हैदराबाद : हिंद महासागर में भारत कैसे राज करेगा ? क्या भारत के पास चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल पॉलिसी का तोड़ है ? अगर भारत नेवी की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में सफल होगा तभी वह चीन का मुकाबला कर पाएगा. इस फिक्र के बीच दो बड़ी खबर आई, जो भारतीय नौसेना के लिए सुखद है. पहला, भारत के पहले स्वदेशी विमान वाहक (आईएसी) विक्रांत ने पांच दिवसीय अपनी पहली समुद्री यात्रा रविवार को सफलतापूर्वक पूरी कर ली है. यह 2022 में नौसेना में शामिल हो जाएगा. इसके अलावा INS विशाल का निर्माण भी शुरू हो गया है. दूसरी खबर कतर के न्यूज चैनल अल जजीरा ने दी. भारत हिंद महासागर (Indian Ocean) में मॉरीशस के अगालेगा (Agalega) द्वीप पर नौसैनिक अड़्डा बना रहा है. अगर यह सच है तो भारत हिंद महासागर में अपनी सामरिक स्थिति मजबूत करने के लिए कई स्तरों पर काम कर रहा है.
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Proud & historic day for India as the reincarnated #Vikrant sails for her maiden sea trials today, in the 50th year of her illustrious predecessor’s key role in victory in the #1971war
— SpokespersonNavy (@indiannavy) August 4, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
Largest & most complex warship ever to be designed & built in India.
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पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर IAC-1 आईएनएस विक्रांत के बारे में जानते हैं. यह विमानवाहक पोत 4 अगस्त को कोच्चि से रवाना हुआ था. भारतीय नौसेना ने कहा, योजना के अनुसार ही आईएनएस विक्रांत परीक्षण आगे बढ़ा और सिस्टम पैरामीटर संतोषजनक साबित हुआ.
नौसेना के अनुसार, विक्रांत के निर्माण में लगाए गए 76 फीसदी से अधिक उपकरण स्वदेशी हैं. इस परियोजना की लागत लगभग 23 हजार करोड़ है. यह एयरक्राफ्ट कैरियर करीब 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है. कुल मिलाकर यह समंदर पर एक बड़ा कस्बा है. समंदर की लहरों पर इसकी टॉप स्पीड 52 किलोमीटर प्रति घंटे है. इसमें 14 फ्लोर हैं और 2300 कंपार्टमेंट हैं, जिसमें 1700 नौसैनिक तैनात किए जा सकते हैं. इसे आईएनएस विक्रमादित्य की बराबर क्षमता वाला ही माना जा रहा है. जो 44,500 टन का पोत है और लड़ाकू जेट-हेलीकॉप्टर सहित 34 विमान तक ले जा सकता है.
आपको याद होगा भारत के बाद पहले भी आईएनएस विक्रांत नाम का एक एयरक्राफ्ट कैरियर था, जिसे 1997 मे डिकमीशन कर दिया गया था. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में आईएऩएस विक्रांत ने हिंदुस्तान की जीत में अहम भूमिका निभाई थी. इस वजह से ही इस विमानवाहक पोत का नाम विक्रांत रखा गया. इसके सफल परीक्षण के साथ ही भारत के स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने के मिशन को गति मिल गई है. कोच्चि में INS विशाल नाम का एक और विमान वाहक तैयार हो रहा है. वह विक्रांत और INS विक्रमादित्य से काफी बड़ा होगा.
2015 से ही भारत बना रहा है रणनीति
अब बात हिंद महासागर में चीन को मुंहतोड़ जबाव देने वाले प्रोजेक्ट की, जिसकी शुरुआत 2015 में हुई थी. अल जजीरा ने ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के थिंक टैंक से मिले इनपुट के आधार पर कहा है कि भारत अगालेगा में इंटरनैशलन स्टैंडर्ड का 3 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी बना रहा है, जिस पर P-8I एयरक्राफ्ट आसानी से उतर सकते हैं.
मॉरीशस की सरकार ने इस दावे का खंडन किया है. मॉरीशस सरकार का कहना है कि अगालेगा द्वीप पर भारत मिलिट्री बेस बनाने की इजाजत नहीं दी है. 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान भारत से अगालेगा द्वीप को विकसित करने के लिए एक समझौता हुआ था. उसके तहत ही अगालेगा में रनवे और जेट्टी बनाए जा रहे हैं. इसका उपयोग मॉरीशस की नेवी भी करेगी. जेट्टी का इस्तेमाल पानी जहाजों को ठहरने के लिए किया जाता है.
