छिंदवाड़ा। आदिवासियों के विकास को लेकर राजनीतिक दल बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं लेकिन मीडिया के सामने फूट-फूटकर रोती इस आदिवासी बेटी की सिसकियां अगर जिम्मेदारों के कानों तक पहुंच जाए तो सैकड़ों किलोमीटर दूर से खाली पैर कलेक्टर के पास आने की इनकी मेहनत सफल हो सकती है. दरअसल मीडिया के सामने सिसकियां भरती इस बेटी का कहना है कि गांव की कन्हान नदी में पुल नहीं होने के कारण वे पढ़ नहीं पा रहे हैं जिसकी वजह से उनकी सपने अधूरे हैं.
बरसात के मौसम में करीब 3 महीने तक स्कूल जाने की दिक्कत: जुन्नारदेव विकासखंड के चिकटबर्री गांव के पिपरिया के ढानाजुग्गामाल से कन्हान नदी होकर गुजरती है लेकिन नदी में पुल नहीं होने की वजह से बरसात के दिन में इस गांव का कनेक्शन दूसरे गांव से टूट जाता है. आलम ये रहता है कि बरसात के मौसम में करीब 3 महीने तक स्कूली बच्चे कभी कभार ही स्कूल पहुंच पाते हैं. इसके साथ ही अगर गांव में कोई बीमार हो जाए या फिर प्रसव के लिए महिला को अस्पताल जाना हो तो बहती नदी जान जोखिम में डालकर पार करना होता है.
बेटियों ने रो-रोकर बताया दुखड़ा: सैकड़ों किलोमीटर दूर खाली पैर सपने पूरे करने की लिए कलेक्टर कार्यालय पहुंचे स्कूली बच्चों ने रो-रोकर अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि वे पढ़ना चाहते हैं और पढ़कर कुछ बनना चाहते हैं लेकिन गांव में विकास की कमी के चलते उनके सपने पूरे नहीं हो पा रहे हैं हालत यह है कि कॉलेज तक जाने का उनका सपना भी पूरा नहीं हो पा रहा है. पिछले दिनों छिंदवाड़ा के ही परासिया के मंधान डैम के पास काजरा गांव में एक बुजुर्ग और 2 बच्चियों की नाला पार करते समय पानी में डूबने से मौत हो गई थी.
2 पीढ़ियां बिना पढ़े ही गुजर गई: स्कूली बच्चों को कलेक्टर कार्यालय लेकर पहुंचे ग्रामीण युवा साजिद अली ने बताया कि उनके गांव की किंतु पीढ़ियां बिना पढ़े ही गुजर गईं. अब बच्चे पढ़ना चाहते हैं लेकिन गांव में पुल नहीं बनने की वजह से स्कूली बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं. पहले तो कई लोग नदी पार करते वक्त मौत के मुंह में भी जा चुके हैं. जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासन तक कई बार ग्रामीणों ने गुहार लगाई है लेकिन उनकी बात कोई सुनने वाला नहीं है.
कांग्रेस का विकास मॉडल, मामा की भांजियों के सपने अधूरे: 43 सालों से छिंदवाड़ा में राजनीति कर जिले को विकास का मॉडल बताकर मध्यप्रदेश में सरकार बनाने वाले कमलनाथ के जिले के यह हालत है कि बेटियां पढ़ना चाहती हैं लेकिन स्कूल जाने के लिए पुल को मोहताज हैं. वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी भांजियों को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव मदद की बात करते हैं. 15 महीने कमलनाथ की सरकार की छोड़ दिया जाए तो 18 सालों से मामा शिवराज की सरकार है लेकिन इसके बाद भी भांजियों के सपने अधूरे हैं.
आदिवासियों को लेकर हो रही राजनीति: छिंदवाड़ा जिले में आदिवासियों के विकास के दावे को लेकर जमकर राजनीति हो रही है. एक तरफ कमलनाथ कहते हैं कि 43 सालों से छिंदवाड़ा में उन्होंने विकास किया है और यही विकास के मॉडल को वे पूरे प्रदेश में लागू करेंगे. वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी कहती है कि आदिवासियों का अगर कोई हितैषी है तो वह बीजेपी है. इसके लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासियों के गौरव बढ़ाने की बात कही तो वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आदिवासी अंचलों का दौरा भी किया था, खुद कमलनाथ भी लगातार आदिवासी इलाकों में दौरा कर रहे हैं और विकास की बातें गिना रहे हैं छिंदवाड़ा का चिकटबर्री गांव तो सिर्फ एक उदाहरण है आदिवासी अंचलों के कई ऐसे गांव हैं जहां आज भी सड़क, नदी नालों में पुल और पीने के पानी के लिए आदिवासियों को मोहताज होना पड़ रहा है.