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आदिवासियों की परंपरा का स्वाद 'पोड़ोम जिल्लू', बनाने का तरीका बेहद अलग, हर कोई है इसका दीवाना - झारखंड आदिवासियों का पारंपरिक व्यंजन

चाईबासा के सड़कों के किनारे बनते आदिवासियों का पारंपरिक व्यंजन पोड़ोम जिल्लू हर किसी को भा रहा है. पुरानी पद्धति से बनने वाला यह व्यंजन न केवल स्वाद में बल्कि सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद है. इसे बनाने में 20 से 30 मिनट लगते है,लेकिन धीमी आंच का स्वाद इसमें चढ़ जाता है, जो कई दूसरे व्यंजनों से इसे अलग बनाता है.

traditional tribal dish Podom Jillu
पोड़ोम जिल्लू
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Published : Dec 15, 2019, 3:30 PM IST

चाईबासाः पश्चिम सिंहभूम में इन दिनों 'हो' जनजातीय आदिवासियों के व्यंजनों में से एक पोड़ोम जिल्लू की महक आदिवासी और गैर आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. आदिवासियों की यह पारंपरिक भोजन हर किसी के जुबान पर चढ़ गया है. स्थानीय 'हो' समाज के लोग इस व्यंजन के दीवाने हैं. वहीं, गैर आदिवासी भी इस व्यंजन को बड़े चाव से चटकारे लेकर खाते हैं. यह व्यंजन आदिवासी 'हो' समाज के लोगों को रोजगार भी दे रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी

कैसे बनता है पोड़ोम जिल्लू
शहर के बाईपास सड़क किनारे दुकान लगा कर व्यंजन तैयार कर रहे युवक बताते हैं कि इसे बनाना काफी आसान है. उनका कहना है कि बड़े बर्तन में चिकन के छोटे-छोटे टुकड़े रखते हैं, चिकन में बहुत ही कम मात्रा में तेल और मसाला मिलाकर रख दिया जाता है. जिसके बाद भीगे हुए चावल को भी इसके साथ अच्छे से मिलाकर रख दिया जाता है. साल के पत्तों में इसे बांधकर धीमी आंच पर धीरे-धीरे पकाया जाता है. पोड़ोम जिल्लू 15 से 20 मिनट में तैयार भी हो जाता है.

ये भी पढ़ें- राहुल गांधी के रेप इन इंडिया के बयान पर जेपी नड्डा ने कहा- राहुल को वोट से चोट देकर आराम दे देना चाहिए

चाईबासा के मुख्य सड़क किनारे पोड़ोम जिल्लू की दो दर्जन से भी अधिक दुकानें प्रतिदिन लगती हैं. 20 से 25 आदिवासी परिवार यह पोड़ोम जिल्लू की दुकान लगा कर सारे खर्चे काटकर 1 हजार रुपए की आमदनी कर लेते हैं.

स्वाद भी सेहत भी
साल के पत्ते में बनने वाले इस व्यंजन को बनते देखना जितना मजेदार है, खाने में उतना ही स्वादिष्ट भी है. इसके अलावा यह व्यंजन सेहत के लिए भी फायदेमंद है. स्थानीय 'हो' समाज के लोग इसके मुरीद तो है ही बाहर से आने वाले लोगों पर भी पत्ता चिकन का स्वाद चढ़ गया है. स्थानीय लोगों की माने तो आदिवासी समाज के लोगों की जीवनशैली जितनी सादगी भरी होती है, उसी तरह उनकी खान-पान भी सादा ही होता है.

