नई दिल्ली : सरकार द्वारा लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद मुस्लिम संस्था के विरोध पर विवाद खड़ा हो गया (girls marriage age controversy) है. उनके विरोध के चलते कांग्रेस ने कहा है कि इसे 2022 में लागू नहीं किया जाना चाहिए. जमात-ए-इस्लामी हिंद ने महिलाओं की शादी की कानूनी उम्र बढ़ाकर 21 करने के कदम पर चिंता जताई है.
कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि कानून लाना जल्दबाजी होगी और उससे पहले जागरूकता पैदा करना जरूरी है. हालांकि, पी चिदंबरम ने कहा, 'लड़कियों के लिए शादी की उम्र को बढ़ाकर 21 करने और इसे लड़कों के समान बनाने की समझदारी पर बहस चल रही है. मेरा विचार है कि शादी की उम्र लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए समान होनी चाहिए, लेकिन संशोधित कानून 1-1-2023 या उसके बाद लागू होना चाहिए. वर्ष 2022 का उपयोग लड़के या लड़की के 21 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद ही शादी के लाभों पर बड़े पैमाने पर शैक्षिक अभियान के लिए किया जाना चाहिए.' (p Chidambaram backs Centre).
जेआईएच के अध्यक्ष सदातुल्ला हुसैनी ने एक बयान में कहा कि हमें नहीं लगता कि भारत में महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र को बढ़ाकर 21 करना एक समझदारी भरा कदम है. वर्तमान में, एक वैश्विक सहमति है कि महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र 18 साल होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि सरकार को लगता है कि 21 वर्ष की आयु बढ़ाने से मातृत्व की आयु बढ़ेगी, प्रजनन दर कम होगी और माताओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य में सुधार होगा. हालाँकि, डेटा इस दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करता है.
उन्होंने कहा, 'हमारे देश में माताओं और युवा शिशुओं के खराब स्वास्थ्य संकेतक गरीबी और कुपोषण के कारण हैं. यदि गरीबी और स्वास्थ्य देखभाल की खराब पहुंच मौजूदा ऊंचे स्तर पर बनी रहती है तो आयु सीमा बढ़ाने से इन स्वास्थ्य संकेतकों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. प्रजनन दर भी गिर रही है. इसलिए यह मानना कि महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र को 21 तक बढ़ाने से महिलाओं की स्थिति में सुधार होने वाला है, गलत है.'
हुसैनी ने ट्विट करके कहा, 'सरकार को जल्दबाजी में कानून पारित नहीं करना चाहिए, लेकिन समुदाय के नेताओं और संबंधित डोमेन के विषय विशेषज्ञों के साथ बातचीत शुरू करके इस मुद्दे पर आम सहमति विकसित करनी चाहिए.'
जमात-ए-इस्लामी हिंद ने तर्क दिया कि यह कदम प्रकृति के कानून के खिलाफ है और इससे मनोवैज्ञानिक, चिकित्सा, सामाजिक और मानवाधिकार के मुद्दे पैदा होंगे. सर्वेक्षणों से यह स्पष्ट है कि कुछ महिलाएं जो 30 साल की उम्र के बाद पहली बार मां बनती हैं, उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. जमात नेताओं का कहना है कि उम्र सीमा में वृद्धि का असर हमारे देश की जनसंख्या की प्रकृति पर भी लंबे समय में पड़ेगा, जिसमें अब युवाओं की संख्या अधिक है.
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'निश्चित रूप से, युवा आबादी देश के लिए सबसे मूल्यवान संपत्ति है. एक बार प्रस्ताव कानून बनने के बाद, यह आदिवासी समुदायों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा और कानून-प्रवर्तन तंत्र के हाथों उन्हें और अधिक उत्पीड़न के अधीन करेगा.'