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बढ़ती महंगाई का एशिया व प्रशांत क्षेत्र के देशों पर गहरा असर - Current inflation rate in aisa 2022

अमेरिका और यूरोप के बाद, बढ़ती महंगाई ने भारत सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों को बहुत मुश्किल से डाल दिया है, नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों को रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रकोप के बाद खाद्यान्न और ऊर्जा की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है जिसका असर अब देश की अर्थव्यवस्था पर साफ दिखने लगा है.

बढ़ती महंगाई
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Published : Apr 14, 2022, 7:10 AM IST

Updated : Apr 14, 2022, 4:04 PM IST

नई दिल्ली: अमेरिका और यूरोप के बाद, खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों ने भारत सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों को काफी मुश्किल में डाल दिया है. नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव खाद्यान्न और ऊर्जा की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि के रूप में दिखाने लगा है जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. भारत में, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के रूप में मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में बढ़ती खाद्य कीमतों के कारण 17 महीने के उच्चतम स्तर 6.95% पर पहुंच गई. यह लगातार तीसरा महीना है जब खुदरा कीमतें 6% से ऊपर हैं, मुद्रास्फीति लक्ष्य के लिए सरकार द्वारा निर्धारित ऊपरी स्तर है.

थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के रूप में मापा जाने वाला भारत का थोक मूल्य पिछले 11 महीनों से दोहरे अंकों में है. हालांकि, यह सिर्फ भारत ही नहीं है जो उच्च मुद्रास्फीति की चपेट में फंसता दिख रहा है. एशिया भर की अर्थव्यवस्थाएं उच्च मुद्रास्फीति का सामना कर रही हैं. उदाहरण के लिए, जापान का उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI) मार्च में 9.5% था, जो एशिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अग्रणी है. जापान के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी और एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन का नंबर आता है.

नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स (NBS) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, चीन का उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI) मार्च में 8.30% था, जो प्रमुख एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में दूसरा सबसे अधिक था. यह चीन और जापान नहीं हैं जो एशिया-प्रशांत में मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर को देख रहे हैं. इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर है.

थाईलैंड का भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मार्च में 5.73% रहा है, जो भारत की तुलना में थोड़ा कम दिखता है, लेकिन अर्थशास्त्री के अनुमान के अनुसार निराशाजनक है. फिलीपींस में मार्च के महीने में सीपीआई 4% दर्ज किया गया है. इसके बाद इंडोनेशिया ने मार्च महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 2.64% दर्ज किया. इंडोनेशिया और फिलीपींस में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जापान, चीन और भारत के मूल्य सूचकांकों की तुलना में बहुत कम दिखाई देता है लेकिन अर्थशास्त्री इसे काफी ज्यादा मान रहे हैं.

नीति प्रतिक्रिया: भारत में, रिजर्व बैंक ने तकनीकी रूप से दो बेंचमार्क इंटरबैंक उधार दरों, रेपो दर और रिवर्स रेपो दर को यथास्थिति बनाए रखा है. यह वह दर है जिस पर बैंक क्रमशः आरबीआई से पैसा उधार लेते हैं या इसके साथ अधिशेष धन पार्क करते हैं. आरबीआई ने भी नाजुक आर्थिक सुधार को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति को उदार बनाए रखा है. लेकिन पिछले सप्ताह घोषित उपायों का अध्ययन से पता चलता है कि आरबीआई ने मार्च 2020 में कोविड महामारी के मद्देनजर घोषित तरलता उपायों को सिस्टमेटिक रूप से वापस लेने के लिए प्रकि्या शुरू कर दी है .

यह भी पढ़ें-रूस व यूक्रेन युद्ध से पहले COVID ने 77 मिलियन को गरीबी में डुबो दिया : संयुक्त राष्ट्र

नई दिल्ली: अमेरिका और यूरोप के बाद, खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों ने भारत सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों को काफी मुश्किल में डाल दिया है. नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव खाद्यान्न और ऊर्जा की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि के रूप में दिखाने लगा है जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. भारत में, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के रूप में मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में बढ़ती खाद्य कीमतों के कारण 17 महीने के उच्चतम स्तर 6.95% पर पहुंच गई. यह लगातार तीसरा महीना है जब खुदरा कीमतें 6% से ऊपर हैं, मुद्रास्फीति लक्ष्य के लिए सरकार द्वारा निर्धारित ऊपरी स्तर है.

थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के रूप में मापा जाने वाला भारत का थोक मूल्य पिछले 11 महीनों से दोहरे अंकों में है. हालांकि, यह सिर्फ भारत ही नहीं है जो उच्च मुद्रास्फीति की चपेट में फंसता दिख रहा है. एशिया भर की अर्थव्यवस्थाएं उच्च मुद्रास्फीति का सामना कर रही हैं. उदाहरण के लिए, जापान का उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI) मार्च में 9.5% था, जो एशिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अग्रणी है. जापान के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी और एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन का नंबर आता है.

नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स (NBS) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, चीन का उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI) मार्च में 8.30% था, जो प्रमुख एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में दूसरा सबसे अधिक था. यह चीन और जापान नहीं हैं जो एशिया-प्रशांत में मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर को देख रहे हैं. इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर है.

थाईलैंड का भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मार्च में 5.73% रहा है, जो भारत की तुलना में थोड़ा कम दिखता है, लेकिन अर्थशास्त्री के अनुमान के अनुसार निराशाजनक है. फिलीपींस में मार्च के महीने में सीपीआई 4% दर्ज किया गया है. इसके बाद इंडोनेशिया ने मार्च महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 2.64% दर्ज किया. इंडोनेशिया और फिलीपींस में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जापान, चीन और भारत के मूल्य सूचकांकों की तुलना में बहुत कम दिखाई देता है लेकिन अर्थशास्त्री इसे काफी ज्यादा मान रहे हैं.

नीति प्रतिक्रिया: भारत में, रिजर्व बैंक ने तकनीकी रूप से दो बेंचमार्क इंटरबैंक उधार दरों, रेपो दर और रिवर्स रेपो दर को यथास्थिति बनाए रखा है. यह वह दर है जिस पर बैंक क्रमशः आरबीआई से पैसा उधार लेते हैं या इसके साथ अधिशेष धन पार्क करते हैं. आरबीआई ने भी नाजुक आर्थिक सुधार को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति को उदार बनाए रखा है. लेकिन पिछले सप्ताह घोषित उपायों का अध्ययन से पता चलता है कि आरबीआई ने मार्च 2020 में कोविड महामारी के मद्देनजर घोषित तरलता उपायों को सिस्टमेटिक रूप से वापस लेने के लिए प्रकि्या शुरू कर दी है .

यह भी पढ़ें-रूस व यूक्रेन युद्ध से पहले COVID ने 77 मिलियन को गरीबी में डुबो दिया : संयुक्त राष्ट्र

Last Updated : Apr 14, 2022, 4:04 PM IST
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