हैदराबाद : इंडियन रेलवे ने अपने इतिहास में पहली बार ट्रेनों के निजीकरण का फैसला लिया है, यानी रेलवे ने निजी कंपनियों के लिए द्वार खोल दिए हैं. 109 रूटों पर 151 आधुनिक ट्रेनों के संचालन के लिए निजी कंपनियों को आमंत्रित किया गया था. हालांकि, यह प्रस्ताव पिछले कुछ समय से रुका हुआ है, लेकिन बोलियों के आमंत्रण से इसके कार्यान्वयन की दिशा में प्रारंभिक कदम उठाया गया है. अब यह सवाल उठ रहा है कि ट्रेनों के निजीकरण से रेलवे, निजी कंपनियों और लोगों को कितना फायदा पहुंचेगा?
रेलवे का आधुनिकीकरण और विस्तार कोई नया मुद्दा नहीं है. अब तक कई समितियों ने इस पर काम किया है. हालांकि, विवेक देव रॉय की अध्यक्षता वाले पैनल की सिफारिशों के अनुसार नवीनतम बोलियां 2015 में आमंत्रित की गई थीं. समिति का कहना है कि इसे निजीकरण नहीं बल्कि उदारीकरण कहा जाना चाहिए. यह सच भी है, क्योंकि इंडियन रेलवे कुल परिचालन का केवल 5 प्रतिशत निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी कर रहा है.
- पहली निजी ट्रेन का संचालन - अप्रैल 2023
- अनुमानित निवेश - 30,000 करोड़ रु
- इच्छुक कंपनियां - 20
यह फैसला क्यों…
यात्री दृष्टिकोण से अभी भी बड़े शहरों के बीच अधिक ट्रेनों की आवश्यकता है. रेलवे बोर्ड स्वीकार करता है कि क्षमता के अभाव में 5 करोड़ यात्रियों को ट्रेनों में अनुमति नहीं दी जा सकती है. गर्मियों और त्योहारी सीजन के दौरान यह मांग और भी अधिक है.
रेलवे आशंकित है कि अगर वह अपने बुनियादी ढांचे का विस्तार नहीं करता है, तो वह अगले कुछ वर्षों में अपने व्यापार के हिस्से को सड़क परिवहन क्षेत्र में खो देगा. इसके अलावा, देव रॉय समिति ने सरकार की 'मेक इन इंडिया' नीति को आगे बढ़ाने की आवश्यकता को मान्यता दी. समिति ने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि अगर कोई गारंटी देता है कि यात्रा की गुणवत्ता में सुधार होगा, तो यात्री अधिक कीमत चुकाने को तैयार हैं. इसीलिए ट्रेनों के संचालन में निजी निवेश को आमंत्रित किया जा रहा है.
क्या यह यात्रियों के लिए अच्छा है...
किसी भी क्षेत्र में एकाधिकार को अच्छा नहीं माना जाता है, प्रतिस्पर्धा जरूरी है. हालांकि, इंडियन रेलवे ने अब तक टिकट की दरों को तय करते समय आय को वरीयता देने की बजाय यात्रियों की सामर्थ्य को तरजीह दिया है. रेलवे माल ढुलाई शुल्क पर अधिक टैरिफ द्वारा कुछ घाटे की भरपाई करता था. अब हमें यह देखना होगा कि निजी कंपनियों के फैसलों से यात्रियों को क्या फायदा होगा.
निजी कंपनियां भारतीय रेलवे के उलट मुनाफे पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं. लेकिन एक बात पक्की है कि सेवा की गुणवत्ता में सुधार की सबसे अधिक संभावना है. यात्रियों पर टिकट के दाम में मामूली वृद्धि का असर नहीं पड़ेगा. अगर रेलवे का यह निर्णय सफल होता है, तो अधिक निजी भागीदारी को आमंत्रित करके ज्यादा रूटों तक विस्तारित किया जा सकता है.
बोली में रुचि दिखाने वालीं कंपनियां
पहली बोली प्रक्रिया के अनुसार, लगभग 30,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है. लगभग 20 कंपनियों ने 151 ट्रेनों के संचालन में रुचि दिखाई हैं, प्रत्येक ट्रेन में 16 कोच होंगें. इन कंपनियों में अडानी पोर्ट, टाटा रियल्टी एवं इंफ्रा, एस्सेल ग्रुप, बॉम्बार्डियर इंडिया, सीमेंस एजी और मैक्वेरी ग्रुप शामिल हैं. विस्तारा, इंडिगो और स्पाइसजेट जैसी एयरलाइंस भी रुचि दिखा रही हैं.
अडाणी पोर्ट: इस कंपनी का रेल क्षेत्र में अनुभव है. कंपनी पहले से ही 300 किलोमीटर लंबी निजी रेल लाइन का रख-रखाव करती है, जो बंदरगाहों से जुड़ती है. इसके पास बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा करने का अनुभव है. मेट्रो रेल परियोजनाओं में भी इसकी हिस्सेदारी है.
एस्सेल ग्रुप: यह कंपनी दशकों से विभिन्न सरकारी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को अंजाम दे रही है. एस्सेल ने अपने 'एस्सेल इंफ्राप्रोजेक्ट्स' डिवीजन के माध्यम से 2018 में पहला रेलवे प्रोजेक्ट भी हासिल किया.
टाटा रियल्टी एंव इंफ्रा: यह टाटा समूह की सहायक कंपनी है, जो पुणे में हिंजेवाड़ी-शिवाजी नगर मेट्रो परियोजना को देख रही है. यह दिल्ली-मेरठ क्षेत्रीय रैपिड ट्रांजिट सिस्टम पर भूमिगत लाइन के निर्माण में भी शामिल थी.
बॉम्बार्डियर: यह जर्मन कंपनी है, लेकिन एक मजबूत प्रतियोगी है. यह पहली विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी है जिसने 50 साल से अधिक समय पहले हमारे देश में अपना रेल वाहन विनिर्माण संयंत्र स्थापित किया था.
एल्सटॉम: यह फ्रांस की कंपनी है. कंपनी ने भारत के कई शहरों में मेट्रो परियोजनाएं शुरू की हैं.
कंपनियों के बढ़ रहे शेयर
इंडियन रेलवे के निजी कंपनियों को यात्री ट्रेनों के संचालन की अनुमति देने की योजना के मद्देनजर ट्रेनों से जुड़ी कंपनियों के शेयर बढ़ रहे हैं. हाल के दिनों में आईआरसीटीसी, रेल विकास निगम, इरकॉन इंटरनेशनल, टीटागढ़ वैगन, टेक्समाको रेल, सिमको, स्टोन इंडिया जैसी कंपनियों के शेयरों में काफी तेजी आई है.
रेलवे का निजीकरण करने वाले देश
वर्तमान में दुनिया के कुछ देशों में रेलवे का संचालन निजी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है. इनमें कनाडा (1995), मेक्सिको (2000) और जापान (1980) शामिल हैं.