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कोरोना महामारी में चुनाव कराने को लेकर चुनौतियां और मानदंड - Upcoming elections in India

कोरोना महामारी में चुनाव कराना दुनिया के सभी देशों के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि दक्षिण कोरिया समेत कुछ देशों ने सुरक्षा मानदंडों का पालन करते हुए सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न कराए हैं. अब यह चुनौती विशाल आबादी वाले भारत के सामने है कि कोरोना काल में कैसे चुनाव संपन्न कराए जाएं. चुनाव कराने से जुड़ीं चुनौतियों को लेकर ईटीवी भारत की विशेष खबर...

Challenges of conducting elections in pandemic
कोरोना महामारी में चुनाव कराने की चुनौतियां
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Published : Jun 24, 2020, 4:03 PM IST

हैदराबाद : कोविड-19 महामारी के चलते दुनिया भर में लगभग 66 देशों और प्रांतों ने अपने राष्ट्रीय और क्षेत्री चुनावों को स्थगित करने का फैसला किया है. इनमें से करीब 22 देशों और प्रांतों ने राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह स्थगित कर दिए हैं.

वहीं, 34 देशों और प्रांतों ने कोरोना वायरस से संबंधित चिंताओं के बावजूद राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय चुनावों को पहले से निर्धारित समय पर कराने का निर्णय लिया है. इनमें से 19 देशों और प्रांतों ने कोरोना काल में राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह कराए हैं.

भारत में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव
कोरोना काल में भारतीय निर्वाचन आयोग के लिए चिंता का बड़ा कारण आगामी बिहार विधानसभा चुनाव कराना है, जो कि नवंबर 2020 तक संपन्न होने हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल (मई, 2021), असम (मई, 2021), केरल (जून, 2021) ), तमिलनाडु (मई, 2021) और पुदुचेरी (जून, 2021) के विधानसभा चुनाव होने हैं.

चुनाव कराने के लिए संवैधानिक संभावनाएं
चुनाव आयोग विपरीत परिस्थितियों में राज्यसभा/विधान परिषद चुनावों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर सकता है, जबकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को केवल छह महीने की अवधि के लिए ही स्थगित किया जा सकता है. सदन/विधानसभा के दो सत्रों के बीच संवैधानिक रूप से परिभाषित सीमा (संविधान के अनुच्छेद 85 (1) और अनुच्छेद 174 (1) में क्रमशः इसका वर्णन है) है.

स्थगन विस्तार की एक और अवधि के लिए अदालत फैसला कर सकती है, जिसका सामना दो संभावनाओं के साथ किया जाएगा. पहला, अनुच्छेद 172 (1) के तहत प्रावधान है कि आपातकाल के दौरान एक वर्ष के लिए चुनाव स्थगित किया जा सकता है. इसके अलावा आपातकाल हटाए जाने के छह महीने की अवधि तक चुनाव टाला जा सकता है. हालांकि, रुकावट यह है कि आपातकाल की स्थिति तभी घोषित की जा सकती है जब राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए कोई खतरा हो. प्रकोप या महामारी में आपातकाल की घोषणा का प्रवाधान नहीं है.

दूसरा विकल्प है, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना, जो संविधान के अनुच्छेद 356 (1) द्वारा सक्षम है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी सीमाओं को बार-बार परिभाषित किया गया है.

दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया में हाल ही में राष्ट्रीय चुनाव संपन्न हुए, जिसमें कोरोना महामारी के बीच चार करोड़ 40 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. भारतीय निर्वाचन आयोग के लिए एक अच्छा उदाहरण हो सकता है. क्योंकि सख्त दिशानिर्देशों के तहत दक्षिण कोरिया 66.2% रिकॉर्ड मतदान के साथ पूर्ण राष्ट्रीय चुनाव कराने में कामयाब रहा. महामारी के बाद भी पिछले 28 वर्षों में सबसे ज्यादा मतदान दर्ज किया गया.

