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ये है बिहार का 'विलेज ऑफ आईआईटीयंस', हर साल हर घर से IIT के लिए चुने जाते हैं छात्र

बिहार के गया का पटवाटोली 'विलेज ऑफ आईआईटीयंस' (Patwatoli village of IITians) के रूप में पूरे देश में अपनी पहचान बना रहा है. खुद सफल हुए छात्र अब नई पौध तैयार कर रहे हैं. देश और विदेश में जॉब कर रहे पटवाटोली से निकले आईआईटीयन यहां क्लास लेते हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

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Published : Apr 20, 2022, 12:13 PM IST

गया: बिहार के गया जिले के मानपुर पटवाटोली में आईआईटीयन की पौध (IITians in Gaya) तैयार की जा रही है. सफल होने के बाद देश-विदेश में जॉब करने वालों द्वारा इस कड़ी को अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. आईआईटी की सफलता को लेकर पहले से मशहूर पटवाटोली को विलेज ऑफ आईआईटीयन (Village of IITians of Bihar) बनाने की तैयारी है. इस बड़े मकसद में छात्रों को सफल करने के लिए निशुल्क पूरी पढ़ाई की व्यवस्था है. यहां के बच्‍चे अपने सीनियर्स से प्रेरणा और गाइडेंस ले रहे हैं.

पावरलूमों के कर्कश शोर के बीच पढ़ाई: बिहार के गया जिले में मानपुर का पटवाटोली पावरलूम उद्योग (Patwatoli Powerloom Industry of Manpur) के लिए जाना जाता है. यह आईआईटीयन के क्षेत्र में सफल छात्रों के लिए भी मशहूर है. पावरलूमों के कर्कश शोर के बीच गया के पटवाटोली में 'वृक्ष' नाम की निशुल्क लाइब्रेरी बनी है. यह नई पहल है. इससे सैकड़ों छात्र सफल भी हो चुके हैं. गया के मानपुर पटवा टोली मोहल्ला में पटवा समुदाय के सैंकड़ों परिवार निवास करते हैं. संकरी गलियां और हज़ारों पावरलूम की कर्कश शोर के बावजूद यह मोहल्ला अब धीरे-धीरे विलेज ऑफ आईआईटीयंस के रूप में जाने जाना जाने लगा है.

ये है बिहार का 'विलेज ऑफ आईआईटीयंस (वीडियो)

वृक्ष - बी द चेंज की मुहिम: ये लाइब्रेरी कोई सरकारी लाइब्रेरी नहीं बल्कि इसी गांव के उन युवकों के आर्थिक सहयोग से चलती है जो आईआईटी में सफलता पाने के बाद आज विदेशों में नौकरी कर रहे हैं. चंद्रकांत पाटेश्‍वरी की सुने तो इसकी शुरूआत 1996 में हुई जब गांव के जितेन्‍द्र नामक युवक ने आईआईटी में प्रवेश पाया. उससे यहां के बच्‍चे बहुत प्रेरित हुए. जेईई की तैयारी को क्रेज हो गया. जितेन्‍द्र ने ही यहां वृक्ष बी द चेंज संस्‍था के नाम से ये लाइब्रेरी शुरू कराई जहां सभी इच्‍छुक बच्‍चे आकर निशुल्क पढ़ सकें. यहां किताबों की व्‍यवस्‍था हुई.

गरीब छात्रों को मिली वृक्ष की छांव: यहां कोई भी स्‍टूडेंट निशुल्क पढ़ सकता है. आईआईटी की तैयारी करने वाले स्‍टूडेंट्स को इस गांव के वो सीनियर्स ऑनलाइन कोचिंग भी देते हैं, जो आईआईटी से पढ़ाई कर चुके हैं या कर रहे हैं. यहां 10वीं और 12वीं के बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्‍चे भी आते हैं. यहां पावरलूमों की कर्कश आवाज और संकरी गलियों में अवस्थित कुछ कमरों में आईआईटीयंस की नई पौध तैयार हो रही है. यहां गरीब तबके से लेकर आम छात्र आईआईटीयन बनने के सपने को साकार करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं. जिसके कारण ही यहां के बच्चे हर वर्ष सफलता की परचम लहराते हैं.

