नई दिल्ली : राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी और वह भी भाजपा के गठबंधन में चल रही सरकार और उसके मुख्यमंत्री के नाम पर. कहीं ना कहीं राजनीतिक पंडित माने जाने वाले प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश और बाकी राज्य में चल रहे चुनाव को देखते हुए बड़ा गेम खेला है, हालांकि बीजेपी इस पर आश्वस्त नजर आ रही है और फिलहाल इस नए समीकरण पर चुप्पी साध ली है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सभी चरणों की वोटिंग के बाद कहीं ना कहीं इस मुद्दे पर तस्वीर साफ होती दिखाई पड़ सकती है.
सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर अभी तक किसी भी नाम पर अपने सहयोगियों के साथ कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं हुई है, मगर विपक्ष ऐसे समय में नीतीश कुमार का नाम लेकर एक नए समीकरण को जन्म देने की कोशिश जरूर कर रहा है (nitish presidential candidature). यहां कहा यह जा सकता है कि गैर कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों की राष्ट्रपति पद के लिए कोई ऐसा उम्मीदवार लाया जा सके जिसकी अवहेलना कांग्रेस भी ना कर पाए.
इस खबर की शुरुआत तब हुई जब राष्ट्रपति के उम्मीदवार की चर्चा को लेकर राजनीतिक हलकों में पंडित कहे जाने वाले प्रशांत किशोर (पीके) और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर के बीच तेलंगाना के अगले चुनाव पर बैठक हुई. इस बार यह माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर केसीआर के लिए तेलंगाना की चुनावी रणनीति तैयार करेंगे और इसकी शुरुआत पीके ने राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार से की है, तो कहीं ना कहीं इसके पीछे, एक तीर-दो निशाने माने जा रहे हैं.
माना ये जा रहा है कि इसके पीछे तेलंगाना में भारी बहुमत के साथ जीत के बाद कहीं ना कहीं केसीआर की राष्ट्रीय राजनीति में आने की महत्वाकांक्षा और दूसरी राष्ट्रपति चुनाव के नाम पर नीतीश कुमार के नाम की उम्मीदवारी को लेकर बीजेपी के एक और सहयोगी का अलगाव का मकसद हो सकता है. कहा जा रहा है कि केसीआर की बैठक के बाद प्रशांत किशोर ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी डिनर पर मुलाकात की और इस बारे में चर्चा की है, हालांकि इसकी पुष्टि जेडीयू नहीं कर रही है.
जदयू के अंदर कोई चर्चा नहीं हुई : त्यागी
इस मामले पर जब 'ईटीवी भारत' ने जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी से बात की तो उन्होंने कहा की यह बात निकल कर आई है. ना तो हमारे बीच कोई प्रस्ताव पारित हुआ ना ही जदयू के अंदर कोई चर्चा हुई. ना ही हमारी सहयोगी बीजेपी के साथ बात हुई. तो फिर यह बातें कहां से निकल कर आई हैं. मीडिया ने चलाया और राष्ट्रपति के उम्मीदवार नीतीश कुमार बन गए? उन्होंने कहा कि इसमें कोई सच्चाई नहीं.
यूपी चुनाव पर नहीं पड़ेगा असर : बृजेश शुक्ला
क्या यह नया शिगूफा विपक्ष की तरफ से उत्तर प्रदेश में चल रहे चुनाव को देखते हुए छोड़ा गया है. इस मुद्दे पर जब राजनीतिक विश्लेषक बृजेश शुक्ला से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कुछ चरणों का चुनाव बचा है, ऐसे में नहीं लगता कि विपक्ष के इस मुद्दे का बहुत ज्यादा फर्क पड़ेगा.
शुक्ला का कहना है कि उत्तर प्रदेश से उसका कोई बहुत ज्यादा लेना-देना नहीं है लेकिन यह एक दूर की कौड़ी लेकर आए हैं. इसकी मुख्य वजह है कि इस मुद्दे को लेकर बीजेपी के सहयोगियों को तोड़ा जाए और उसे कमजोर किया जाए. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस इस बात को लेकर छटपटा रही है कि इन पार्टियों का चुनाव कांग्रेस के नेतृत्व में हो. 2024 में कांग्रेस को भी इस जगह से हटाने के लिए यह कवायद शुरू की गई है.
उनका कहना है कि तेलंगाना में जो सरगर्मियां तेज हो रही हैं किसी और के लिए भी अब बीजेपी धीरे-धीरे खतरे का विषय बन रही है. अभी हाल ही में एक उपचुनाव में बीजेपी ने वहां बढ़त हासिल की, जिसे लेकर कहीं ना कहीं के चंद्रशेखर राव में असुरक्षा की भावना दिखाई दे रही है. इस कवायद के पीछे इनकी सोच यह है कि बीजेपी और कांग्रेस से अलग हटकर एक अलग मोर्चा तैयार किया जाए और जहां तक कांग्रेस की बात है तीन चार राज्यों को छोड़कर कांग्रेस का फिलहाल कहीं प्रभाव नहीं है. इस बात का फायदा भी यह क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां उठाना चाह रही हैं.
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उन्होंने कहा कि कांग्रेस क्योंकि कमजोर से कमजोर होती चली जा रही है इसलिए उसके नेतृत्व में कोई चुनाव नहीं लड़ना चाहता. इसकी शुरुआत बंगाल के चुनाव से ही हो चुकी थी. उन्होंने कहा कि इसका फर्क बहुत ज्यादा उत्तर प्रदेश के चुनाव में नहीं पड़ता. क्योंकि अभी तक किसी नेता ने उत्तर प्रदेश में भाषण में इस बात को उठाया भी नहीं है. यह एक शुरुआत है कि 2024 में थर्ड फ्रंट भी बन सकता है और यह थर्ड फ्रंट बीजेपी को कम कांग्रेस को कहीं ज्यादा डरा रहा है.
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