थिंक टैंक ने सवाल उठाया है कि अगालेगा द्वीप पर महज 280-300 लोगों के रहने का अनुमान है. फिर भारत सरकार उसके डिवेलपमेंट पर करीब 85 करोड़ यूएस डॉलर क्यों खर्च करेगा. मॉरीशस के पास एयरफोर्स नहीं है तो हवाई पट्टी क्यों बनाई जा रही है. साथ ही अगालेगा आईलैंड में हो रहे काम के सैटेलाइट फोटो होने का दावा किया है, जिसके आधार पर वहां नेवी बेस बनाने की बात कही गई है. इस मुद्दे पर मॉरीशस की विपक्षी पार्टियां भी हंगामा कर चुकी है.
अगालेगा द्वीप मॉरीशस में कहां है : अगालेगा (Agalega) हिन्द महासागर (Indian Ocean) में स्थित मॉरीशस के स्वामित्व का वाला दो टापुओं का समूह है. उत्तरी द्वीप 12.5 किलोमीटर लंबा और 1.5 किलोमीटर चौड़ा है, वहीं दक्षिणी द्वीप 7 किलोमीटर लंबा और 4.5 किलोमीटर चौड़ा है. यह मॉरीशस के मुख्य द्वीप से लगभग 933 किलोमीटर दूर स्थित है. एयर रनवे उत्तरी द्वीप पर बना है. यहां रहने वाले लोगों का मुख्य काम मछली का शिकार और नारियल की खेती है.
क्या है चीन का स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स : चीन ने स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स यानी हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में भारत की घेराबंदी के लिए तैयार किया गया है. हर पर्ल यानी चीन की सेना किसी न किसी तरह से क्षेत्र में स्थायी तौर पर मौजूद है. यह वह रुट है जिसका प्रयोग चीन बिना किसी रोक टोक के कर सकता है. पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हंबनटोटा, सेशेल्स, मालदीव, बांग्लादेश और म्यांमार में चीन ने अपने सैन्य अड्डे बना लिए हैं. अब वह अफ्रीकी देश जिबूती में सैन्य बेस बना रहा है.
क्यों महत्वपूर्ण है अगालेगा : दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को कम करने के लिए भारत को भी सैन्य अड्डे की जरूरत होगी. हिंद महासागर से विश्व के दो तिहाई ईंधन की सप्लाई होती है. भारत का 95 प्रतिशत बिजनेस इसी रास्ते से होता है. इसलिए अगालेगा में भारत की सैन्य उपस्थिति महत्वपूर्ण होगी क्योंकि वहां से इस इलाके में शक्ति संतुलन कर पाएगा. साथ ही, भारतीय नौसेना की क्षमता में बढ़ोतरी होगी. चीन के जहाजों, युद्धपोतों और पनडुब्बियों पर नजर रख सकता है.
हिंद महासागर के इस इलाके में अमेरिका ने मॉरीशस के द्वीप डिएगो गार्सिया पर सैन्य ठिकाना बना रखा है. 12 मार्च 1968 से पहले मॉरीशस भी अंग्रेजों का गुलाम था. 1966 में अंग्रेजों ने इस मॉरीशस के इस द्वीप को लीज पर अमेरिका को दे दिया. रिपोर्टस के अनुसार, मार्च 1971 के बाद अमेरिका ने विरोध के बीच वहां रहने वालों को दूसरी जगहों पर शिफ्ट किया और डिएगो गार्सिया पर सैन्य बेस बना लिया. इराक, अफगानिस्तान और खाड़ी युद्ध में डिएगो गार्सिया से ही कई ऑपरेशन संचालित किए गए. 2036 तक यह द्वीप अमेरिका के कब्जे में ही रहेगा. यानी हिंद महासागर में दो सशक्त देशों की मौजूदगी के बीच भारत की उपस्थिति भी जरूरी है.
मॉरीशस से भारत के रिश्ते : मॉरीशस ऐसा देश है, जहां भारतवंशी मौजूद हैं. अंग्रेज 1934 से 1920 तक भारतीय गिरमिटिया मजदूर गन्ने की खेती के लिए मॉरीशस ले गए. तत्कालीन बंगाल प्रोवेंसी का हिस्सा रहे बिहार के आरा, भोजपुर, रोहतास, कैमूर, बक्सर ,गाजीपुर, मुजफ्फरपुर, चंपारण, शाहाबाद, पटना और गया से मजदूर लालच देकर ले जाए गए. इसके अलावा यूनाइटेड प्रोविंस यानी यूपी के पूर्वांचल से भी लोगों को जबरन मॉरीशस भेजा गया था. इस कारण वहां आज भी हिंदुस्तानी नाम रखे जाते हैं. वहां भोजपुरी भी बोली जाती है. 48.5 प्रतिशत आबादी हिन्दू धर्म का पालन करती है. इसके बाद वहां 32.7 प्रतिशत ईसाई, 17.2 प्रतिशत मुस्लिम और लगभग 0.7 प्रतिशत अन्य धर्मों के लोग हैं.