पटना : बिहार में सचिवालय थाने में फरियाद लेकर पहुंची महिलाओं के साथ दारोगा का दुर्व्यवहार (Secretariat SHO Misbehavior) करने से पुलिस पर सवाल उठने लगे. सवाल ये भी था कि क्या बिहार पुलिस को महिलाओं से बात करने का तरीका नहीं पता ? क्या पुलिस जनता की नौकर न होकर मालिक बन गई है ? इस मुद्दे पर बात करते हुए दारोगा का बिना नाम लिए आईजी प्राणतोष कुमार दास (IG PK Das On Modern Policing) ने कहा कि वायरल हो रहे वीडियो से लगता है कि दारोगा खुद को मालिक समझ बैठा है. ये उसकी ट्रेनिंग की कमियों का नतीजा है. क्योंकि हमने स्वतंत्र भारत में ऐसे लोगों को पुलिस की ट्रेनिंग तो दी, लेकिन रेग्यूलेटरी पुलिस (गुलाम भारत की ब्रिटिशकालीन पुलिसिंग) के तौर तरीकों से ट्रेंड किया.
'मैं बिहार पुलिस एकेडमी में डीआईजी था, प्रमोट होकर स्टेट क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो में आईजी बनकर आया हूं. वहां पर हमने लगभग 2000 सब इंस्पेक्टर, 150 डीएसपी को ट्रेंड कर एक साल में बिहार पुलिस को जिलों में वापस भेजा है. जो ट्रेनिंग पुलिस की होती थी वो दो प्रकार से होती है. पहली ट्रेनिंग है 'रेग्यूलेटरी पुलिस' ये पुलिस स्वतंत्रता के पहले थी. दूसरी 'डेवलपमेंटल पुलिस', ये पुलिसिंग स्वतंत्रता के बाद की पुलिस है. मॉडर्न पुलिसिंग में पुलिस का दायित्व समाज के हर विभाग में एक्टिव रोल निभाना है' - प्राणतोष कुमार दास, आईजी, स्टेट क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो, बिहार
ब्रिटिश काल की पुलिस को कोई मतलब नहीं था कि वो भारत को डेवलप करने का काम करे. ब्रिटिशर्स को भारत में अपना शासन हर हाल में चलाना था. रूल भी उस हिसाब से थे. ट्रेनिंग भी उनकी गुलाम भारत के लोगों को कंट्रोल करने के लिए दी जाती थी. लेकिन जब हमारा देश आजाद हुआ तो उसके बाद की पुलिस को 'डेवलपमेंटल पुलिसिंग' कहते हैं. डेवलपमेंटल पुलिसिंग को समाज के हर विभाग में एक्टिव रोल निभाना होता है. यही मॉर्डन पुलिसिंग है.
डिजिटल युग में महिलाओं और बच्चों के प्रति जो साइबर क्राइम होते हैं इसपर सेंसेटिव होने की जरूरत है. पटना के सचिवालय थाने के दारोगा का नाम न लेते हुए आईजी पीके दास ने कहा कि हाल ही में एक थानेदार का वीडियो वायरल हुआ था. एक महिला थाने गई हुई थी और वो उसके साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे. क्यों ? क्या आरोपी दारोगा ने स्वतंत्र भारत में ट्रेनिंग ली थी. उसको ट्रेनिंग आजाद भारत में ही दी गई थी, लेकिन हमारा ट्रेनिंग का तरीका आज भी रेग्युलेटरी पुलिस (स्वतंत्रता से पहले की पुलिस) का है. जहां हम वर्दी, घुड़सवारी, धीरे चाल इनसब पर हम ज्यादा ध्यान रखते हैंं.
उन्होंने कहा कि, पुलिस ट्रेनिंग के दौरान तीन चार महीने तक ट्रेनर धीमी चाल, तेज चाल सिखाता है. धीमी चाल से कोई पेट्रोलिंग होती है क्या? उसको एक हफ्ते में खत्म कर देना चाहिए. हमारी पुलिस को समाज के प्रति ज्यादा सेंसेटिव होनी चाहिए. पुलिस जनता की नौकर है. वो गुलाम भारत की ब्रिटिश पुलिस नहीं है. स्वतंत्र भारत की पुलिस है. उसको ध्यान रखना चाहिए को वो समाज का नौकर ( police public Relationship ) है. हम भी जनता के नौकर हैं. पुलिस को नौकर की तरह पेश आना चाहिए.
पीके दास ने कहा कि महिला से दुर्व्यहार के उदाहरण में पटना का थानेदार (सचिवालय थाने का थानेदार) मालिक बनकर काम कर रहा था. हमने ट्रेनिंग के दौरान इनमें मानवीय मूल्य भरे ही नहीं. उनकी ट्रेनिंग में पीटी परेड पर ज्यादा ध्यान दिया गया. अगर उनको सिखाया जाता कि समाज में उनका क्या दायित्व है. सरकार की उनसे क्या अपेक्षाएं हैं तो वो ऐसा न करते. मॉर्डन पुलिसिंग में इस बात को ज्यादा स्ट्रेस देने की जरूरत है.
बता दें कि 12 जनवरी को एक महिला मोबाइल छिनतई की शिकायत लेकर सचिवालय थाने गई थी. लेकिन वहां तैनात दारोगा चंद्रशेखर प्रसाद गुप्ता (SHO Chandrashekhar Prasad Gupta) ने उसके साथ बुरा बर्ताव किया. फरियादी महिला पर सचिवालय थानेदार रौब झाड़ते रहे. ये वही खाकी थी जिसे 'फ्रेंडली पुलिस' बताया जाता है. थाने में शिकायत दर्ज कराने के बाद जब महिला ने थाने के कर्मियों से रिसिविंग देने की मांग की, तो यह बात यहां के थानाध्यक्ष को नागवार गुजरी. उन्होंने महिला से बदसलूकी शुरू कर दी. जब महिला ने इसकी शिकायत ऊपर के अधिकारियों से करने की बात कही तो थानाध्यक्ष ने महिला को थाने से निकल जाने के लिए कहा. साथ ही थानाध्यक्ष ने यह कहा कि वो अपने बाप को भी बुला लें, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा. इस मामले में अब भी विभागीय जांच जारी है.
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