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दिव्यांगों के उत्थान के लिए जरूरी है निरंतर प्रयास: विश्व विकलांग दिवस

दुनिया भर में विकलांग जनों के अक्षमता के मुद्दे की ओर लोगों की जागरुकता और समझ को बढ़ाना, तथा उनके उचित आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए प्रयास करने के उद्देश्य से हर साल 3 दिसंबर को दुनिया भर में विश्व विकलांग दिवस मनाया जाता है.

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विश्व विकलांग दिवस 2021
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Published : Dec 3, 2021, 5:00 AM IST

सड़क पर चलते चलते या किसी समारोह व आयोजन में जब भी हम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो देख नहीं सकता, चल नहीं सकता, बोल नहीं सकता या किसी अन्य प्रकार की विकलांगता का शिकार हो तो स्वतः ही उसको लेकर लोगों के मन में दया का भाव उत्पन्न होने लगता है. लेकिन एक अन्य भाव भी है जो लोगों के मन में उत्पन्न होता है कि वह है उसे हीन समझने का भाव, और इसी विचार के मन में आते ही ज्यादातर लोग उससे दूरी बना लेते हैं.

यह एक सामान्य विचारधारा है जहां विकलांगता को शारीरिक अक्षमता से जोड़ कर देखा जाता है. लेकिन जरूरी नहीं है कि सभी विकलांगों को अपनी जरूरतों को पूरा करने और जीवन जीने के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़े. यह सत्य है कि ज्यादातर विकलांगों को शुरुआत में दूसरों की मदद की आवश्यकता होती है लेकिन यदि उन्हे सही चिकित्सा, प्रशिक्षण तथा मार्गदर्शन मिले और समाज में बराबरी का मौका मिले तो वे एक आत्मनिर्भर जीवन जी सकते हैं. इसी मुद्दे को लेकर दुनिया भर में लोगों को जागरूक करने तथा विकलांग लोगों को समाज में बराबरी के स्तर पर लाने के लिए उन्हें आर्थिक व सामाजिक रूप से सुदृढ़ बनाने के मौके प्रदान करने के उद्देश्य से हर साल दुनिया भर में 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस मनाया जाता है.

क्या कहते हैं आँकड़े

आमतौर पर लोग नहीं जानते या इस बात पर ध्यान भी नहीं देते हैं कि उनके घर के आसपास कितने लोग विकलांग हैं, और क्या उन्हें अपनी सेहत को बनाए रखने या किसी अन्य मद में सहायता की जरूरत है! संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की वेबसाइट के अनुसार वर्तमान समय में दुनिया भर में लगभग एक अरब विकलांग लोग हैं, जिनमें से 80% विकासशील देशों में रहते है. इसमें चिंता की बात यह है कि दुनिया भर में लगभग 100 मिलीयन दिव्यांग बच्चे हैं. एक अन्य चिंतनीय बात यह भी है कि अधिकांश विकलांग अलग-अलग कारणों से जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा नही ले पाते हैं, मनचाही शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं और यहां तक कि उन्हें समाज में रोजगार के अवसर भी बहुत कम मिल पाते हैं.

विकलांगों को लेकर समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह और भेदभाव को दूर करने के लिए कई वर्षों से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न समुदायों द्वारा प्रयास किया जा रहा है . जिसके नतीजे स्वरूप दुनिया भर के विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने तथा उनके लिए एक बाधा मुक्त समाज की स्थापना करने में कुछ हद तक सफलता भी मिली है. लेकिन रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में विकलांगों को अभी तक पूरे अधिकार नहीं मिल पाते हैं.

इतिहास

विकलांगों के स्वस्थ जीवन देने, उनका आत्मसम्मान बनाए रखने ,उन्हे उनके अधिकारों के बारें में जागरूक करने तथा उन अधिकारों को प्राप्त करने के मार्ग को सरल करने के उद्देश्य से वर्ष 1992 में 47वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस के रूप में नामित करने का प्रस्ताव पारित किया था. जिसका एक उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संगठनों से विकलांगों के प्रति लोगों की समझ बढ़ाने उनके जीवन को सुधारने के लिए सक्रिय रूप से गतिविधियों का आयोजन करने, उन्हे जरूरी चिकित्सीय सुविधाएं मुहैया करवाने तथा उन्हें समाज में बराबरी के लिए समान अवसर प्रदान करने का प्रयास करना भी था.

