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ईटीवी भारत पर मिलिए पद्मश्री जानुम सिंह सोय से, जानिए बचपन से लेकर अब तक की पूरी कहानी उन्हीं की जुबानी - जानुम सिंह सोय के बारे जानकारी

झारखंड के जानुम सिंह सोय का चयन पद्मश्री पुरस्कार के लिए हुआ है. जैसे ही पद्म पुरस्कार की घोषणा हुई वैसे ही जानुम सिंह सोय के पास बधांई देने के लिए फोन कॉल्स आने लगे, वहीं इंटरनेट पर भी उनके बारे में सर्च किए जाने लगे, लेकिन वहां भी लोगों को उनके बारे में बहुत जानकारियां नहीं मिल पाई. क्योंकि जानुस सिंह जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं, ज्यादे लाइम-लाइट में नहीं रहते हैं. आईए ईटीवी भारत आपको उनसे मिलवाता है.

Interview of Padma Shri awardee Janum Singh Soy
पत्नी हीरा देवी के साथ डॉ जानुम सिंह सोय
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Published : Jan 26, 2023, 7:58 PM IST

जानुम सिंह सोय और उनकी पत्नी का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

घाटशिला\पूर्वी सिंहभूम: झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित घाटशिला के डॉ जानुम सिंह सोय का चयन 2023 के पद्मश्री पुरस्कार के लिए किया गया है. झारखंड के डॉ जानुम सिंह सोय 40 वर्षों से 'हो' भाषा के विकास के लिए कार्यरत रहे हैं और कोल्हान विश्वविद्यालय से सेवानिवृत हुए हैं. उनका चयन पद्मश्री पुरस्कार के लिए किये जाने पर घाटशिला अनुमंडल सहित पूरे कोल्हान प्रमंडल के लोग खुश है क्योंकि डॉक्टर सोए मूल रूप से पश्चिमी सिंहभूम जिले के रहने वाले हैं. डॉ सोय हो भाषा को स्नातकोत्तर स्तर पर शामिल करने के लिए सदैव तत्पर रहे. उन्होंने हो जनजाति की संस्कृति और जीवनशैली पर 6 पुस्तकें लिखी हैं.

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आदिवासियों की परंपरा को लेकर बचपन से रुचि: 'हो' भाषा के डेवलपमेंट के लिए काम कर रहे घाटशिला के डॉ जानुम सिंह सोय के चार कविता संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. पहला काव्य संग्रह साल 2009 में प्रकाशित हुआ. इसे 'बाहा सगेन' नाम दिया गया था. इस काव्य संग्रह का दूसरा हिस्सा इसी साल प्रकाशित हुआ है. इस उपन्यास में उन्होंने आदिवासियों की परंपरा, संस्कृति, त्योहारों और लोकरीत के गीतों को शामिल किया है.

मातृभाषा को ना भूलने की नसीहत: 2010 में 'कुड़ी नाम' उपन्यास प्रकाशित हुआ. यह उपन्यास हो जीवन के सामाजिक विषयों की पृष्ठभूमि पर आधारित है. इसके अतिरिक्त इनके कविता संग्रह 'हरा सागेन' के दो भाग प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि 'हो' भाषा और आदिवासियों की परंपरा को लेकर मेरी रुचि बचपन से ही रही है. उन्होंने अपने आदिवासी समाज से आह्वान किया है कि अपनी मातृभाषा को ना भूलें और आप चाहे किसी भी भाषा में पढ़ाई करें लेकिन मातृभाषा को भूलने का मतलब आप अपने आप को भूल रहे हैं.

जानें, डॉ जानुम सिंह सोय और परिवार के बारे: 8 अगस्त 1950 को झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के गितिल लुलुंग गांव में डॉ सोय का जन्म हुआ था. उन्होंने अपने गांव से ही प्रारंभिक शिक्षा की शुरूआत की. इसके बाद वे घाटशिला कॉलेज से उच्च शिक्षा की पढ़ाई की. साल 1977 में वे घाटशिला कॉलेज में हिंदी के व्याख्याता नियुक्त किए गए. इसके बाद कोल्हान यूनिवर्सिटी के हिंदी विभागाध्यक्ष भी रहे.

पत्नी भी करती हैं सहयोग: जानुम सिंह सोय के परिवार में पत्नी हीरा देवी सोय भी एक रिटायर शिक्षक हैं जो अभी अपने पति के काम में हाथ बंटाती है और उसे प्रोत्साहन भी देती है. इसके अलावा बेटा जय सिंह सोय और दो बेटियां मनीषा सोय, मधुरिमा सोय है. बेटा जय सिंह मझगांव में उत्क्रमित मध्य विद्यालय के प्रिंसिपल है.

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