ऐसे हुई थी वृक्ष संस्था की शुरुआत: वहीं संस्थापक चंद्रकांत पाटेकर ने बताया कि मेरे कुछ दोस्त थे जो पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन उनके पास पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे. बचपन में मैंने देखा कि कैसे मेरे दोस्तों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उसी समय से हमलोगों को लग रहा था कि हमें कुछ करना चाहिए. हमारी कोशिश है कि पैसों के कारण कोई बच्चा पीछे नहीं रहना चाहिए. यहां हर घर में इंजीनियर हैं, उन सभी का सपोर्ट हमें मिलता है. एक जितेंद्र सिंह 1992 के पास आउट हैं वो भी पूरा सपोर्ट करते हैं.

विलेज ऑफ आईआईटीयंस: लाइब्रेरी के कर्ताधर्ता चंद्रकांत पाटेश्‍वरी बताते हैं कि पटवाटोली को पहले मैनचेस्‍टर ऑफ बिहार के नाम से जाना जाता था. क्‍योंकि यहां लूम के जरिये चादर, तौलिये, गमछा आदि का उत्‍पादन होता है. लेकिन अब इसकी पहचान विलेज ऑफ आईआईटियंस के नाम से भी है. इस गांव से अब हर साल एक दर्जन से ज्‍यादा छात्र-छात्राएं बिना किसी बड़ी कोचिंग के ही जेईई में सेलेक्‍शन पाते हैं. सफलता की ये इबारत इसी लाइब्रेरी में कड़ी मेहनत और सीनियर्स के गाइडेंस के साथ लिखी जाती है.

"एक जितेंद्र भईया हैं वो 1992 में पास हुए थे. उनको अच्छा जॉब लगा. अभी जितेंद्र सिंह यूएसए में हैं. उन्हें ही देखकर बहुत लोग मोटिवेट हुए. वो हमेशा हमें सपोर्ट करते हैं. यहां से पिछले साल 8 बच्चे पास आउट हुए थे. कुल डेढ़ सौ के करीब बच्चे अबतक सफल हो चुके हैं." - चंद्रकांत पाटेकर, संस्थापक

पावरलूम का शोर अच्छा लगता है: पटवाटोली में पावरलूम के शोर में पढ़ाई करने वाले छात्रों का कहना है कि उन्हें शोर से कोई परेशानी नहीं होती बल्कि शोर उनके लिए संगीत की धुन बन जाता है और वो ध्यान लगाकर पढ़ाई कर पाते हैं. लाइब्रेरी में पढ़ने वाले छात्र मोहित बताते है कि, मोबाइल न होने के कारण परेशानी हो रही थी. एक घर में अगर एक मोबाइल है और बच्चे ज्यादा हैं तो सभी को ऑनलाइन क्लास करने में समस्या आ रही थी. कोरोना में परेशानी काफी बढ़ गई थी. लेकिन अब ऑनलाइन क्लासेस से बहुत सहूलियत हुई है. मैं अगर सफल हुआ तो आगे भी दुसरे छात्रों की मदद जरूर करूंगा, जैसे आज मेरी मदद की जा रही है.

अब रंगीन धागों में उलझकर नहीं रहेगा भविष्य: पटवा टोली के गांव के पूर्वज कपड़ा उद्योग से जुड़े हैं. गांव में घुसते ही आज भी आपको धागे की महक, मशीन की तेज आवाज आदि सुनाई दे सकती है. यहां के लोगों का मुख्य और एकमात्र व्यवसाय कभी बुनाई ही हुआ करती थी. यहां जाति मायने नहीं रखती. हर वर्ग कपड़ा उद्योग से जुड़ा है. लेकिन आधुनिक युग में पूरी तरह से गांव का परिदृश्य बदल चुका है. यहां के माता-पिता अब रंगीन धागों में उलझकर नहीं रह गए हैं. अपने बच्चों के भविष्य को इस रंगीन धागे के अनदेखे संघर्ष की छाया में रखे जरूर, लेकिन उनका भविष्य इस छाया से कोसों दूर है. एक तरफ कपड़े की बुनाई तो दूसरी ओर आईआईटी के छात्रों को बनाकर यहां के लोगों ने सच में कमाल कर दिया है.

