नई दिल्ली : देश के 208 कुलपतियों और शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति के नाम पर लेफ्ट प्रायोजित हिंसा का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा है कि वामपंथी कार्यकर्ताओं की ओर से कैंपस को हिंसा की आग में झोंकने की कोशिश हो रही है. शिक्षाविदों ने यह पत्र 11 जनवरी को लिखा है. पत्र में कुल 208 कुलपतियों, प्रोफेसर, शिक्षाविदों के नाम हैं.
शिक्षाविदों के इस समूह ने प्रधानमंत्री मोदी से इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताते हुए शैक्षणिक संस्थानों को अराजकता के माहौल से मुक्ति दिलाने की मांग की है. शिक्षाविदों ने पत्र में लिखा है कि छात्र राजनीति के नाम पर एक विघटनकारी दूरगामी एजेंडे का अनुसरण किया जा रहा है.
उन्होंने हालिया घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि जेएनयू, जामिया से लेकर जादवपुर विश्वविद्यालय में मुट्ठी भर वामपंथी कार्यकर्ताओं की ओर से कैंपस में अराजकता का माहौल पैदा कर शैक्षणिक गतिविधियां ठप की जा रही हैं.
शिक्षाविदों ने कहा कि विश्वविद्यालयों में वामपंथी कार्यकर्ताओं की अराजक गतिविधियों के कारण पठन-पाठन से लेकर विचारों के आदान-प्रदान के लिए तमाम तरह के कार्यक्रमों के आयोजन में बाधा पहुंच रही है, जिन कैंपस में वामपंथी संगठनों की पकड़ है, वहां पर विचारधारा थोपने की कोशिश हो रही है. कैंपस को निजी जागीर समझकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है. शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों को भी सहिष्णुता का सामना करना पड़ रहा है.
उन्होंने पत्र में कहा, 'विश्वविद्यालयों में लेफ्ट संगठनों की राजनीति से सबसे ज्यादा नुकसान गरीब छात्रों को हो रहा है, जो तमाम मुसीबतों के बीच दूरदराज से पढ़ने के लिए आते हैं. मगर कैंपस में अशांति पैदाकर ऐसे छात्रों के लिए मुश्किलें पैदा की जा रहीं हैं.'
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दो सौ शिक्षाविदों के इस समूह ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में कहा है कि इस वक्त जरूरत है कि सभी लोकतांत्रिक ताकतें आगे आकर एकेडमिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में खड़ी होकर आवाज बुलंद करें.
पत्र लिखने वालों में डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर, मध्य प्रदेश के कुलपति प्रो. आरपी तिवारी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के कुलपति प्रो. एचसीएस राठौर, सेंट्रल यूनिवर्सिटी पंजाब के कुलपति रविंदर, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ला प्रमुख रूप से शुमार हैं.