ग्वालियर। मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर इस समय ग्वालियर चंबल-अंचल में काफी खींचतान मची है. इसका सबसे ज्यादा असर बीजेपी में देखने को मिल रहा है, क्योंकि यहां पर नाराज भाजपा और महाराज भाजपा के बीच चल रही गुटबाजी ने पार्टी को भी मुश्किल में डाल दिया है. इसलिए अब ग्वालियर चंबल-अंचल में सबसे ज्यादा संकट में सिंधिया समर्थक नेता दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि यह आगामी विधानसभा का चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य के लिए निर्णायक होने वाला है. यही कारण है कि अब कई सिंधिया समर्थक ऐसे नेता हैं. जो कांग्रेस छोड़ने पर पछतावा कर रहे हैं. उनको अंदर ही अंदर एहसास होने लगा है कि कांग्रेस छोड़कर कहीं ना कहीं उन्होंने गलती कर दी है, लेकिन इस बात को वह खुलकर नहीं बोल पा रहे हैं पढ़िए....सिंधिया समर्थकों की राजनीतिक भविष्य की विस्तृत रिपोर्ट
चंबल-अंचल में बढ़ रही गुटबाजी: बता दें मध्य प्रदेश का यह विधानसभा चुनाव सिंधिया समर्थकों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यही चुनाव सिंधिया और सिंधिया समर्थकों के लिए राजनीतिक भविष्य तय करेगा. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि कमलनाथ सरकार को गिराकर सिंधिया और उनके समर्थक बीजेपी में शामिल हुए थे. उसके बाद साल 2020 के उप चुनाव में कई ऐसे सिंधिया समर्थक थे, जो चुनाव हार गए, लेकिन इसके बावजूद बीजेपी ने उन्हें निगम मंडल की कमान सौंपी. यही कारण है कि जब हारे हुए सिंधिया समर्थकों को सरकारी पद मिला तो बीजेपी के कई नेता नाराज हो गए और उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया. बीजेपी के नाराज नेताओं को पद न मिलने के कारण सिंधिया समर्थक नेता और उनके बीच गुटबाजी की गहरी खाई बढ़ने लगी और वह अभी तक जारी है.
पार्टी के खिलाफ बोले सिंधिया समर्थक: अब विधानसभा के चुनाव से पहले ग्वालियर चंबल-अंचल में सिंधिया समर्थक और बीजेपी के नेताओं के बीच बढ़ रही गुटबाजी ने यह तय कर दिया है कि बीजेपी इस समय बेहद संकट में है. इनमें सबसे ज्यादा संकट में सिंधिया समर्थक हैं. जिन्हें यह डर सता रहा है कि इस विधानसभा चुनाव में उनका क्या रोल रहने वाला है, क्योंकि सभी सिंधिया समर्थन को हो यह डर सता रहा है कि अबकी बार भाजपा उन्हें टिकट देगी या नहीं. ग्वालियर चंबल संभाग में ऐसे एक दर्जन से अधिक सिंधिया समर्थक हैंस, जो टिकट के दावेदार हैं, लेकिन भाजपा नेता उनके समर्थन में नहीं है. इनमें से कई नेताओं के बयान भी खुलकर सामने आ चुके हैं. जैसे नरोत्तम मिश्रा के खिलाफ सिंधिया समर्थक और पूर्व मंत्री इमरती देवी लगातार बोलती रही हैं. ऐसे ही मामले मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी से लेकर गुना, अशोकनगर में अनेक बार देखने को मिला है.
कुंठित हैं सिंधिया समर्थक: बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता ग्वालियर चंबल-अंचल में सिंधिया समर्थकों को ज्यादा तवज्जो मिलने से न केवल नाराज हैं, बल्कि कुंठित भी हो चुके हैं. उनका कहना यह है कि एक तरफ सरकार बनने के बाद पार्टी के मूल नेता अलग-थलग पड़े हैं. ना उनकी सत्ता में कोई पूछ परख है और ना संगठन में है. सबसे ज्यादा नाराजगी इस बात को लेकर है कि सरकार द्वारा बांटे गए सरकारी निगम पदों में उनकी पूरी तरह अनदेखी की गई. एक तरफ बीजेपी के किसी भी कार्यकर्ता को सरकारी पद पर मनोनीत नहीं किया गया, वहीं सिंधिया के ऐसे समर्थक नेता जो उपचुनाव में बुरी तरह हार भी गए, फिर भी सरकारी पद से नवाजा गया.