दरअसल विकलांगों से जुड़ी विभिन्न अवधारणाओं को मिटाने तथा उनके जीवन के तौर-तरीकों को बेहतर करने के लिए दशकों से विभिन्न राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा पहले से ही प्रयास किए जा रहे थे . जिस के चलते वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने वर्ष 1981 को “विकलांगों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष” के रूप में घोषित किया था. जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर विकलांगों के पुनरुद्धार, विकलांगता की रोकथाम तथा विकलांग लोगों को बराबरी के मौके देने पर जोर देने के लिए योजनाएं बनाई गई थी. यही नहीं इसके उपरांत संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा वर्ष 1983 से 1992 को “विकलांग व्यक्तियों के संयुक्त राष्ट्र दशक” के रूप में घोषित किया गया था.

इस वर्ष भी दिव्यंगों को चिकित्सा, शिक्षा व रोजगार संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराने तथा समाज निर्माण में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यह विशेष दिवस “ कोविड 19 के उपरांत विश्व को स्थिर, स्थाई तथा मजबूत बनाने में दिव्यंगों का नेतृत्व तथा प्रतिभागिता (लीडरशिप एंड पार्टिसिपेशन ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज टूवर्ड्स एंड इंक्लूसिव, एक्सेसिबल एंड सस्टेनेबल पोस्ट कोविड-19 वर्ल्ड) “ थीम पर मनाया जा रहा है.

क्या है विकलांगता तथा उसकी श्रेणियाँ

विकलांगों के विकास के बारें में बात करने से पहले जरूरी है यह जानना, कि विकलांगता क्या होती है. दरअसल सामान्य अर्थों में विकलांगता ऐसी शारीरिक एवं मानसिक अक्षमता को माना जाता है जिसके चलते कोई व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों की तरह किसी कार्य को करने में, देखने में, बोलने में तथा सुनने में अक्षम होता है. चिकित्सीय दृष्टिकोण से देखे तो विकलांगता मुख्यतः दो प्रकार की होती है, शारीरिक विकलांगता तथा मानसिक विकलांगता. इनमें से शारीरिक विकलांगता की श्रेणी में ऐसी अवस्थाओं को रखा जाता है जिनके शरीर एक या एक से ज्यादा अंग किसी भी कार्य को पूर्ण या आंशिक रूप से करने में सक्षम न हो. जैसे अंधापन, हाथों या पैरों संबंधी विकलांगता आदि. वहीं मानसिक विकलांगता वह अवस्था होती है जहां व्यक्ति सीखने, समझने, व्यवहार करने या दूसरों के साथ संपर्क या सामंजस्य बैठाने में अक्षम हो. किसी भी प्रकार की विकलांगता के लिए अलग अलग कारण जिम्मेदार हो सकते हैं जैसे आनुवंशिकता, जन्मजात, न्यूरॉलॉजीकल, शारीरिक समस्या , आघात तथा दुर्घटना आदि.

पढ़ें: उम्र के अनुसार बनाएं फिटनेस प्लान

सड़क पर चलते चलते या किसी समारोह व आयोजन में जब भी हम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो देख नहीं सकता, चल नहीं सकता, बोल नहीं सकता या किसी अन्य प्रकार की विकलांगता का शिकार हो तो स्वतः ही उसको लेकर लोगों के मन में दया का भाव उत्पन्न होने लगता है. लेकिन एक अन्य भाव भी है जो लोगों के मन में उत्पन्न होता है कि वह है उसे हीन समझने का भाव, और इसी विचार के मन में आते ही ज्यादातर लोग उससे दूरी बना लेते हैं.

यह एक सामान्य विचारधारा है जहां विकलांगता को शारीरिक अक्षमता से जोड़ कर देखा जाता है. लेकिन जरूरी नहीं है कि सभी विकलांगों को अपनी जरूरतों को पूरा करने और जीवन जीने के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़े. यह सत्य है कि ज्यादातर विकलांगों को शुरुआत में दूसरों की मदद की आवश्यकता होती है लेकिन यदि उन्हे सही चिकित्सा, प्रशिक्षण तथा मार्गदर्शन मिले और समाज में बराबरी का मौका मिले तो वे एक आत्मनिर्भर जीवन जी सकते हैं. इसी मुद्दे को लेकर दुनिया भर में लोगों को जागरूक करने तथा विकलांग लोगों को समाज में बराबरी के स्तर पर लाने के लिए उन्हें आर्थिक व सामाजिक रूप से सुदृढ़ बनाने के मौके प्रदान करने के उद्देश्य से हर साल दुनिया भर में 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस मनाया जाता है.

क्या कहते हैं आँकड़े

आमतौर पर लोग नहीं जानते या इस बात पर ध्यान भी नहीं देते हैं कि उनके घर के आसपास कितने लोग विकलांग हैं, और क्या उन्हें अपनी सेहत को बनाए रखने या किसी अन्य मद में सहायता की जरूरत है! संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की वेबसाइट के अनुसार वर्तमान समय में दुनिया भर में लगभग एक अरब विकलांग लोग हैं, जिनमें से 80% विकासशील देशों में रहते है. इसमें चिंता की बात यह है कि दुनिया भर में लगभग 100 मिलीयन दिव्यांग बच्चे हैं. एक अन्य चिंतनीय बात यह भी है कि अधिकांश विकलांग अलग-अलग कारणों से जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा नही ले पाते हैं, मनचाही शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं और यहां तक कि उन्हें समाज में रोजगार के अवसर भी बहुत कम मिल पाते हैं.