ये भी पढ़ें- बीजेपी नेताओं के बदले सुर, 5 नहीं 15 साल कि गिनाई उपलब्धियां

आदिवासी और गैर आदिवासी दोनों हैं मुरीद
स्थानीय युवक हरिशंकर गोप बताते हैं कि साल का पत्ता आदिवासियों की संस्कृति से जुड़ा हुआ है. सभी कामों में साल के पत्ते का उपयोग किया जाता है. उनकी मानें तो पहले वे पोड़ोम जिल्लू को अपने पूर्वजों को अर्पित करने के लिए पकाते थे, जो पूरी तरह से शुद्ध होता था. यह व्यंजन कभी-कभी खाने को मिलता था. अब 'हो' समाज के युवक युवतियों ने इसे अपना रोजगार बना लिया है. यह पोड़ोम जिल्लू चाईबासा के सड़कों के किनारे बिकने लगा है. जिसे बाहर से आने वाले लोगों ने इस पोड़ोम जिल्लू का स्वाद लिया और कहा कि यह एक तरह की देसी बिरयानी है और काफी मजेदार है.

चाईबासाः पश्चिम सिंहभूम में इन दिनों 'हो' जनजातीय आदिवासियों के व्यंजनों में से एक पोड़ोम जिल्लू की महक आदिवासी और गैर आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. आदिवासियों की यह पारंपरिक भोजन हर किसी के जुबान पर चढ़ गया है. स्थानीय 'हो' समाज के लोग इस व्यंजन के दीवाने हैं. वहीं, गैर आदिवासी भी इस व्यंजन को बड़े चाव से चटकारे लेकर खाते हैं. यह व्यंजन आदिवासी 'हो' समाज के लोगों को रोजगार भी दे रहा है.

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कैसे बनता है पोड़ोम जिल्लू
शहर के बाईपास सड़क किनारे दुकान लगा कर व्यंजन तैयार कर रहे युवक बताते हैं कि इसे बनाना काफी आसान है. उनका कहना है कि बड़े बर्तन में चिकन के छोटे-छोटे टुकड़े रखते हैं, चिकन में बहुत ही कम मात्रा में तेल और मसाला मिलाकर रख दिया जाता है. जिसके बाद भीगे हुए चावल को भी इसके साथ अच्छे से मिलाकर रख दिया जाता है. साल के पत्तों में इसे बांधकर धीमी आंच पर धीरे-धीरे पकाया जाता है. पोड़ोम जिल्लू 15 से 20 मिनट में तैयार भी हो जाता है.

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चाईबासा के मुख्य सड़क किनारे पोड़ोम जिल्लू की दो दर्जन से भी अधिक दुकानें प्रतिदिन लगती हैं. 20 से 25 आदिवासी परिवार यह पोड़ोम जिल्लू की दुकान लगा कर सारे खर्चे काटकर 1 हजार रुपए की आमदनी कर लेते हैं.

स्वाद भी सेहत भी
साल के पत्ते में बनने वाले इस व्यंजन को बनते देखना जितना मजेदार है, खाने में उतना ही स्वादिष्ट भी है. इसके अलावा यह व्यंजन सेहत के लिए भी फायदेमंद है. स्थानीय 'हो' समाज के लोग इसके मुरीद तो है ही बाहर से आने वाले लोगों पर भी पत्ता चिकन का स्वाद चढ़ गया है. स्थानीय लोगों की माने तो आदिवासी समाज के लोगों की जीवनशैली जितनी सादगी भरी होती है, उसी तरह उनकी खान-पान भी सादा ही होता है.

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आदिवासी और गैर आदिवासी दोनों हैं मुरीद
स्थानीय युवक हरिशंकर गोप बताते हैं कि साल का पत्ता आदिवासियों की संस्कृति से जुड़ा हुआ है. सभी कामों में साल के पत्ते का उपयोग किया जाता है. उनकी मानें तो पहले वे पोड़ोम जिल्लू को अपने पूर्वजों को अर्पित करने के लिए पकाते थे, जो पूरी तरह से शुद्ध होता था. यह व्यंजन कभी-कभी खाने को मिलता था. अब 'हो' समाज के युवक युवतियों ने इसे अपना रोजगार बना लिया है. यह पोड़ोम जिल्लू चाईबासा के सड़कों के किनारे बिकने लगा है. जिसे बाहर से आने वाले लोगों ने इस पोड़ोम जिल्लू का स्वाद लिया और कहा कि यह एक तरह की देसी बिरयानी है और काफी मजेदार है.