गया: बिहार के गया जिले के मानपुर पटवाटोली में आईआईटीयन की पौध (IITians in Gaya) तैयार की जा रही है. सफल होने के बाद देश-विदेश में जॉब करने वालों द्वारा इस कड़ी को अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. आईआईटी की सफलता को लेकर पहले से मशहूर पटवाटोली को विलेज ऑफ आईआईटीयन (Village of IITians of Bihar) बनाने की तैयारी है. इस बड़े मकसद में छात्रों को सफल करने के लिए निशुल्क पूरी पढ़ाई की व्यवस्था है. यहां के बच्‍चे अपने सीनियर्स से प्रेरणा और गाइडेंस ले रहे हैं.

पावरलूमों के कर्कश शोर के बीच पढ़ाई: बिहार के गया जिले में मानपुर का पटवाटोली पावरलूम उद्योग (Patwatoli Powerloom Industry of Manpur) के लिए जाना जाता है. यह आईआईटीयन के क्षेत्र में सफल छात्रों के लिए भी मशहूर है. पावरलूमों के कर्कश शोर के बीच गया के पटवाटोली में 'वृक्ष' नाम की निशुल्क लाइब्रेरी बनी है. यह नई पहल है. इससे सैकड़ों छात्र सफल भी हो चुके हैं. गया के मानपुर पटवा टोली मोहल्ला में पटवा समुदाय के सैंकड़ों परिवार निवास करते हैं. संकरी गलियां और हज़ारों पावरलूम की कर्कश शोर के बावजूद यह मोहल्ला अब धीरे-धीरे विलेज ऑफ आईआईटीयंस के रूप में जाने जाना जाने लगा है.

ये है बिहार का 'विलेज ऑफ आईआईटीयंस (वीडियो)

वृक्ष - बी द चेंज की मुहिम: ये लाइब्रेरी कोई सरकारी लाइब्रेरी नहीं बल्कि इसी गांव के उन युवकों के आर्थिक सहयोग से चलती है जो आईआईटी में सफलता पाने के बाद आज विदेशों में नौकरी कर रहे हैं. चंद्रकांत पाटेश्‍वरी की सुने तो इसकी शुरूआत 1996 में हुई जब गांव के जितेन्‍द्र नामक युवक ने आईआईटी में प्रवेश पाया. उससे यहां के बच्‍चे बहुत प्रेरित हुए. जेईई की तैयारी को क्रेज हो गया. जितेन्‍द्र ने ही यहां वृक्ष बी द चेंज संस्‍था के नाम से ये लाइब्रेरी शुरू कराई जहां सभी इच्‍छुक बच्‍चे आकर निशुल्क पढ़ सकें. यहां किताबों की व्‍यवस्‍था हुई.

गरीब छात्रों को मिली वृक्ष की छांव: यहां कोई भी स्‍टूडेंट निशुल्क पढ़ सकता है. आईआईटी की तैयारी करने वाले स्‍टूडेंट्स को इस गांव के वो सीनियर्स ऑनलाइन कोचिंग भी देते हैं, जो आईआईटी से पढ़ाई कर चुके हैं या कर रहे हैं. यहां 10वीं और 12वीं के बोर्ड परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्‍चे भी आते हैं. यहां पावरलूमों की कर्कश आवाज और संकरी गलियों में अवस्थित कुछ कमरों में आईआईटीयंस की नई पौध तैयार हो रही है. यहां गरीब तबके से लेकर आम छात्र आईआईटीयन बनने के सपने को साकार करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं. जिसके कारण ही यहां के बच्चे हर वर्ष सफलता की परचम लहराते हैं.