नरेंद्र सिंह तोमर से सता रहा डर: इस विधानसभा चुनाव में सिंधिया समर्थकों को सबसे ज्यादा डर इस बात का सता रहा है, कि अभी हाल में ही भाजपा ने सिंधिया के विरोधी माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मध्य प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक बनाया है. जो कि ग्वालियर चंबल-संभाग के बीजेपी के कद्दावर नेता हैं. तोमर की ताजपोशी की वजह से सिंधिया और उनके समर्थकों के कारण बीजेपी और कार्यकर्ताओं में फैले गुस्सा को नियंत्रित कर उन्हें चुनावी तैयारी में जुटाने की है, लेकिन तोमर की ताजपोसी के बाद सिंधिया समर्थकों में अंदर ही अंदर असुरक्षा और निराशा तेजी से फैल गई है. कई समर्थक नेताओं को लग रहा है कि अब उन्हें टिकट मिलना आसान नहीं हो पायेगा. इससे सभी सिंधिया समर्थकों में खलबली मची है और वह अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर काफी चिंतित भी दिखाई दे रहे हैं.
कांग्रेस के नेता कर चुके हैं दावे: साथ ही ग्वालियर चंबल-अंचल में कई सिंधिया समर्थक यह महसूस कर रहे हैं कि उन्हें बीजेपी में अभी तक वह तवज्जो नहीं मिल पा रही है. जो कि कांग्रेस में हासिल थी. इसके अलावा 2 साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता अपना मानने को तैयार नहीं है. चाहे कार्यक्रम हो या निजी बैठकें, उनमें भी सिंधिया समर्थकों को कोई तवज्जो नहीं मिलती है. यहां तक कि उनके नेता केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जितने भी आयोजन करते हैं. उनमें अधिकांश सिंधिया समर्थक ही मौजूद रहते हैं. बीजेपी के कार्यकर्ता उनसे दूरी बनाकर रखते हैं. इसी तरह भाजपा के संगठनों की बैठक में सिंधिया समर्थकों को बुलाया ही नहीं जाता है. यही वजह है कि अब सिंधिया समर्थक अपने आपको पार्टी में असहज महसूस कर रहे हैं और कई सिंधिया समर्थक नेता ऐसे हैं, जो कांग्रेस पार्टी के नेताओं से भी संपर्क साध चुके हैं, लेकिन उन्हें यह सफलता नहीं मिल पा रही है. इसलिए उनके मन में इस बात का जरूर मलाल है कि उन्होंने बीजेपी में आकर अपने राजनीतिक करियर पर बड़ा दांव खेला है. वहीं कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ से लेकर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, डॉक्टर गोविंद सिंह और सज्जन वर्मा अनेक बार ऐसा दावा कर चुके हैं कि पार्टी छोड़कर गए कई सिंधिया समर्थक विधायक पूर्व विधायक और नेता उनके संपर्क में हैं.
न घर के न घाट के: वहीं कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए सभी सिंधिया समर्थकों को लेकर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष आरपी सिंह का कहना है कि "कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए सभी सिंधिया समर्थकों की स्थिति ऐसी हो गई है, कि न वे घर के बचे और ना घाट के, इसके अलावा उन्होंने कहा है कि अबकी बार सिंधिया समर्थकों को टिकट की उम्मीद काफी कम है, क्योंकि बीजेपी अपने नाराज नेताओं को सबसे पहले सेट करेगी. इसलिए कई सिंधिया समर्थक ऐसे नेता हैं. जो फिर से कांग्रेस पार्टी में आना चाह रहे हैं. वह हमारे नेताओं से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पार्टी ने पूरी तरह मना कर दिया है."
क्या बोली बीजेपी: वहीं शिवराज सरकार के उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाहा का कहना है कि "आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व तय करता है कि किसको टिकट मिलेगा या नहीं. अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता है. इसके अलावा कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सिंधिया समर्थक और वर्तमान में पिछड़ा वर्ग आयोग वित्त निगम के अध्यक्ष रघुराज सिंह कंसाना का कहना है कि पिछले दो सालों से हम पार्टी की सेवा कर रहे हैं और पार्टी जो सर्वे कर रही है, उसके अनुसार पार्टी जो निर्णय लेगी, वह हमें स्वीकार होगा.