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शीर्ष अदालत फडणवीस की पुनर्विचार याचिका पर करेगी सुनवाई - false affidavit fadnavis

वकील सतीश उके ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि 2014 के चुनाव का नामांकन दाखिल करते समय देवेंद्र फडणवीस ने झूठा हलफनामा दायर किया था. इतना ही नहीं उन्होंने हलफनामे में अपने खिलाफ दो आपराधिक मामलों की जानकारी भी छिपाई थी. जानें पूरा मामला...

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देवेन्द्र फडणवीस
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Published : Jan 24, 2020, 6:38 PM IST

Updated : Feb 18, 2020, 6:38 AM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के मामले में अपने अक्ट्रबर , 2019 के फैसले पर की पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय मे सुनवाई के लिए सहमत हो गया है. इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि 2014 में नामांकन के साथ दाखिल हलफनामे में दो लंबित आपराधिक मामलों का विवरण नहीं देने के कारण भाजपा नेता को मुकदमे का सामना करना होगा.

न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने गुरुवार को अपने आदेश में कहा, 'पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय में मौखिक सुनवाई के आवेदन की अनुमति दी जाती है. पुनर्विचार याचिका न्यायालय में सूचीबद्ध की जाए.'

शीर्ष अदालत ने एक अक्टूबर, 2019 को अपने फैसले में बंबई उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया था. उच्च न्यायालय ने फडणवीस को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत कथित अपराध के लिए उन पर मुकदमा नहीं चलेगा.

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सतीश उके की याचिका पर फैसला सुनाया था. सतीश उके का कहना था कि फडणवीस ने 2014 में नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे में इन लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी नहीं दी थी.

शीर्ष अदालत ने 23 जुलाई, 2019 को इस मामले की सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि फडणवीस द्वारा अपने चुनावी हलफनामे में दो आपराधिक मामलों के बारे में जानकारी नहीं देने की कथित 'चूक' पर निचली अदालत फैसला कर सकती है.

ये भी पढ़ें-चुनाव से पहले फडणवीस को झटका, हलफनामे में जानकारी छुपाने का चलेगा केस

शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका सिर्फ इस सवाल तक सीमित है कि क्या पहली नजर में इस मामले में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125ए लागू होती है या नहीं. यह प्रावधान हलफनामे में गलत जानकारी देने पर दंड से संबंधित है.
इस धारा के अनुसार अगर नामांकन पत्र में कोई प्रत्याशी लंबित आपराधिक मामलों जैसी जानकारी देने में विफल रहता है तो उसे इस अपराध के लिये छह महीने की कैद या जुर्माना अथवा दोनों हो सकती है.

फडणवीस के खिलाफ कथित धोखाधड़ी और जालसाजी के मामले 1996 और 1998 में दर्ज हुए थे लेकिन इनमें आरोप तय नहीं हुये थे.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के मामले में अपने अक्ट्रबर , 2019 के फैसले पर की पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय मे सुनवाई के लिए सहमत हो गया है. इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि 2014 में नामांकन के साथ दाखिल हलफनामे में दो लंबित आपराधिक मामलों का विवरण नहीं देने के कारण भाजपा नेता को मुकदमे का सामना करना होगा.

न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने गुरुवार को अपने आदेश में कहा, 'पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय में मौखिक सुनवाई के आवेदन की अनुमति दी जाती है. पुनर्विचार याचिका न्यायालय में सूचीबद्ध की जाए.'

शीर्ष अदालत ने एक अक्टूबर, 2019 को अपने फैसले में बंबई उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया था. उच्च न्यायालय ने फडणवीस को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत कथित अपराध के लिए उन पर मुकदमा नहीं चलेगा.

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सतीश उके की याचिका पर फैसला सुनाया था. सतीश उके का कहना था कि फडणवीस ने 2014 में नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे में इन लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी नहीं दी थी.

शीर्ष अदालत ने 23 जुलाई, 2019 को इस मामले की सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि फडणवीस द्वारा अपने चुनावी हलफनामे में दो आपराधिक मामलों के बारे में जानकारी नहीं देने की कथित 'चूक' पर निचली अदालत फैसला कर सकती है.

ये भी पढ़ें-चुनाव से पहले फडणवीस को झटका, हलफनामे में जानकारी छुपाने का चलेगा केस

शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका सिर्फ इस सवाल तक सीमित है कि क्या पहली नजर में इस मामले में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125ए लागू होती है या नहीं. यह प्रावधान हलफनामे में गलत जानकारी देने पर दंड से संबंधित है.
इस धारा के अनुसार अगर नामांकन पत्र में कोई प्रत्याशी लंबित आपराधिक मामलों जैसी जानकारी देने में विफल रहता है तो उसे इस अपराध के लिये छह महीने की कैद या जुर्माना अथवा दोनों हो सकती है.

फडणवीस के खिलाफ कथित धोखाधड़ी और जालसाजी के मामले 1996 और 1998 में दर्ज हुए थे लेकिन इनमें आरोप तय नहीं हुये थे.

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शीर्ष अदालत फडणवीस की पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय में करेगी सुनवाई

नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के मामले में अपने अक्ट्रबर , 2019 के फैसले पर की पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय मे सुनवाई के लिये सहमत हो गया है. इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि 2014 में नामांकन के साथ दाखिल हलफनामे में दो लंबित आपराधिक मामलों का विवरण नहीं देने के कारण भाजपा नेता को मुकदमे का सामना करना होगा.



न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने बृहस्पतिवार को अपने आदेश में कहा, ''पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय में मौखिक सुनवाई के आवेदन की अनुमति दी जाती है. पुनर्विचार याचिका न्यायालय में सूचीबद्ध की जाये.''



शीर्ष अदालत ने एक अक्टूबर, 2019 को अपने फैसले में बंबई उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया था. उच्च न्यायालय ने फडणवीस को क्लीन चिट देते हुये कहा था कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत कथित अपराध के लिये उन पर मुकदमा नहीं चलेगा.



शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सतीश उके की याचिका पर फैसला सुनाया था. सतीश उके का कहना था कि फडणवीस ने 2014 में नामांकन पत्र के साथ दाखिल हलफनामे में इन लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी नहीं दी थी.



शीर्ष अदालत ने 23 जुलाई, 2019 को इस मामले की सुनवाई पूरी करते हुये कहा था कि फडणवीस द्वारा अपने चुनावी हलफनामे में दो आपराधिक मामलों के बारे में जानकारी नहीं देने की कथित 'चूक' पर निचली अदालत फैसला कर सकती है.



शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका सिर्फ इस सवाल तक सीमित है कि क्या पहली नजर में इस मामले में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125ए लागू होती है या नहीं. यह प्रावधान हलफनामे में गलत जानकारी देने पर दंड से संबंधित है. इस धारा के अनुसार अगर नामांकन पत्र में कोई प्रत्याशी लंबित आपराधिक मामलों जैसी जानकारी देने में विफल रहता है तो उसे इस अपराध के लिये छह महीने की कैद या जुर्माना अथवा दोनों हो सकती है.



फडणवीस के खिलाफ कथित धोखाधड़ी और जालसाजी के मामले 1996 और 1998 में दर्ज हुये थे लेकिन इनमें आरोप तय नहीं हुये थे.


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Last Updated : Feb 18, 2020, 6:38 AM IST
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