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MP: मेहंदी से बनी तिरुपति बालाजी की 9 फीट ऊंची पेंटिग, वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम हुआ दर्ज

कला भगवान का दिया हुआ नायाब तोहफे की तरह होता है. कई लोग हैं जिनमें कोई न कोई कला जरूर होती है. कोई इसे समय रहते पहचान लेता है और उस पर आगे बढ़ता है, तो कोई इसे उम्र भर जान ही नहीं पाता. जबलपुर की दीक्षा गुप्ता ने बहुत ही छोटी उम्र से अपने हुनर को पहचाना और आज इसी हुनर से अपनी पहचान बनाई है.

mehndi painting
मेहंदी की पेंटिग्स
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Published : Apr 17, 2023, 7:56 PM IST

मेहंदी से बनाती पेंटिग्स

जबलपुर। आमतौर पर मेहंदी का इस्तेमाल सजने संवरने और खूबसूरत दिखने के लिए किया जाता है लेकिन इसी मेहंदी से अगर कैनवास पर आकर्षक पेंटिंग बनाई जाए तो हर किसी का चौंकना लाजमी है. जबलपुर की रहने वाली दीक्षा गुप्ता ने ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है. दीक्षा ने कैनवास पर एक-दो नहीं बल्कि 9 फुट ऊंची पेंटिंग बनाकर पूरे परिवार के साथ साथ जबलपुर का भी नाम रोशन किया है. 9 फुट लंबी और 6 फुट चौड़ी तिरुपति बालाजी की पेंटिंग मेहंदी के जरिए बनाकर दीक्षा गुप्ता ने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्डस और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में अपना नाम दर्ज कराया है.

इसके साथ ही एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए भी दीक्षा ने आवेदन दिया है जिसे मंजूर कर लिया गया है और जल्द ही यह रिकॉर्ड भी दीक्षा के नाम होगा. यह रिकॉर्ड दीक्षा के नाम होने के बाद पूरे परिवार में एक खुशी का माहौल है. शुरू से ही पेंटिंग का शौक रखने वाली दीक्षा गुप्ता बीबीए पास आउट है और वह इसके पहले धर्म और आध्यात्म से जुड़ी कई पेंटिंग को मेहंदी के जरिए आकार दे चुकी हैं.

4 मांह में बनी पेंटिंग: तिरुपति बालाजी की 9 फुट ऊंची मेहंदी की पेंटिंग बनाने में दीक्षा को करीब 4 माह का वक्त और 2 किलो मेहंदी का उपयोग किया गया. रोजाना वह 5 से 6 घंटे तक मेंहदी कॉर्न की मदद से बालाजी की पेंटिंग बनाती रहीं. दीक्षा बताती है कि 20 जून 2022 से उन्होंने यह पेंटिंग बनाने की शुरुआत की थी. जिसे 16 सितंबर 2022 को पूरा कर लिया गया और जिसके बाद जनवरी शुरुआत में उन्होंने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए आवेदन किया. 27 जनवरी को यह रिकॉर्ड दर्ज कर लिया गया. जिसके बाद 7 अप्रैल को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी नाम दर्ज किया.

दीक्षा बना चुकी हैं कई पेंटिंग: दीक्षा बताती है कि वह एक मध्यम वर्ग के परिवार से हैं पिता मां भाई सहित 20 लोग संयुक्त परिवार में एक साथ रहते हैं. पिता का संजय गुप्ता का कॉस्मेटिक का व्यापार है और मां गृहणी हैं. दीक्षा 12 साल की उम्र से मेहंदी लगा रही हैं. अपनी पढ़ाई के साथ इस कला को वक्त देती रही और अब प्रोफेशनल मेहंदी आर्टिस्ट है. दीक्षा ने अपनी मेहंदी की कला से रामदरबार, दुर्गा माता का स्वरूप, शंकर पार्वती के साथ ही राधा-कृष्ण भगवान बुद्ध के साथ ही केवट की नाव में राम लक्ष्मण सीता बैठे हुए पेंटिंग बनाई थी जिसे जया किशोरी को भेंट की थी.

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कोरोना काल में कला को संवारा: दीक्षा ने बताया कि प्रोफेशन से जुड़ने के बाद ज्यादा वक्त नहीं मिलता, लेकिन कोरोना के दौरान लाकडाउन में काफी समय मिला जिससे कि मेहंदी के साथ ही कुछ नया करने में समय दिया. कई नए डिजाइन बनाए. भक्तिभाव को मेहंदी के जरिए प्रदर्शित किया. मेहंदी से पेटिंग बनाने की शुरूआत कोविड के दौरान बने हालातों में ही हुई. दीक्षा ने मेहंदी से राम दरबार, दुर्गा मां का स्वरूप, गौतम बुद्ध, शिव पार्वती विवाह, कृष्ण भागवत गीता को तैयार किया. इसके साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पेंटिंग भी बनाई थी जिसे जबलपुर के सेंट्रल जेल में लगाया गया है.

भजनों को सुनकर तैयार करती हैं पेंटिग: दीक्षा ने बताया की इस तरह के स्वरूप को तैयार करने के लिए भजनों को सुनती हैं, तभी ये उसे बेहतर तरह से बना पाती हैं. जब मां के भजनों को सुना तब उनकी तस्वीर आंखों में उतरी और उसे बना लिया. कभी भी अचानक से बैठकर इन डिजाइन, को तैयार नहीं किया जा सकता. भक्तिभाव को जब महसूस करते हैं, तभी कला उभर कर सामने आती है. इसे दो दिनों में तैयार किया है. इसे एक दिन में भी पूरा किया जा सकता है, लेकिन समय न मिलने के कारण एक दिन में चार घंटे का समय दिया और इसे तैयार किया है.

