ऊंची वृद्धि हासिल होने में मदद मिली है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के मंगलवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है. इसके मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही में 24.4 प्रतिशत की गिरावट आई थी. सरकार ने पिछले साल कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिये देशव्यापी 'लॉकडाउन' लगाया था.
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इस साल अप्रैल के मध्य में कोविड महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर की रोकथाम के लिये राज्यों के स्तर पर पाबंदियां लगायी गई थीं. हालांकि, इतनी वृद्धि के बाद भी अर्थव्यवस्था कोविड से पहले की स्थिति में नहीं पहुंच पाई है.
मूल्य के हिसाब से सकल घरेलू उत्पाद 2021-22 की अप्रैल-जून तिमाही में 32,38,020 करोड़ रुपये रहा. यह 2019-20 की इसी तिमाही में 35,66,708 करोड़ रुपये से कम है.
बयान में कहा गया है कि 2021-22 की पहली तिमाही के दौरान महामारी की दूसरी लहर की रोकथाम के लिये स्थानीय स्तर पर और सोच-विचाकर लॉकडाउन लगाये गये. इसके तहत जरूरी गतिविधियों को छोड़कर अन्य कार्यों के साथ लोगों की आवाजाही पर भी पाबंदी लगायी गई.
इस पर एक स्वतंत्र शोघकर्ता ने कहा कि अप्रैल-जून तिमाही में कोरोना अपने चरम पर था. लोग ऑक्सीजन की कमी से मरे रहे थे. अस्पतालों में विस्तर उपलब्ध नहीं थे. श्मशान घाटों में शवों को जलाने के लिए लोगों को इंतजार करना पड़ता था. इस दौरान अपने प्रियजनों को बचाने के लिए लोगों ने अपनी संपत्ति तक बेच दी. इस दौरान लगभग 2.5 से 2.8 मिलियन भारतीयों की मौत हो गई.
यह सांख्यिकीय आंकड़ा दर्द को नकारने का काम कर सकती है, लेकिन जीडीपी में पिछले एक साल की तुलना में 20.1 की जोरदार वृद्धि हुई है. यह वृद्धि किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था में विस्तार को मात दे सकती है. क्योंकि 2020 में सेम तिमाही में अर्थव्यवस्था में 24 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. देखा जाए तो कोरोना महामारी से पहले भी अर्थव्यवस्था धीमी थी. जीडीपी में यह वृद्धि दूसरी लहर की पीड़ा को नहीं छिपा सकती है.