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय चुनाव आयोग ने 300 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली के लिए चार साल के अंतराल पर होने वाले चुनावों में सरकार के सफल रोग नियंत्रण उपायों का सफलता के साथ पालन किया. चुनाव के दौरान मतदाताओं को मास्क और दस्ताने पहनने, सामाजिक दूरी का पालन करने और मतदान से पहले तापमान की जांच कराने के निर्देशों का पालन किया. स्क्रीनिंग में फेल वाले लोगों के लिए अलग पोलिंग बूथ बनाए गए थे. क्वारंटीन किए गए लोगों के लिए डाक द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग करने का प्रावधान था. कहा जाता है कि एक चौथाई पात्र मतदाताओं ने सप्ताहांत में अपना मतदान किया.

लोकसभा चुनाव 2019 पर एक नजर :-

  • भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. भारत में लगभग 90 करोड़ मतदाता हैं, जो संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) और यूरोपीय संघ की कुल आबादी से अधिक है.
  • भारतीय निर्वाचन आयोग में लोकसभा चुनाव 2019 तक कम से कम 2,354 राजनीतिक दल पंजीकृत हैं. हालांकि, इनमें से केवल 543 पार्टियां उम्मीदवारों को मैदान में उतार सकती हैं.
  • भारतीय चुनाव आयोग चुनावी हिंसा के मद्देनजर संवेदनशील और अतिसंवेदनशील मतदान केंद्रों की पहचान करता है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में मदद मिलती है.
  • 17वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में चुनाव संपन्न कराए गए थे. इस अवधि के दौरान देशभर में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों और पुलिस बलों से 5,00,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे.
  • चुनावी हिंसा के लिए सबसे संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाने वाले क्षेत्र वे हैं जहां सशस्त्र संघर्ष चल रहे हैं, जैसे (1) जम्मू और कश्मीर, (2) 'रेड कॉरिडोर' स्टेट्स, (3) पूर्वोत्तर राज्य और (4) पश्चिम बंगाल और केरल, इन दो राज्यों में राजनीतिक हिंसा का स्तर संवेदनशील है.
  • भारतीय निर्वाचन आयोग के अनुसार, 20 मई, 2019 को देश भर में 3,456.22 करोड़ रुपये की नकदी और सामान (ड्रग्स, शराब, सोना, चांदी आदि) जब्त किए गए थे, जो प्रतिदिन के हिसाब से लगभग 60 करोड़ रुपये तक है.
  • इस तरह देखा जाए तो चुनाव कराना ही एकमात्र रास्ता है. भारत कोरोना महामारी के दौरान चुनाव कराने वाला एकमात्र देश नहीं होगा.

नए चुनावी मानदंड बनाने का समय

  1. कोरोना महामारी को देखते हुए आने वाले कुछ महीनों तक सार्वजनिक स्थानों पर फेस मास्क पहनने पर किसी भी तरह की छूट की संभावना नहीं है, और मतदाताओं को भी अपने मताधिकार का प्रयोग करते समय मास्क पहनना होगा. हालांकि, उन्हें अपनी पहचान की पुष्टि करने के लिए मास्क हटाना पड़ सकता है.
  2. प्रत्येक मतदाता की पहचान उनके फोटो पहचान पत्र और फोटो आधारित मतदाता सूची के साथ उनके चेहरे की पुष्टि करके सुनिश्चित की जानी चाहिए, जो मतदान अधिकारियों के पास उपलब्ध होगी. पीने के पानी के अलावा मतदान केंद्रों पर हैंड सेनेटाइटर भी उपलब्ध कराए जा सकते हैं.
  3. इस तरह के किसी भी सुरक्षा उपाय को अपनाने से पहले चुनाव आयोग मानदंडों को तैयार करने के लिए स्वास्थ्य और चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करना होगा.
  4. ऐसे मानदंडों पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों और राज्य के अधिकारियों के साथ आम सहमति बनाने के लिए चर्चा होनी चाहिए. यह व्यापक परामर्श के बाद तय होगा कि मानदंडों को कैसे लागू किया जाएगा.

