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भारत के हेल्थ विशेषज्ञों ने अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों पर रोक लगाने का किया आह्वान

बाल रोग विशेषज्ञों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों सहित भारत के शीर्ष चिकित्सकों ने केंद्र सरकार से सभी अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों पर चेतावनी लेबल लगाने की अनिवार्यता जारी करने की मांग की है, ताकि लोगों के जीवन को गैर-संचारी रोग (एनसीडी) के संकट से बचाया जा सके. पढ़ें ईटीवी के वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

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Published : Aug 31, 2021, 7:59 PM IST

Updated : Aug 31, 2021, 8:23 PM IST

नई दिल्ली : देश के स्वास्थ्य क्षेत्र विशेषज्ञों द्वारा एक प्रस्ताव के माध्यम से केंद्र सरकार से अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों पर चेतावनी लेबल अनिवार्य करने की अपील हुई है. चिकित्सकों ने हाल के एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (यूपीएफ) और पेय पदार्थों के अधिक सेवन से कैंसर, हृदय रोग सहित यकृत और विभिन्न घातक बीमारियों का खतरा है. ये पदार्थ अधिक वजन और मोटापा का भी प्रमुख कारक होते हैं.

विशेषज्ञों ने केंद्र सरकार से इस आवेदन पर तत्काल विचार करने का आह्वान किया है. अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों जैसे चीनी, नमक या संतृप्त वसा में उच्च खाद्य उत्पादों पर अनिवार्य चेतावनी लेबल होना चाहिए. विशेषज्ञों ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार हर इंसान का मौलिक अधिकार है.

युवाओं का स्वास्थ्य राष्ट्र की संपत्ति है. इसलिए भारतीय संदर्भ में राज्यों को नियामक उपायों को अपनाने की आवश्यकता है. जैसे कि खाद्य और पेय पदार्थों पर अत्यधिक मात्रा में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों वाले पैकेज के सामने चेतावनी लेबलिंग होनी चाहिए. जिससे मोटापा और एनसीडी के बढ़ते बोझ से निपटा जा सके.

इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम) की अध्यक्ष डॉ सुनीला गर्ग ने कहा कि भारत में 21 राज्यों में 233672 लोगों और 676 सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यालयों को कवर करते हुए इस तरह की बीमारी पर किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में कहा गया है कि एनसीडी का बोझ लंबे समय तक बना रहता है क्योंकि देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र की है.

इसमें कहा गया है कि बदलती जीवनशैली, शहरीकरण, प्रदूषण और बढ़ती उम्र की आबादी हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर सहित अन्य बीमारियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. पीडियाट्रिक एंड एडोलसेंट न्यूट्रिशन सोसाइटी (PAN)- IAP न्यूट्रीशन चैप्टर और एपिडेमियोलॉजी फाउंडेशन ऑफ इंडिया (EFI) के विशेषज्ञों ने बताया कि खाद्य उद्योग निहित स्वार्थ के कारण चेतावनी लेबल दिशा-निर्देशों में देरी करते हैं.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का विपणन 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और किशोरों के लिए स्वास्थ्य के लिए खतरा है क्योंकि अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों के सेवन के कारण वे एनसीडी का सबसे कमजोर समूह हैं.

साओ पाउलो विश्वविद्यालय ब्राजील के पोषण केंद्र से सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक विशेषज्ञ नेहा खंडपुर ने कहा कि उपभोक्ताओं की समझ में सुधार करने, उनके खरीद निर्णयों को प्रभावित करने और स्वस्थ भोजन विकल्पों का समर्थन करने में चेतावनी लेबल अप्रभावी दिखते हैं.

वे उत्पाद सुधारों को प्रोत्साहित करने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं. चेतावनी लेबल सबसे मजबूत पोषक तत्व-आधारित लेबल हैं जिन्हें भारत को लागू करने पर विचार करना चाहिए.

