भोपाल। मध्य प्रदेश की चुनावी राजनीति में मुसलमान क्या वाकई हाशिए पर हैं. क्या वजह है कि एमपी में बीजेपी सरकार और कांग्रेस ने हर वर्ग की पंचायतें बुलाकर उनसे चर्चाएं की. लेकिन इसमें मुसलमानों का नंबर अभी तक नहीं आया. एमपी में करीब 65 लाख की आबादी का वोट क्या किसी पार्टी को नहीं चाहिए. जब सियासी दलों ने दरकिनार किया तो हारकर अब मुस्लिम समाज की नुमाइंदगी करने वाला संगठन कांग्रेस-बीजेपी से दरख्वास्त कर रहा है कि हमारी भी तो सुनिए. इसमें मुसलमानों की शिक्षा आर्थिक स्थिति के साथ सबसे बड़ा मुद्दा एमपी मे मुसलमानों की सुरक्षा का है.
बढ़ती लिचिंग की घटनाओं के बाद एमपी का सात फीसदी मुसलमान अब सबसे पहले अपनी सुरक्षा चाहते हैं. मुस्लिम समाज ने अब तय कर लिया है कि इस चुनाव में ये सात फीसदी वोटर पार्टी नहीं केवल प्रत्याशी को देखकर वोट देगा. खास बात ये है कि इस चुनाव में बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस को लेकर मुसलमानों में नाराजगी है. मुसलमान समाज ने निर्णय लिया है कि इस चुनाव में पार्टी नहीं उम्मीदवार देखकर वोट देंगे.
साढ़े सात करोड़ की आबादी में सात फीसदी कुछ भी नहीं: मुस्लिम विकास परिषद लिचिंग से लेकर मुस्लिम आबादी से जुड़े तमाम मुद्दों को लेकर पिछले 23 वर्ष से काम कर रही है. परिषद के सचिव मोहम्मद माहिर कहते है "हैरान हूं मैं ये देखकर कि 2023 के विधानसभा चुनाव में साढे़ सात करोड़ आबादी में से 65 लाख के करीब मुसलमान वोटर की किसी को कोई जरुरत नहीं है. कांग्रेस हो या बीजेपी आप देखिए बुला बुलाकर रियायतें दे रहे हैं, घोषणाएं कर रहे हैं. मुसलमानों को तो किसी ने अभी तक क्यों नहीं बुलाया, क्या हमारा वोट नहीं चाहिए."
2023 के चुनाव में मुसलमानों की गुहार..हमें सुरक्षा दीजिए: 2023 के विधानसभा चुनाव में जब हर वर्ग सियासी दलों के सामने अपने मुद्दे लिए खड़ा है. तब एक ऐसा तबका भी है, जिस पर बीजेपी ही नहीं कांग्रेस ने भी नजर नहीं की है. ये वो तबका है, जो लंबे वक्त तक देश में कांग्रेस का वोट बैंक रहा है. मध्यप्रदेश के मुसलमानों की यू उनकी शिक्षा से लेकर आर्थिक सामाजिक पक्ष तक मुद्दों की लंबी फेहरिस्त है. लेकिन सबसे बड़ी मांग सुरक्षा की है. 2002 से एमपी के मुसलमानों से जुड़ी हर सामाजिक सियासी और कानूनी लड़ाई लड़ रहे संगठन मुस्लिम विकास मंच के सचिव मोहम्मद माहिर कहते हैं, "ये शर्मनाक स्थिति है कि हमें संविधान से जो भारत का नागरिक होते हुए जो अधिकार मिला है, उस सुरक्षा की सियासी दलों से गुहार करनी पड़ रही है. कांग्रेस-बीजेपी ने तो मुसलमानों को हाशिए पर डाल दिया है. हमारे वोट की भी कोई कीमत नहीं है. तो हमने ही अपने मुद्दे उन तक पहुंचाने की तैयारी की है, समय मांगा है. इसमें सबसे जरुरी मुद्दा है, एमपी में आए दिन हो रही लिचिंग के इस माहौल में मुसलमान को कम से कम सुकून से रहने की गारंटी मिल सके, उन्हें सुरक्षा मिले. इस पत्र में संगठन ने भड़काऊ भाषणों पर भी रोक लगाने की डिमांड की है."