प्रतीक्षित चुनावी चुनौतियां
चुनाव कराने के लिए नए अभ्यास, स्वास्थ्य उपायों और सामाजिक मानदंडों का पालन करना पड़ सकता है. यह एक वास्तविक चुनौती है क्योंकि यह पहली बार है कि भारत जैसे घनी आबादी वाले देश को इस तरह के उपायों को अपनाने की आवश्यकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 महामारी दो साल तक रह सकती है. इतने लंबे समय के लिए चुनाव को टालना लोकतंत्र और संघवाद की भावना के खिलाफ होगा, जो संविधान के मूल घटक हैं. भारत जैसा एक बड़ा और सुव्यवस्थित लोकतंत्र कैसे इस संकट का जवाब देता है, उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती है.

हैदराबाद : कोविड-19 महामारी के चलते दुनिया भर में लगभग 66 देशों और प्रांतों ने अपने राष्ट्रीय और क्षेत्री चुनावों को स्थगित करने का फैसला किया है. इनमें से करीब 22 देशों और प्रांतों ने राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह स्थगित कर दिए हैं.

वहीं, 34 देशों और प्रांतों ने कोरोना वायरस से संबंधित चिंताओं के बावजूद राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय चुनावों को पहले से निर्धारित समय पर कराने का निर्णय लिया है. इनमें से 19 देशों और प्रांतों ने कोरोना काल में राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह कराए हैं.

भारत में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव
कोरोना काल में भारतीय निर्वाचन आयोग के लिए चिंता का बड़ा कारण आगामी बिहार विधानसभा चुनाव कराना है, जो कि नवंबर 2020 तक संपन्न होने हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल (मई, 2021), असम (मई, 2021), केरल (जून, 2021) ), तमिलनाडु (मई, 2021) और पुदुचेरी (जून, 2021) के विधानसभा चुनाव होने हैं.

चुनाव कराने के लिए संवैधानिक संभावनाएं
चुनाव आयोग विपरीत परिस्थितियों में राज्यसभा/विधान परिषद चुनावों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर सकता है, जबकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को केवल छह महीने की अवधि के लिए ही स्थगित किया जा सकता है. सदन/विधानसभा के दो सत्रों के बीच संवैधानिक रूप से परिभाषित सीमा (संविधान के अनुच्छेद 85 (1) और अनुच्छेद 174 (1) में क्रमशः इसका वर्णन है) है.

स्थगन विस्तार की एक और अवधि के लिए अदालत फैसला कर सकती है, जिसका सामना दो संभावनाओं के साथ किया जाएगा. पहला, अनुच्छेद 172 (1) के तहत प्रावधान है कि आपातकाल के दौरान एक वर्ष के लिए चुनाव स्थगित किया जा सकता है. इसके अलावा आपातकाल हटाए जाने के छह महीने की अवधि तक चुनाव टाला जा सकता है. हालांकि, रुकावट यह है कि आपातकाल की स्थिति तभी घोषित की जा सकती है जब राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए कोई खतरा हो. प्रकोप या महामारी में आपातकाल की घोषणा का प्रवाधान नहीं है.

दूसरा विकल्प है, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना, जो संविधान के अनुच्छेद 356 (1) द्वारा सक्षम है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी सीमाओं को बार-बार परिभाषित किया गया है.

दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया में हाल ही में राष्ट्रीय चुनाव संपन्न हुए, जिसमें कोरोना महामारी के बीच चार करोड़ 40 लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. भारतीय निर्वाचन आयोग के लिए एक अच्छा उदाहरण हो सकता है. क्योंकि सख्त दिशानिर्देशों के तहत दक्षिण कोरिया 66.2% रिकॉर्ड मतदान के साथ पूर्ण राष्ट्रीय चुनाव कराने में कामयाब रहा. महामारी के बाद भी पिछले 28 वर्षों में सबसे ज्यादा मतदान दर्ज किया गया.

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रीय चुनाव आयोग ने 300 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली के लिए चार साल के अंतराल पर होने वाले चुनावों में सरकार के सफल रोग नियंत्रण उपायों का सफलता के साथ पालन किया. चुनाव के दौरान मतदाताओं को मास्क और दस्ताने पहनने, सामाजिक दूरी का पालन करने और मतदान से पहले तापमान की जांच कराने के निर्देशों का पालन किया. स्क्रीनिंग में फेल वाले लोगों के लिए अलग पोलिंग बूथ बनाए गए थे. क्वारंटीन किए गए लोगों के लिए डाक द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग करने का प्रावधान था. कहा जाता है कि एक चौथाई पात्र मतदाताओं ने सप्ताहांत में अपना मतदान किया.