Intro:चाईबासा। पश्चिम सिंहभूम जिले की मुख्य सड़कें इन दिनों हो जनजातीय आदिवासियों की व्यंजनों में से एक पोड़ोम जिल्लू की महक आदिवासी एवं गैर आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। आदिवासियों की यह पारंपरिक भोजन हर किसी के जुबान पर चढ़ गया है। स्थानीय हो समाज के लोग इस व्यंजन के दीवाने हैं ही गैर आदिवासी भी इस व्यंजन को बड़े चाव से चटकारे लेकर खाते हैं। यह व्यंजन आदिवासी हो समाज के लोगों को रोजगार भी दे रहा है।





Body:चाईबासा में साल के पत्ते में बनने वाले इस व्यंजन को बनते देखना जितना मजेदार है खाने में उतना ही स्वादिष्ट भी है। इसके अलावा यह व्यंजन सेहत के लिए भी फायदेमंद है. यह पोड़ोम जिल्लू आदिवासी घरों से निकलकर यह चाईबासा के सड़कों के किनारे यह खूब बिक रहा है। स्थानीय हो समाज के लोग इसके मुरीद तो है ही बाहर से आने वाले लोगों पर भी पत्ता चिकन का स्वाद चढ़ गया है।

स्थानीय लोगों की माने तो आदिवासी समाज के लोगों की जीवनशैली जितनी सादगी भरी होती है उसी तरह उनकी खान पान भी सदा ही होता है।

स्थानीय युवक हरिशंकर गोप बताते हैं कि साल का पत्ता हमारे संस्कृति से जुड़ा हुआ है सभी कामों में साल के पत्ते का उपयोग किया जाता है। उनकी मानें तो पहले वे पोडोम जिल्लू को अपने पूर्वजों को अर्पित करने के लिए पकाते थे जो पूरी तरह से शुद्ध होता था और यह व्यंजन कभी कभी खाने को मिलता था।

अब हो समाज के युवक युवतियों ने इसे अपना रोजगार बना लिया है। यह पोडोम जिल्लू अब चाईबासा के सड़कों के किनारे बिकने लगा है। जिसे बाहर से आने वाले लोगों ने चाईबासा में इस पोडोम जिल्लू का स्वाद लिया और कहा कि यह एक तरह की देसी बिरयानी है और काफी मजेदार है। साथ ही बारिश एवं सर्दियों के मौसम में जिसे खाने का एक अलग ही मजा है।

साल के पत्तों में बनने के साथ-साथ यह उसी में परोसा भी जाता है 20 से 30 रुपये में एक पोड़ोम जिल्लू के साथ चावल भी मिलता है। पहले चाईबासा में दो-तीन लोग ही इसे बेचा करते थे परंतु इस की बढ़ती मांग को देखते हुए चाईबासा के कई जगहों पर यह मिलने लगा है।

चाईबासा के बाईपास सड़क किनारे दुकान लगा कर व्यंजन तैयार कर रहे युवक बताते हैं कि इसे बनाना काफी आसान है उनका कहना है कि बड़े बर्तन में चिकन के छोटे-छोटे टुकड़े रखते हैं चिकन में बहुत ही कम मात्रा में तेल व मसाला मिलाकर रख दिया जाता है। जिसके बाद भीगे हुए चावल को भी इसके साथ अच्छे से मिलाकर रख दिया जाता है और साल के पत्तों में इसे बांधकर आप पर इसी धीमे-धीमे पकाया जाता है पोड़ोम जिल्लू 15 से 20 मिनट में तैयार भी हो जाता है।

चाईबासा के मुख्य सड़क किनारे पोडोम जिल्लू की दो दर्जन से भी अधिक दुकानें प्रतिदिन लगती है 20 से 25 आदिवासी परिवार यह पोडोम जिल्लू की दुकान लगा कर सारे खर्चे काटकर 1000 रुपये की आमदनी दुकान से हो जाती है। जिससे युवक युवतियां अपने घर परिवार का भरण पोषण कर रहे है।


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