नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर उस लंबित जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया गया है, जिसमें दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शनकारियों को हटाने की मांग की गयी है. यह याचिका तब दायर की गयी है, जब एक दिन पहले सिंघु सीमा पर किसान प्रदर्शन स्थल पर एक व्यक्ति का शव मिला जिसका एक हाथ कटा हुआ था. पंजाब के तरण तारण के रहने वाले लखबीर सिंह (35) का शव किसानों के एक प्रदर्शन स्थल के समीप पुलिस के एक अवरोधक से बंधा हुआ मिला. उसके शरीर पर धारदार हथियारों से 10 घाव के निशान थे और इस घटना के लिए निहंगों के एक समूह को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.
घटना का जिक्र करते हुए एक नयी याचिका दायर की गयी है जिसमें इस साल मार्च से लंबित जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया गया है. याचिका में कहा गया है कि भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी जीने के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती और अगर इस प्रदर्शन को इस तरह चलते रहने दिया गया तो देश को बड़े पैमाने पर नुकसान होगा.
स्वाति गोयल और संजीव नेवार ने वकील शशांक शेखर झा के जरिए अपनी लंबित जनहित याचिका में यह अंतरिम अर्जी दायर की. वकील ने कहा कि एक दलित व्यक्ति की हत्या और शव क्षत-विक्षत किए जाने की घटना के बाद मैंने उच्चतम न्यायालय के समक्ष तत्काल सुनवाई के लिए अर्जी दायर की है. प्रदर्शनों के नाम पर एक महिला के बलात्कार और एक दलित व्यक्ति की हत्या तथा शव क्षत-विक्षत करने समेत मानवता विरोधी गतिविधियां हो रही हैं. इसे जारी रखने नहीं दिया जा सकता.
प्रदर्शनरत किसानों को हटाने के अलावा याचिका में केंद्र द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सभी तरह के प्रदर्शन रोकने और महामारी खत्म होने तक उनकी अनुमति न देने को लेकर दिशा निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है. जनहित याचिका में कहा गया है कि जो प्रदर्शन अपने आप में गैरकानूनी है उसे जारी रखने नहीं दिया जा सकता जबकि उसमें मानवता विरोधी कृत्य देखने को मिल रहे हैं. इसमें कहा गया है कि प्रदर्शनों में गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली, एक महिला से दुष्कर्म और दशहरा पर लखबीर सिंह की हत्या समेत कई अनापेक्षित और अस्वीकार्य घटनाएं देखी गयी हैं.
याचिका में कहा गया है कि ऐसे वक्त में जब त्योहारों का जश्न मनाने, मंदिरों में जाने, स्कूल और कॉलेज जाने पर प्रतिबंध है तो ऐसे प्रदर्शनों को अनुमति देना अच्छा नहीं होगा. इसमें कहा गया है कि प्रदर्शनकारी न केवल अपनी बल्कि भारत के लाखों लोगों की जान खतरे में डाल रहे हैं और इतने लंबे आंदोलन को अनुमति नहीं दी जा सकती खासतौर से जब महामारी चल रही है. सार्वजनिक स्थानों पर लंबे समय तक प्रदर्शन न केवल उच्चतम न्यायालय के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है बल्कि यह अन्य के जीने के अधिकार का भी उल्लंघन कर रहा है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर इन प्रदर्शनों से प्रभावित हैं.
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याचिका में कहा गया है कि जनहित याचिका सुनवाई के लिए सबसे पहले 10 मई को सूचीबद्ध की गयी लेकिन उस दिन उच्चतम न्यायालय के एक सर्वर में खराबी आने के कारण सुनवाई नहीं की जा सकी और बाद में भी सुनवाई नहीं हो सकी.
इस बीच, शीर्ष न्यायालय नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल की एक याचिका पर भी सुनवाई कर रहा है. याचिकाकर्ता ने अवरोधकों को हटाने का अनुरोध करते हुए कहा कि पहले उन्हें दिल्ली पहुंचने में 20 मिनट लगते थे और अब दो घंटे से अधिक समय लग रहा है और दिल्ली सीमा पर यूपी गेट पर प्रदर्शनों के कारण इलाके के लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
शीर्ष न्यायालय ने चार अक्टूबर को 43 किसान संघों और दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे राकेश टिकैत, दर्शन पाल और गुरनाम सिंह समेत उनके नेताओं से जवाब मांगे थे. न्यायालय ने हरियाणा सरकार की याचिका पर उनसे जवाब मांगे थे जिसमें आरोप लगाया गया है कि किसान नेता यहां सड़क पर अवरोध को लेकर गतिरोध हल करने के लिए उसकी समिति से बातचीत नहीं कर रहे हैं.
(पीटीआई-भाषा)