लोकसभा चुनाव 2019 पर एक नजर :-

  • भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. भारत में लगभग 90 करोड़ मतदाता हैं, जो संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) और यूरोपीय संघ की कुल आबादी से अधिक है.
  • भारतीय निर्वाचन आयोग में लोकसभा चुनाव 2019 तक कम से कम 2,354 राजनीतिक दल पंजीकृत हैं. हालांकि, इनमें से केवल 543 पार्टियां उम्मीदवारों को मैदान में उतार सकती हैं.
  • भारतीय चुनाव आयोग चुनावी हिंसा के मद्देनजर संवेदनशील और अतिसंवेदनशील मतदान केंद्रों की पहचान करता है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में मदद मिलती है.
  • 17वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में चुनाव संपन्न कराए गए थे. इस अवधि के दौरान देशभर में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों और पुलिस बलों से 5,00,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे.
  • चुनावी हिंसा के लिए सबसे संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाने वाले क्षेत्र वे हैं जहां सशस्त्र संघर्ष चल रहे हैं, जैसे (1) जम्मू और कश्मीर, (2) 'रेड कॉरिडोर' स्टेट्स, (3) पूर्वोत्तर राज्य और (4) पश्चिम बंगाल और केरल, इन दो राज्यों में राजनीतिक हिंसा का स्तर संवेदनशील है.
  • भारतीय निर्वाचन आयोग के अनुसार, 20 मई, 2019 को देश भर में 3,456.22 करोड़ रुपये की नकदी और सामान (ड्रग्स, शराब, सोना, चांदी आदि) जब्त किए गए थे, जो प्रतिदिन के हिसाब से लगभग 60 करोड़ रुपये तक है.
  • इस तरह देखा जाए तो चुनाव कराना ही एकमात्र रास्ता है. भारत कोरोना महामारी के दौरान चुनाव कराने वाला एकमात्र देश नहीं होगा.

नए चुनावी मानदंड बनाने का समय

  1. कोरोना महामारी को देखते हुए आने वाले कुछ महीनों तक सार्वजनिक स्थानों पर फेस मास्क पहनने पर किसी भी तरह की छूट की संभावना नहीं है, और मतदाताओं को भी अपने मताधिकार का प्रयोग करते समय मास्क पहनना होगा. हालांकि, उन्हें अपनी पहचान की पुष्टि करने के लिए मास्क हटाना पड़ सकता है.
  2. प्रत्येक मतदाता की पहचान उनके फोटो पहचान पत्र और फोटो आधारित मतदाता सूची के साथ उनके चेहरे की पुष्टि करके सुनिश्चित की जानी चाहिए, जो मतदान अधिकारियों के पास उपलब्ध होगी. पीने के पानी के अलावा मतदान केंद्रों पर हैंड सेनेटाइटर भी उपलब्ध कराए जा सकते हैं.
  3. इस तरह के किसी भी सुरक्षा उपाय को अपनाने से पहले चुनाव आयोग मानदंडों को तैयार करने के लिए स्वास्थ्य और चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करना होगा.
  4. ऐसे मानदंडों पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों और राज्य के अधिकारियों के साथ आम सहमति बनाने के लिए चर्चा होनी चाहिए. यह व्यापक परामर्श के बाद तय होगा कि मानदंडों को कैसे लागू किया जाएगा.

प्रतीक्षित चुनावी चुनौतियां
चुनाव कराने के लिए नए अभ्यास, स्वास्थ्य उपायों और सामाजिक मानदंडों का पालन करना पड़ सकता है. यह एक वास्तविक चुनौती है क्योंकि यह पहली बार है कि भारत जैसे घनी आबादी वाले देश को इस तरह के उपायों को अपनाने की आवश्यकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 महामारी दो साल तक रह सकती है. इतने लंबे समय के लिए चुनाव को टालना लोकतंत्र और संघवाद की भावना के खिलाफ होगा, जो संविधान के मूल घटक हैं. भारत जैसा एक बड़ा और सुव्यवस्थित लोकतंत्र कैसे इस संकट का जवाब देता है, उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती है.

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