मेहंदी से बनाती पेंटिग्स

जबलपुर। आमतौर पर मेहंदी का इस्तेमाल सजने संवरने और खूबसूरत दिखने के लिए किया जाता है लेकिन इसी मेहंदी से अगर कैनवास पर आकर्षक पेंटिंग बनाई जाए तो हर किसी का चौंकना लाजमी है. जबलपुर की रहने वाली दीक्षा गुप्ता ने ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है. दीक्षा ने कैनवास पर एक-दो नहीं बल्कि 9 फुट ऊंची पेंटिंग बनाकर पूरे परिवार के साथ साथ जबलपुर का भी नाम रोशन किया है. 9 फुट लंबी और 6 फुट चौड़ी तिरुपति बालाजी की पेंटिंग मेहंदी के जरिए बनाकर दीक्षा गुप्ता ने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्डस और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में अपना नाम दर्ज कराया है.

इसके साथ ही एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए भी दीक्षा ने आवेदन दिया है जिसे मंजूर कर लिया गया है और जल्द ही यह रिकॉर्ड भी दीक्षा के नाम होगा. यह रिकॉर्ड दीक्षा के नाम होने के बाद पूरे परिवार में एक खुशी का माहौल है. शुरू से ही पेंटिंग का शौक रखने वाली दीक्षा गुप्ता बीबीए पास आउट है और वह इसके पहले धर्म और आध्यात्म से जुड़ी कई पेंटिंग को मेहंदी के जरिए आकार दे चुकी हैं.

4 मांह में बनी पेंटिंग: तिरुपति बालाजी की 9 फुट ऊंची मेहंदी की पेंटिंग बनाने में दीक्षा को करीब 4 माह का वक्त और 2 किलो मेहंदी का उपयोग किया गया. रोजाना वह 5 से 6 घंटे तक मेंहदी कॉर्न की मदद से बालाजी की पेंटिंग बनाती रहीं. दीक्षा बताती है कि 20 जून 2022 से उन्होंने यह पेंटिंग बनाने की शुरुआत की थी. जिसे 16 सितंबर 2022 को पूरा कर लिया गया और जिसके बाद जनवरी शुरुआत में उन्होंने इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए आवेदन किया. 27 जनवरी को यह रिकॉर्ड दर्ज कर लिया गया. जिसके बाद 7 अप्रैल को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी नाम दर्ज किया.

दीक्षा बना चुकी हैं कई पेंटिंग: दीक्षा बताती है कि वह एक मध्यम वर्ग के परिवार से हैं पिता मां भाई सहित 20 लोग संयुक्त परिवार में एक साथ रहते हैं. पिता का संजय गुप्ता का कॉस्मेटिक का व्यापार है और मां गृहणी हैं. दीक्षा 12 साल की उम्र से मेहंदी लगा रही हैं. अपनी पढ़ाई के साथ इस कला को वक्त देती रही और अब प्रोफेशनल मेहंदी आर्टिस्ट है. दीक्षा ने अपनी मेहंदी की कला से रामदरबार, दुर्गा माता का स्वरूप, शंकर पार्वती के साथ ही राधा-कृष्ण भगवान बुद्ध के साथ ही केवट की नाव में राम लक्ष्मण सीता बैठे हुए पेंटिंग बनाई थी जिसे जया किशोरी को भेंट की थी.

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कोरोना काल में कला को संवारा: दीक्षा ने बताया कि प्रोफेशन से जुड़ने के बाद ज्यादा वक्त नहीं मिलता, लेकिन कोरोना के दौरान लाकडाउन में काफी समय मिला जिससे कि मेहंदी के साथ ही कुछ नया करने में समय दिया. कई नए डिजाइन बनाए. भक्तिभाव को मेहंदी के जरिए प्रदर्शित किया. मेहंदी से पेटिंग बनाने की शुरूआत कोविड के दौरान बने हालातों में ही हुई. दीक्षा ने मेहंदी से राम दरबार, दुर्गा मां का स्वरूप, गौतम बुद्ध, शिव पार्वती विवाह, कृष्ण भागवत गीता को तैयार किया. इसके साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पेंटिंग भी बनाई थी जिसे जबलपुर के सेंट्रल जेल में लगाया गया है.

भजनों को सुनकर तैयार करती हैं पेंटिग: दीक्षा ने बताया की इस तरह के स्वरूप को तैयार करने के लिए भजनों को सुनती हैं, तभी ये उसे बेहतर तरह से बना पाती हैं. जब मां के भजनों को सुना तब उनकी तस्वीर आंखों में उतरी और उसे बना लिया. कभी भी अचानक से बैठकर इन डिजाइन, को तैयार नहीं किया जा सकता. भक्तिभाव को जब महसूस करते हैं, तभी कला उभर कर सामने आती है. इसे दो दिनों में तैयार किया है. इसे एक दिन में भी पूरा किया जा सकता है, लेकिन समय न मिलने के कारण एक दिन में चार घंटे का समय दिया और इसे तैयार किया है.

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