रिजर्वेशन से लेकर रोजगार, मुसलमान आबादी का सियासी दलों से सवाल: मुस्लिम विकास परिषद ने मध्य प्रदेश के दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और बीजेपी के सामने अपने मुद्दे रख दिए हैं. इनमें मुस्लिम बच्चों को शिक्षा में आरक्षण से लेकर नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में सभी फैकल्टी में एजुकेशन हर स्कूल में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति की जाए. मुसलमान नौजवानों को रोजगार देने रोजगार बोर्ड का गठन हो. सच्चर कमेटी की सिफारिशें लागू की जाएं. मुस्लिम बच्चियों के लिए शहरों में अलग से हॉस्टल की सुविधा के साथ सबसे जरुरी मुद्दा सुरक्षा का है. जिससे साम्प्रदायिक दंगा विरोधी कानून बनाया जाए. सख्ती से भड़काऊ भाषणों पर रोक हो. परिषद के सचिव मोहम्मद माहिर कहते हैं "मुसलमान बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा से रह सके, ये वैसे तो हर सरकार की ड्यूटी है, लेकिन राजनीतिक दल ये भरोसा दिलाएं. "
कुल दो विधायक..सत्ता में मुसलमान हैं कहां: एमपी मे मुसलमान आबादी सात फीसदी है. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बतौर समाज से केवल तीन सीटों पर मौका दिया गया. जिसमें दो भोपाल की सीटें थी और एक सिरोंज की. भोपाल की ही दो सीटों पर मुस्लिम विधायक आरिफ अकील और आरिफ मसूद चुनकर आए. यहां से उत्तर भोपाल सीट से बीजेपी ने केवल एक उम्मीदवार उत्तर भोपाल की सीट से फातिमा रसूल को चुनाव मैदान में उतारा था. एमपी में 50 लाख से ज्यादा मुस्लिम आबादी है. जिसमें से प्रदेश के 19 जिले ऐसे हैं, जहां इनका प्रतिशत एक लाख से ऊपर है. मुसलमानों की चुनावी ताकत बताते हुए मोहम्मद माहिर कहते हैं विधानसभा सीटों के हिसाब से देखें तो 230 में से 69 सीटें ऐसी हैं. जिनमें मुसलमान वोटर प्रभावी हैं. 47 सीटों पर पांच से 15 प्रतिशत मुसलमान वोटर का असर है. 22 सीटें एसी हैं, जहां ये प्रतिशत 20 से 30 परसेंट के आस पास है."
कांग्रेस से क्यों ज्यादा नाराज़ है मुसलमान: जो लंबे समय तक कांग्रेस का सबसे मजबूत वोट बैंक बना रहा, अब स्थिति ये है कि मुसलमान इसी कांग्रेस पार्टी से ज्यादा नाराज है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीज कुरैशी ईटीवी भारत से बातचीत में कहते हैं "बीजेपी का एजेंडा तो जगजाहिर है. वो मुसलमानों को कभी साथ नहीं लेगी, लेकिन कांग्रेस जिस पर भरोसा करता रहा मुसलमान, वो सॉफ्ट हिंदूत्व की दौड़ में उस मुसलमान वोटर को छोड़ दिया, जो उसके साथ खडा था. ऐसे में कांग्रेस भी कहीं की नहीं रहेगी ये तय मानिए."
पार्टी नहीं प्रत्याशी पर लगाएंगे मुहर: राजनीतिक दलों का रवैया देखते हुए अब मुस्लिम समाज भी अपनी वोट की रणनीति बदल रहा है. इस बार के चुनाव में मुसलमान तबके को इस बात के लिए मुस्लिम संगठन तैयार कर रहे हैं कि वो पार्टी देखकर वोट देने के बजाए उस प्रत्याशी को वोट दें, जो मुस्लिम तबके के लिए कुछ करने वाला हो.