यह भी पढ़ें-Covid Vaccine : भारत ने तोड़े रिकॉर्ड, एक ही दिन में 1.09 करोड़ + टीके

पोषण नीति पर काम करने वाले राष्ट्रीय थिंक टैंक जनहित में पोषण वकालत (एनएपीआई) के संयोजक डॉ अरुण गुप्ता ने कहा कि अगर हम अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड की बिक्री में ब्रेक नहीं लगाते हैं तो भारत मोटापे की महामारी के क्लब में शामिल हो जाएगा.

नई दिल्ली : देश के स्वास्थ्य क्षेत्र विशेषज्ञों द्वारा एक प्रस्ताव के माध्यम से केंद्र सरकार से अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों पर चेतावनी लेबल अनिवार्य करने की अपील हुई है. चिकित्सकों ने हाल के एक शोध का हवाला देते हुए कहा कि अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (यूपीएफ) और पेय पदार्थों के अधिक सेवन से कैंसर, हृदय रोग सहित यकृत और विभिन्न घातक बीमारियों का खतरा है. ये पदार्थ अधिक वजन और मोटापा का भी प्रमुख कारक होते हैं.

विशेषज्ञों ने केंद्र सरकार से इस आवेदन पर तत्काल विचार करने का आह्वान किया है. अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों जैसे चीनी, नमक या संतृप्त वसा में उच्च खाद्य उत्पादों पर अनिवार्य चेतावनी लेबल होना चाहिए. विशेषज्ञों ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार हर इंसान का मौलिक अधिकार है.

युवाओं का स्वास्थ्य राष्ट्र की संपत्ति है. इसलिए भारतीय संदर्भ में राज्यों को नियामक उपायों को अपनाने की आवश्यकता है. जैसे कि खाद्य और पेय पदार्थों पर अत्यधिक मात्रा में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों वाले पैकेज के सामने चेतावनी लेबलिंग होनी चाहिए. जिससे मोटापा और एनसीडी के बढ़ते बोझ से निपटा जा सके.

इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम) की अध्यक्ष डॉ सुनीला गर्ग ने कहा कि भारत में 21 राज्यों में 233672 लोगों और 676 सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यालयों को कवर करते हुए इस तरह की बीमारी पर किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में कहा गया है कि एनसीडी का बोझ लंबे समय तक बना रहता है क्योंकि देश की 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम उम्र की है.

इसमें कहा गया है कि बदलती जीवनशैली, शहरीकरण, प्रदूषण और बढ़ती उम्र की आबादी हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर सहित अन्य बीमारियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. पीडियाट्रिक एंड एडोलसेंट न्यूट्रिशन सोसाइटी (PAN)- IAP न्यूट्रीशन चैप्टर और एपिडेमियोलॉजी फाउंडेशन ऑफ इंडिया (EFI) के विशेषज्ञों ने बताया कि खाद्य उद्योग निहित स्वार्थ के कारण चेतावनी लेबल दिशा-निर्देशों में देरी करते हैं.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का विपणन 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और किशोरों के लिए स्वास्थ्य के लिए खतरा है क्योंकि अस्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों के सेवन के कारण वे एनसीडी का सबसे कमजोर समूह हैं.

साओ पाउलो विश्वविद्यालय ब्राजील के पोषण केंद्र से सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक विशेषज्ञ नेहा खंडपुर ने कहा कि उपभोक्ताओं की समझ में सुधार करने, उनके खरीद निर्णयों को प्रभावित करने और स्वस्थ भोजन विकल्पों का समर्थन करने में चेतावनी लेबल अप्रभावी दिखते हैं.

वे उत्पाद सुधारों को प्रोत्साहित करने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं. चेतावनी लेबल सबसे मजबूत पोषक तत्व-आधारित लेबल हैं जिन्हें भारत को लागू करने पर विचार करना चाहिए.

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पोषण नीति पर काम करने वाले राष्ट्रीय थिंक टैंक जनहित में पोषण वकालत (एनएपीआई) के संयोजक डॉ अरुण गुप्ता ने कहा कि अगर हम अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड की बिक्री में ब्रेक नहीं लगाते हैं तो भारत मोटापे की महामारी के क्लब में शामिल हो जाएगा.

Last Updated : Aug 31, 2021, 8:23 PM IST
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