विकलांगों को लेकर समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह और भेदभाव को दूर करने के लिए कई वर्षों से राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न समुदायों द्वारा प्रयास किया जा रहा है . जिसके नतीजे स्वरूप दुनिया भर के विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने तथा उनके लिए एक बाधा मुक्त समाज की स्थापना करने में कुछ हद तक सफलता भी मिली है. लेकिन रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में विकलांगों को अभी तक पूरे अधिकार नहीं मिल पाते हैं.

इतिहास

विकलांगों के स्वस्थ जीवन देने, उनका आत्मसम्मान बनाए रखने ,उन्हे उनके अधिकारों के बारें में जागरूक करने तथा उन अधिकारों को प्राप्त करने के मार्ग को सरल करने के उद्देश्य से वर्ष 1992 में 47वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हर साल 3 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस के रूप में नामित करने का प्रस्ताव पारित किया था. जिसका एक उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न संगठनों से विकलांगों के प्रति लोगों की समझ बढ़ाने उनके जीवन को सुधारने के लिए सक्रिय रूप से गतिविधियों का आयोजन करने, उन्हे जरूरी चिकित्सीय सुविधाएं मुहैया करवाने तथा उन्हें समाज में बराबरी के लिए समान अवसर प्रदान करने का प्रयास करना भी था.

दरअसल विकलांगों से जुड़ी विभिन्न अवधारणाओं को मिटाने तथा उनके जीवन के तौर-तरीकों को बेहतर करने के लिए दशकों से विभिन्न राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा पहले से ही प्रयास किए जा रहे थे . जिस के चलते वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने वर्ष 1981 को “विकलांगों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष” के रूप में घोषित किया था. जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर विकलांगों के पुनरुद्धार, विकलांगता की रोकथाम तथा विकलांग लोगों को बराबरी के मौके देने पर जोर देने के लिए योजनाएं बनाई गई थी. यही नहीं इसके उपरांत संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा वर्ष 1983 से 1992 को “विकलांग व्यक्तियों के संयुक्त राष्ट्र दशक” के रूप में घोषित किया गया था.

इस वर्ष भी दिव्यंगों को चिकित्सा, शिक्षा व रोजगार संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराने तथा समाज निर्माण में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यह विशेष दिवस “ कोविड 19 के उपरांत विश्व को स्थिर, स्थाई तथा मजबूत बनाने में दिव्यंगों का नेतृत्व तथा प्रतिभागिता (लीडरशिप एंड पार्टिसिपेशन ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज टूवर्ड्स एंड इंक्लूसिव, एक्सेसिबल एंड सस्टेनेबल पोस्ट कोविड-19 वर्ल्ड) “ थीम पर मनाया जा रहा है.

क्या है विकलांगता तथा उसकी श्रेणियाँ

विकलांगों के विकास के बारें में बात करने से पहले जरूरी है यह जानना, कि विकलांगता क्या होती है. दरअसल सामान्य अर्थों में विकलांगता ऐसी शारीरिक एवं मानसिक अक्षमता को माना जाता है जिसके चलते कोई व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों की तरह किसी कार्य को करने में, देखने में, बोलने में तथा सुनने में अक्षम होता है. चिकित्सीय दृष्टिकोण से देखे तो विकलांगता मुख्यतः दो प्रकार की होती है, शारीरिक विकलांगता तथा मानसिक विकलांगता. इनमें से शारीरिक विकलांगता की श्रेणी में ऐसी अवस्थाओं को रखा जाता है जिनके शरीर एक या एक से ज्यादा अंग किसी भी कार्य को पूर्ण या आंशिक रूप से करने में सक्षम न हो. जैसे अंधापन, हाथों या पैरों संबंधी विकलांगता आदि. वहीं मानसिक विकलांगता वह अवस्था होती है जहां व्यक्ति सीखने, समझने, व्यवहार करने या दूसरों के साथ संपर्क या सामंजस्य बैठाने में अक्षम हो. किसी भी प्रकार की विकलांगता के लिए अलग अलग कारण जिम्मेदार हो सकते हैं जैसे आनुवंशिकता, जन्मजात, न्यूरॉलॉजीकल, शारीरिक समस्या , आघात तथा दुर्घटना आदि.

पढ़ें: उम्र के अनुसार बनाएं फिटनेस प्लान

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