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चाईबासा: सरना धर्म कोड जल्द से जल्द लागू करने की मांग, सरकार को दी चेतावनी

झारखंड में सरना धर्म कोड को लेकर घमासान जारी है. आदिवासी संगठन इसे लेकर अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं. चाईबासा में मानकी मुंडा संघ और हो महासभा ने सरकार से जल्द इसे लागू करने की मांग की है.

सरना धर्म कोड
सरना धर्म कोड
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Published : Nov 10, 2020, 1:33 PM IST

चाईबासा: राज्य के अनुसूचित जनजातियों से जुड़े संगठनों द्वारा सरकार से सरना कोड लागू करने की मांग की जा रही है, लेकिन इसी बीच झारखंड सरकार द्वारा जारी संकल्प पत्र के अंतिम पैराग्राफ में आदिवासियों/सरना लिखा गया है. इससे पश्चिमी सिंहभूम जिले के मानकी मुंडा संघ और हो महासभा को नागवार गुजर रहा है और सरना को लागू करने की दिशा में हेमंत सरकार की पहल पर शंका जाहिर होने लगा है.

हो महासभा की मानें तो सन 1949 में संपन्न हुए संविधान सभा में आदिवासी शब्द को ही खारिज कर दिया गया था. इसके बाद देश के आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में दर्ज दिया गया.

हो महासभा का साफ कहना है सरना कोड लागू नहीं हुआ तो हेमंत सरकार का तिरस्कार किया जाएगा. झारखंड सरकार के संकल्प पत्र के अंतिम पैराग्राफ में आदिवासी/ सरना लिखे जाने के विरोध करते हुए चाईबासा मंगलाहाट स्थित मानकी मुंडा सभागार में आयोजित हो महासभा के लोगों ने प्रेस वार्ता आयोजित की.

इस दौरान मुकेश बिरूवा ने कहा कि सरकार द्वारा आदिवासी/ सरना लिखा जाना सही नहीं है जबकि हम लोग पूरी तरह से सरना धर्म के हैं.

झारखंड सरकार को हम लोग यह बताना चाह रहे हैं देश के आदिवासियों के बारे में सोचना आपका काम नहीं है आप सिर्फ इस राज्य के आदिवासियों के बारे में सोचें क्योंकि हम लोगों ने अपना बहुमूल्य मत देकर आपकी सरकार बनाई है.

अगर छत्तीसगढ़ या अन्य राज्य के आदिवासियों के बारे में सोचना है तो बेहतर है कि आप वहां चले जाए भविष्य में हम लोग आपको सरकार नहीं बनाने देंगे.

यह भी पढ़ेंः हैदराबाद सड़क हादसे में झारखंड के 4 लोगों की मौत, रामगढ़ के रहने वाले थे सभी

गुजरात के 98%, महाराष्ट्र के 98 प्रतिशत, राजस्थान 99 प्रतिशत छत्तीसगढ़ के 96% आदिवासी हिंदू लिखते हैं. वे लोग हिंदू से अब तक निकले नहीं है उसके बावजूद हमें वे सलाह देते हैं कि हम लोगों को आदिवासी लिखना चाहिए.

देश के अन्य राज्यों के आदिवासी हिन्दू से बाहर निकलकर अपना पहचान बनाएं. फिर जब हम 50 लाख के करीब आएंगे तब हम चर्चा कर सकते हैं.

आदिवासी शब्द 2 दिसंबर 1949 को संविधान सभा में बहस के दौरान खारिज कर दिया गया था. यूएनओ में भी भारत सरकार की ओर से प्रतिनिधित्व कर रहे अटल बिहारी वाजपेई ने वहां स्पष्ट किया था कि भारत में कोई आदिवासी नहीं है भारत में सिर्फ अनुसूचित जनजाति के लोग हैं आदिवासी शब्द से नहीं है.

चाईबासा: राज्य के अनुसूचित जनजातियों से जुड़े संगठनों द्वारा सरकार से सरना कोड लागू करने की मांग की जा रही है, लेकिन इसी बीच झारखंड सरकार द्वारा जारी संकल्प पत्र के अंतिम पैराग्राफ में आदिवासियों/सरना लिखा गया है. इससे पश्चिमी सिंहभूम जिले के मानकी मुंडा संघ और हो महासभा को नागवार गुजर रहा है और सरना को लागू करने की दिशा में हेमंत सरकार की पहल पर शंका जाहिर होने लगा है.

हो महासभा की मानें तो सन 1949 में संपन्न हुए संविधान सभा में आदिवासी शब्द को ही खारिज कर दिया गया था. इसके बाद देश के आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में दर्ज दिया गया.

हो महासभा का साफ कहना है सरना कोड लागू नहीं हुआ तो हेमंत सरकार का तिरस्कार किया जाएगा. झारखंड सरकार के संकल्प पत्र के अंतिम पैराग्राफ में आदिवासी/ सरना लिखे जाने के विरोध करते हुए चाईबासा मंगलाहाट स्थित मानकी मुंडा सभागार में आयोजित हो महासभा के लोगों ने प्रेस वार्ता आयोजित की.

इस दौरान मुकेश बिरूवा ने कहा कि सरकार द्वारा आदिवासी/ सरना लिखा जाना सही नहीं है जबकि हम लोग पूरी तरह से सरना धर्म के हैं.

झारखंड सरकार को हम लोग यह बताना चाह रहे हैं देश के आदिवासियों के बारे में सोचना आपका काम नहीं है आप सिर्फ इस राज्य के आदिवासियों के बारे में सोचें क्योंकि हम लोगों ने अपना बहुमूल्य मत देकर आपकी सरकार बनाई है.

अगर छत्तीसगढ़ या अन्य राज्य के आदिवासियों के बारे में सोचना है तो बेहतर है कि आप वहां चले जाए भविष्य में हम लोग आपको सरकार नहीं बनाने देंगे.

यह भी पढ़ेंः हैदराबाद सड़क हादसे में झारखंड के 4 लोगों की मौत, रामगढ़ के रहने वाले थे सभी

गुजरात के 98%, महाराष्ट्र के 98 प्रतिशत, राजस्थान 99 प्रतिशत छत्तीसगढ़ के 96% आदिवासी हिंदू लिखते हैं. वे लोग हिंदू से अब तक निकले नहीं है उसके बावजूद हमें वे सलाह देते हैं कि हम लोगों को आदिवासी लिखना चाहिए.

देश के अन्य राज्यों के आदिवासी हिन्दू से बाहर निकलकर अपना पहचान बनाएं. फिर जब हम 50 लाख के करीब आएंगे तब हम चर्चा कर सकते हैं.

आदिवासी शब्द 2 दिसंबर 1949 को संविधान सभा में बहस के दौरान खारिज कर दिया गया था. यूएनओ में भी भारत सरकार की ओर से प्रतिनिधित्व कर रहे अटल बिहारी वाजपेई ने वहां स्पष्ट किया था कि भारत में कोई आदिवासी नहीं है भारत में सिर्फ अनुसूचित जनजाति के लोग हैं आदिवासी शब्द से नहीं है.

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