नई दिल्ली : वायु प्रदूषण अब सिर्फ़ किताबों में रहने वाला और यदा-कदा की बातचीत वाला मुद्दा नहीं रह गया है. दिल्लीवासियों के लिए तो बिल्कुल नहीं. साल 2021 में जहां कोरोना दिल्ली के साथ देशभर में हावी रहा तो दिल्ली के लोगों के लिए प्रदूषण भी कोई छोटी-मोटी परेशानी नहीं थी. साल के अंतिम दिनों में जहां अब नए साल के आगमन का इंतज़ार है तो राजधानी में लोगों को प्रदूषण से राहत की भी उम्मीद है.
सर्दियों के लिए दिल्ली की सर्दी से अलग प्रदूषण भी सुर्ख़ियों में रहता है. साल की शुरुआत भी ऐसे ही हुई थी. साल के पहले दिन ही दिल्ली के प्रदूषण सभी अख़बारों और न्यूज़ चैनलों की मुख्य खबर था. एयर क्वालिटी इंडेक्स 450 के भी पार था. दिल्ली सरकार अपने स्तर पर प्रयास करने का दावा और दूसरे राज्यों के सर ठीकरा, दोनों कर रही थी लेकिन कोई असर नहीं हुआ.
'रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ़', कन्स्ट्रक्शन पर रोक, जेनसेट बंद आदि तमाम चीजें हुईं, लेकिन प्रदूषण नहीं गया. फ़रवरी में ग्रीनपीस नाम की संस्था द्वारा प्रदूषण से होने वाली मौतों के आंकड़े ने राजनीतिक गलियारों में खूब चहल-पहल मचाई थी. संस्था का दावा था कि वायु प्रदूषण के चलते साल 2020 में दिल्ली में 54 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई. अन्य शहरों का भी रिपोर्ट में नाम लिया गया, लेकिन दिल्ली की तुलना में सब कम ही थे. फ़रवरी महीने में भी पीएम 2.5 और PM 10 के स्तर ने कम होने का नाम नहीं लिया.
मार्च महीने के शुरुआत में सेंटर फ़ॉर साइंस एंड इन्वायरॉन्मेंट दावा करता है कि दिल्ली और एनसीआर में सर्दियों 15 अक्तूबर से 1 फरवरी के दौरान घातक हो जाने वाली वायु प्रदूषण की अवधि बीत चुकी है. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. मार्च के आख़िरी दिनों तक हवा की गुणवत्ता ख़राब ही रही. राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर हाय-तौबा तो मची लेकिन समाधान के नाम पर हुआ कुछ नहीं. अप्रैल से दिवाली तक प्रदूषण को लेकर न तो बहुत चर्चा ही होती है और न ही ये परेशानी की वजह होता है. इस साल दिवाली यानि नवंबर के शुरुआती दिनों तक यही हाल रहा था. इससे पहले दिल्ली सरकार ने अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी थीं. बात बायो-डीकंपोज़र घोल की हो या अलग-अलग अभियानों की, दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने प्रदूषण के ख़िलाफ़ उठाए गए कदमों को लेकर सुर्ख़ियां तो बटोरी लेकिन दीपावली के बाद जैसे सब धराशाही हो गया.
दिवाली के साथ ही प्रदूषण स्तर में कुछ ऐसा इज़ाफ़ा हुआ कि दिल्ली का प्रदूषण स्तर लोगों को भी एकदम से बढ़े स्मॉग पर यक़ीन नहीं हो रहा था. दिल्ली सरकार ने इसके पीछे विपक्षी पार्टियों का हाथ बताया और इसके पीछे पटाखों की वाजिब वजह भी दी लेकिन दिल्ली के लोगों ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया था कि विपक्षी पार्टियां यहां दिल्लीवसियों को ज़हरीली हवा में धकेलना चाह रहे थे.
प्रदूषण मामलों के विशेषज्ञ जैधर गुप्ता कहते हैं कि इस साल नवंबर का प्रदूषण पिछले सात सालों के प्रदूषण में सबसे ख़राब था. वो इसके पीछे एक कारण अक्टूबर में सर्दियों से पहले पढ़ने वाली गर्मी का नहीं होना भी बताते हैं. वो कहते हैं कि इस बार हवा में प्रदूषण के कणों के साथ कुछ केमिकल भी था जो संभवतः किसानों का पेस्टीसाइड या इंडस्ट्री से निकला इमिशन हो सकता है. वो आगाह करते हैं कि दिसंबर में ठंड बढ़ने के साथ ही प्रदूषण का दूसरा अध्याय शुरू होगा. जैधर प्रदूषण से निपटने के मामले में सरकारों को भी दोषी ठहराते हैं.
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विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के मानकों के मुताबिक हवा में पीएम 2.5 का औसत स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होना चाहिए. इस बार यह स्तर अभी तक 246 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है. जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होता है. बीते चार सालों की बात करें तो साल 2018 में पीएम 2.5 का औसत स्तर 202 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जबकि साल 2019 में ये 204 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, साल 2020 में 217 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था, तो वहीं इस साल यानी 2021 में 26 नवंबर तक 246 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था.
चलिए जानते हैं दिल्ली में बीते चार सालों का हाल-
साल ख़त्म होने को है लेकिन प्रदूषण ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो दिल्ली में रहने वाला और सांस लेने वाला हर व्यक्ति सांस की गंभीर बीमारियों को न्यौता दे रहा है. हालांकि इसका कोई त्वरित समाधान भी नहीं है. प्रदूषण के कारण सांस के साथ शरीर में जाकर नुक़सान पहुंचाते हैं और ये सिर्फ़ उन लोगों के लिए नुकसानदायक नहीं है जो सांस जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं, बल्कि स्वास्थ्य लोगों के लिए भी ख़तरनाक है. इस ख़तरे की घंटी के बावजूद सवाल वही आता है कि आख़िर इसका समाधान क्या है. आख़िर क्यों दिल्लीवासियों को हर साल पांच महीने दूषित हवा में सांस लेना पड़ता है.