छिंदवाड़ा। निजी और महंगे स्कूलों में तो हर सुख सुविधाएं आपने देखी होंगी, लेकिन मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परतला में एक ऐसा सरकारी स्कूल है, जिसके शिक्षकों ने अपने खर्चे पर कायाकल्प कर दिया है. जहां की हर दीवार कुछ न कुछ कहती है. इस अद्भुत स्कूल के स्टैंडर्ड को देखकर हर कोई कहेगा कि स्कूल हो तो ऐसा. इस स्कूल को देखकर तो कोई बच्चा भी यहां आने से कतई इंकार नहीं कर सकेगा.
चित्रों से सजी है स्कूल की हर दीवारः किताबी ज्ञान से पढ़ाना और बच्चों को काबिल बनाने का काम हर शिक्षक करते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल परतला के शिक्षकों ने सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे कि बच्चा शिक्षित होने के साथ-साथ उन चीजों को जिंदगी में ढाल सके. साथ ही उसने जो सबक यहां सीखा वह हमेशा याद रहे. इसलिए स्कूल की हर दीवार को चित्रों से सजा डाला. यहां बिना किताबों के भी हो सकती है पढ़ाई. शिक्षकों ने स्कूल की दीवारों में हिंदी के क,ख, ग,घ से लेकर गणित के सूत्र विज्ञान की परिभाषाएं और अंग्रेजी के अक्षर तक को उकेरा है. जिससे कि अगर बच्चा बिना पुस्तकों के भी स्कूल आए तो आसानी से वह उन्हें देखकर पढ़ सकता है.
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खेल-खेल में बच्चे कर लेते हैं पढ़ाईः इस स्कूल की खासियत यह है कि बच्चे खेल-खेल में पढ़ाई कर लेते हैं. दीवारों के अलावा स्कूल की छत पर ग्रहों की जानकारी तो फर्श पर सांप सीढ़ी के जरिए गणित का अभ्यास होता है. जीवन में काम आने वाली हर चीज को दीवार पर उकेरा. अधिकतर ग्रामीण इलाकों में हवाई जहाज रेलगाड़ी छोटे बच्चों के लिए नई चीज होती है. परतला में इसलिए शिक्षक ने स्वच्छ भारत के नारों के साथ ही एजुकेशन एक्सप्रेस और हवाई जहाज से लेकर लोगों और बच्चों को जागरूक करने के लिए चित्रों के माध्यम से सजाया है. बच्चे भी अनुशासन के साथ पढ़ाई में हैं अव्वल. पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक के इस स्कूल में सिर्फ दीवार और स्कूल को ही नहीं सजाया गया है. यहां पढ़ने वाले बच्चों में अनुशासन और पढ़ाई के प्रति भी उतना ही जुनून है. हर बच्चा दिनचर्या के हिसाब से फुल स्कूल यूनिफार्म में स्कूल आता है. पढ़ाई के मामले में यह बच्चे किसी भी निजी स्कूल को मात देने का माद्दा रखते हैं.
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जनभागीदारी से भी मिली मददः सुनकर कुछ अटपटा जरूर लगेगा लेकिन यह बिल्कुल सत्य है शिक्षकों ने आपस में चंदाकर स्कूल को बना दिया मॉडल स्कूल. शिक्षकों का कहना है कि स्कूलों में बच्चों का रुझान बढ़े और पढ़ाई ठीक से हो सके इसके लिए वे भरसक प्रयास करते हैं. हालांकि अतिरिक्त कार्य करने के लिए कोई ऐसा बजट नहीं आता है. लेकिन बच्चों की पढ़ाई अच्छी हो सके और उन्हें अच्छा भविष्य मिल सके इसके लिए स्कूल के शिक्षकों ने आपस में पैसों का चंदा किया और कुछ जन भागीदारी भी हो गई. जिसके बदौलत स्कूल को बेहतर बनाने की कोशिश की गई है. शिक्षकों का कहना है कि प्राइमरी की शिक्षा बच्चों के लिए कच्चे घड़े के समान होती है. उन्हें जिस तरीके से ढाला जाएगा वह वैसे ही बन जाते हैं. छोटे बच्चे किताबों की बजाय देखने में ज्यादा रुचि रखते हैं. उन्होंने इसीलिए दीवारों में वह हर चीज पेंटिंग कराई है जो बच्चों के जिंदगी भर काम आ सके.