वाराणसी: कहते हैं धर्म और अध्यात्म की नगरी बनारस में 33 कोटि देवी-देवता वास करते हैं. यहां एक ऐसा अनोखा मंदिर (unique temple in Varanasi) है, जहां पर श्रद्धालु अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए ताला चढ़ाते हैं. गंगा किनारे स्थित मंदिर के मुख्य द्वार पर लगे हजारों ताले इसके प्रतीक हैं. शीतला घाट पर गंगा किनारे स्थापित बंदी माता का मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि श्रद्धालु कोर्ट, कचहरी और बेवजह में फंसे मुकदमों से मुक्ति के लिए बंदी माता मंदिर में 41 दिनों का अनुष्ठान करते हैं और ताला चढ़ाते हैं. दरअसल, बंदी माता का प्राचीन मंदिर काशी खंड में पंचकोशी यात्रा के अंतर्गत आता है. यहां के प्रधान पुजारी सुधाकर दुबे बताते हैं कि बंदी माता को पाताल की देवी के रूप में पूजा जाता है.
अहिरावण का वध कर श्रीराम को मुक्त कराया: भगवान राम और लक्ष्मण को जब अहिरावण अपहरण करके पाताल लोक ले गया था. अहरिवाण जब श्री राम और लक्ष्मण को अपने इष्ट देवी के आगे बलि चढ़ाने के लिए तैयार कर रहा था. तब प्रभु राम ने बंदी माता के विनती की थी कि माता आपके आगे देवताओं की बलि दी जाने वाली है. हमारी रक्षा करिए और हमें बंधन से मुक्त कीजिए. तभी माता बंदी ने हनुमान जी को यहां पर मदद के लिए भेजा. इसके बाद श्री राम और लक्ष्मण को बंधन से मुक्त कराकर अहिरावण का वध किया. पुजारी सुधाकर दुबे बताते हैं कि इसलिए माता को बंधनों से मुक्त करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है.
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मुख्य द्वार पर लगे हैं हजारों ताले: उन्होंने बताया कि जब काशी की स्थापना भगवान शंकर कर रहे थे, तब अलग-अलग देवी-देवताओं को यहां पर बसने का आमंत्रण दिया जा रहा था. तभी माता को आग्रह करके यहां पर स्थापित किया. तब से माता का यह प्राचीन मंदिर यहां पर स्थापित है और लोगों को बंधनों से मुक्त होने का आशीर्वाद दे रहा है. मुख्य पुजारी का कहना है कि मंदिर के मुख्य द्वार पर बंद हजारों ताले उन हजारों लोगों की आस्था का प्रतीक हैं, जो बंदी माता को अपनी कुलदेवी मानते हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार झारखंड से बड़ी संख्या में लोग यहां पर आते हैं. अब तो विदेशों से भी लोग बड़ी संख्या में यहां आने लगे हैं. इस मंदिर में कोर्ट, कचहरी और बेवजह में फंसे मुकदमों से मुक्ति के लिए लोग 41 दिनों का अनुष्ठान करते हैं.
मुरादें पूरी होने के बाद ताला खोलते हैं श्रद्धालु : ऐसी मान्यता है कि 41 दिनों तक यहां नियमित दर्शन करने से मनचाही मुराद की पूर्ति होती है. इसी अनुष्ठान की पूर्ति की शुरुआत यहां पर लोग एक ताला बंद करके करते हैं. ताला बंद करने के बाद यहां पूजा करते हैं और अपनी मन्नत को मां के आगे रखते हैं. मन्नत पूरी होने के बाद लोग यहां आते हैं और ताला खोलते हैं और उसे चाबी के साथ गंगा में प्रवाहित करके माता का श्रृंगार और भोग करवाते हैं. यही वजह है कि अनादि काल से काशी में बंदी माता मंदिर को ताले वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है. यहां आने वाले भक्तों का कहना है हमारी आस्था माता से अटूट है. हमारी मन्नतें यहां पूरी होती हैं. हम यहां पर आकर 41 दिनों का अनुष्ठान पूरा करके अपने जीवन को धन्य मानते हैं.