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Madras HC ने मंदिरों में तमिल में मंत्रोच्चारण को प्रतिबंधित करने की याचिका की खारिज

अदालत ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें तमिलनाडु सरकार को 'अन्नई तमिल अर्चनाई' योजना को वापस लेने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई थी. इस याचिका पर अदालत ने क्या कहा, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Madras HC
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Published : Sep 6, 2021, 7:05 PM IST

चेन्नई : मद्रास हाईकोर्ट (Madras Highcourt) ने एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें भक्तों को तमिल भाषा में मंत्रोच्चारण से रोका जा रहा था. दरअसल, इस याचिका में तमिलनाडु सरकार को 'अन्नई तमिल अर्चनाई' (Annai Tamil Archanai) योजना को वापस लेने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई थी.

इस योजना के तहत मंदिरों में भक्तों को पुजारियों से संस्कृत के बदले तमिल में मंत्रोच्चारण कराने का विकल्प चुनने की अनुमति है. लेकिन याचिकाकर्ता का तर्क है कि चूंकी अधिकांश मंदिर प्राचीन हैं और संस्कृत भाषा में मंत्रों का जाप करना यहां सदियों पुरानी परंपरा है. ऐसे में यदि संस्कृत में मंत्रोच्चारण नहीं किये जाते हैं, तो उनकी पवित्रता नष्ट हो जाएगी.

पढ़ें : करेंसी नोटों पर सिर्फ गांधी की तस्वीर छापने का निर्णय सही : हाईकोर्ट

इस याचिका को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस पीडी ऑडिकेसवालु की पीठ ने खारिज कर दिया. उन्होंने 2008 के वीएस शिवकुमार बनाम एम पिचाई बत्तर के मामले में दिये गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस विचाराधीन मुद्दे को 2008 के उच्च न्यायालय के खंडपीठ ने पहले ही सुलझा लिया था.

पीठ ने कहा कि 2008 में जस्टिस एलीप धर्मा राव और के चंद्रू (दोनों सेवानिवृत्त) ने फैसला सुनाया था कि मंदिरों में तमिल में मंत्रों के जाप को प्रतिबंधित करने के लिए धार्मिक लिपियों में वर्णन नहीं है. ऐसे में भक्तों के पास उनकी इच्छानुसार अर्चना करने के लिए या तो तमिल या संस्कृत में मंत्रों का जाप करने का विकल्प निहित है.

चेन्नई : मद्रास हाईकोर्ट (Madras Highcourt) ने एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें भक्तों को तमिल भाषा में मंत्रोच्चारण से रोका जा रहा था. दरअसल, इस याचिका में तमिलनाडु सरकार को 'अन्नई तमिल अर्चनाई' (Annai Tamil Archanai) योजना को वापस लेने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई थी.

इस योजना के तहत मंदिरों में भक्तों को पुजारियों से संस्कृत के बदले तमिल में मंत्रोच्चारण कराने का विकल्प चुनने की अनुमति है. लेकिन याचिकाकर्ता का तर्क है कि चूंकी अधिकांश मंदिर प्राचीन हैं और संस्कृत भाषा में मंत्रों का जाप करना यहां सदियों पुरानी परंपरा है. ऐसे में यदि संस्कृत में मंत्रोच्चारण नहीं किये जाते हैं, तो उनकी पवित्रता नष्ट हो जाएगी.

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इस याचिका को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस पीडी ऑडिकेसवालु की पीठ ने खारिज कर दिया. उन्होंने 2008 के वीएस शिवकुमार बनाम एम पिचाई बत्तर के मामले में दिये गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस विचाराधीन मुद्दे को 2008 के उच्च न्यायालय के खंडपीठ ने पहले ही सुलझा लिया था.

पीठ ने कहा कि 2008 में जस्टिस एलीप धर्मा राव और के चंद्रू (दोनों सेवानिवृत्त) ने फैसला सुनाया था कि मंदिरों में तमिल में मंत्रों के जाप को प्रतिबंधित करने के लिए धार्मिक लिपियों में वर्णन नहीं है. ऐसे में भक्तों के पास उनकी इच्छानुसार अर्चना करने के लिए या तो तमिल या संस्कृत में मंत्रों का जाप करने का विकल्प निहित है.

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