ऐसे हुई थी वृक्ष संस्था की शुरुआत: वहीं संस्थापक चंद्रकांत पाटेकर ने बताया कि मेरे कुछ दोस्त थे जो पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन उनके पास पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे. बचपन में मैंने देखा कि कैसे मेरे दोस्तों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उसी समय से हमलोगों को लग रहा था कि हमें कुछ करना चाहिए. हमारी कोशिश है कि पैसों के कारण कोई बच्चा पीछे नहीं रहना चाहिए. यहां हर घर में इंजीनियर हैं, उन सभी का सपोर्ट हमें मिलता है. एक जितेंद्र सिंह 1992 के पास आउट हैं वो भी पूरा सपोर्ट करते हैं.

विलेज ऑफ आईआईटीयंस: लाइब्रेरी के कर्ताधर्ता चंद्रकांत पाटेश्‍वरी बताते हैं कि पटवाटोली को पहले मैनचेस्‍टर ऑफ बिहार के नाम से जाना जाता था. क्‍योंकि यहां लूम के जरिये चादर, तौलिये, गमछा आदि का उत्‍पादन होता है. लेकिन अब इसकी पहचान विलेज ऑफ आईआईटियंस के नाम से भी है. इस गांव से अब हर साल एक दर्जन से ज्‍यादा छात्र-छात्राएं बिना किसी बड़ी कोचिंग के ही जेईई में सेलेक्‍शन पाते हैं. सफलता की ये इबारत इसी लाइब्रेरी में कड़ी मेहनत और सीनियर्स के गाइडेंस के साथ लिखी जाती है.

"एक जितेंद्र भईया हैं वो 1992 में पास हुए थे. उनको अच्छा जॉब लगा. अभी जितेंद्र सिंह यूएसए में हैं. उन्हें ही देखकर बहुत लोग मोटिवेट हुए. वो हमेशा हमें सपोर्ट करते हैं. यहां से पिछले साल 8 बच्चे पास आउट हुए थे. कुल डेढ़ सौ के करीब बच्चे अबतक सफल हो चुके हैं." - चंद्रकांत पाटेकर, संस्थापक

पावरलूम का शोर अच्छा लगता है: पटवाटोली में पावरलूम के शोर में पढ़ाई करने वाले छात्रों का कहना है कि उन्हें शोर से कोई परेशानी नहीं होती बल्कि शोर उनके लिए संगीत की धुन बन जाता है और वो ध्यान लगाकर पढ़ाई कर पाते हैं. लाइब्रेरी में पढ़ने वाले छात्र मोहित बताते है कि, मोबाइल न होने के कारण परेशानी हो रही थी. एक घर में अगर एक मोबाइल है और बच्चे ज्यादा हैं तो सभी को ऑनलाइन क्लास करने में समस्या आ रही थी. कोरोना में परेशानी काफी बढ़ गई थी. लेकिन अब ऑनलाइन क्लासेस से बहुत सहूलियत हुई है. मैं अगर सफल हुआ तो आगे भी दुसरे छात्रों की मदद जरूर करूंगा, जैसे आज मेरी मदद की जा रही है.

अब रंगीन धागों में उलझकर नहीं रहेगा भविष्य: पटवा टोली के गांव के पूर्वज कपड़ा उद्योग से जुड़े हैं. गांव में घुसते ही आज भी आपको धागे की महक, मशीन की तेज आवाज आदि सुनाई दे सकती है. यहां के लोगों का मुख्य और एकमात्र व्यवसाय कभी बुनाई ही हुआ करती थी. यहां जाति मायने नहीं रखती. हर वर्ग कपड़ा उद्योग से जुड़ा है. लेकिन आधुनिक युग में पूरी तरह से गांव का परिदृश्य बदल चुका है. यहां के माता-पिता अब रंगीन धागों में उलझकर नहीं रह गए हैं. अपने बच्चों के भविष्य को इस रंगीन धागे के अनदेखे संघर्ष की छाया में रखे जरूर, लेकिन उनका भविष्य इस छाया से कोसों दूर है. एक तरफ कपड़े की बुनाई तो दूसरी ओर आईआईटी के छात्रों को बनाकर यहां के लोगों ने सच में कमाल कर दिया है.

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