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राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ा 'हो' भाषा शिक्षण प्रशिक्षण केंद्र, जानिए क्या थी इस संस्थान की खासियत - हो भाषा शिक्षण संस्थान चाईबासा

साल 1992 में हो भाषा के लिए बने शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र कई वर्षों से बंद पड़ा हुआ है, जिसके कारण हो भाषा की पढ़ाई करने वाले छात्रों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ने के कारण यह संस्थान आज जर्जर हालात में है.

educational training and research center has been closed for many years in chaibasa
राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ा हो भाषा शिक्षण प्रशिक्षण केंद्र
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Published : Feb 18, 2020, 6:45 PM IST

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम जिले के टोंटो प्रखंड के बड़ा झींकपानी में हो भाषा (वरंग क्षिति लिपि) शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र का इतिहास गौरवशाली है, लेकिन इस भाषा के विकास में मील का पत्थर माना जाने वाला अनुसंधान केंद्र 9 साल के बाद ही राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ गया और संस्थान हमेशा के लिए बंद हो गया.

देखें स्पेशल स्टोरी

हो भाषा और उसकी लिपि के संवर्धन और विकास के लिए निर्मित अनुसंधान केंद्र में किसी समय लगभग 15 सौ विद्यार्थी अपनी मातृभाषा की पढ़ाई करते थे. इस केंद्र के बगल में ही 6 कमरों का हॉस्टल भी मौजूद था, जिसमें दूरदराज से विद्यार्थी रहकर पढ़ाई करते थे. उस दौरान कोल्हान में हो भाषा और उसकी लिपि पढ़ाने वाली हो आदिवासियों की यह एकमात्र संस्थान था, जो लगभग डेढ़ दशक तक हो भाषा की पढ़ाई का केंद्र रहा. इस केंद्र में मुख्य रूप से हो भाषा के टीचर ट्रेनिंग के अलावा हो भाषा और व्याकरण, भाषा साहित्य आदि के बारे में पढ़ाया जाता था. इस संस्थान में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए उनकी फीस प्रतिमाह मात्र 100 रुपये हुआ करता था. एक विद्यार्थी को सप्ताह में सिर्फ तीन से चार दिन ही पढ़ाया जाता था.

इसे भी पढ़ें:- चाईबासाः विस्थापितों ने की आमसभा, ईचा डैम का निर्माण कार्य बंद करवाने की मांग

1992 में की गई थी अनुसंधान केंद्र की स्थापना

वरंग क्षिति लिपि के विकास और हो भाषा के प्रशिक्षण के उद्देश्य से अनुसंधान केंद्र की स्थापना 1992 में हो समाज के कुछ लोगों ने किया था. इनमें वरंग क्षिति लिपि के विकास में अपना संपूर्ण जीवन पाने वाले हो भाषा प्रेमियों की इच्छाशक्ति और जिद्द के कारण यह प्रशिक्षण केंद्र अस्तित्व में आया था. हो भाषा प्रेमियों के पास कोई अपना भवन नहीं था. इसलिए उन्होंने एसएस हाई स्कूल बड़ा झींकपानी के भवन में ही शुरुआत में हो भाषा की पढ़ाई शुरू करवाई थी.

शिक्षण संस्थान खोलने के लिए बुधन सिंह ने दी थी जमीन

शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र के स्थापना के लिए बड़ा झींकपानी के रामसाई निवासी समाजसेवी बुधन सिंह हांसदा ने अपनी ढाई एकड़ पैतृक जमीन भी दान में दिया था. साल1995 में तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने टोंटो प्रखंड के बड़ा झींकपानी में इस केंद्र के लिए कई कमरों का एक भवन का शिलान्यास किया, जो 1997 में बनकर तैयार हो गया, जिसके बाद हो भाषा शिक्षण संस्थान में पढ़ाई शुरु कर दी गई.

187 विद्यार्थियों ने निकाली थी जेपीएससी की परीक्षा

इस प्रशिक्षण केंद्र से 2006 में हो भाषा के लिए हुए जेपीएससी के शिक्षकों की बहाली के लिए चयन परीक्षा में187 विद्यार्थियों ने सफलता पाई थी, जिसके बाद यह संस्था चर्चा का केंद्र बन गया. परीक्षा में उत्तीर्ण विद्यार्थियों की साक्षात्कार भी गया था, लेकिन नियुक्ति करना ही बांकी रह गया था. इसी बीच राज्य सरकार ने यह कहते हुए उनकी नियुक्ति रद्द कर दी कि उन्होंने जिस संस्थान से टीचर की ट्रेनिंग ली है वह राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त नहीं है, जबकि टीचर ट्रेनिंग देने वाली संस्थाओं से पास एनसीटीई की मान्यता जरूरी है, वरना वह अवैध होगी. इस तरह से सरकार ने हो भाषा शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र को गैर मान्यता प्राप्त घोषित कर दिया. सरकार के इस फैसले के बाद अभ्यर्थियों में काफी गुस्सा हुए और वो सड़क पर उतरे, लेकिन सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी.

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राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ा शिक्षण संस्थान

संस्थान के प्रबंधन समिति के सचिव डोबरो बीरूउली ने बताया कि उस दौरान टीचर ट्रेनिंग की विधि अनुसार प्रशिक्षण दी जा रही थी, जिसमें हो भाषा शिक्षण पद्धति में वरंग क्षिति लिपि को भी सिखाया जाता था. उन्होंने बताया कि संस्थान 1992 से 2001 तक काफी अच्छी तरीका से संचालित हुआ, लेकिन जैसे ही 15 नवंबर 2000 को झारखंड अस्तित्व में आया, वैसे ही संस्थान में राजनीति ने अपने पांव पसार लिया. धीरे-धीरे संस्थान में राजनीति बढ़ती चली गई. नतीजतन राजनीतिक गुटबाजी से केंद्र चलाने के लिए बनी संचालन समिति में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने लगा, जिस कारण 2005 में यह संस्थान पूरी तरह से राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ गया और वरंग क्षिति लिपि सिखाने वाली एकमात्र संस्था हमेशा के लिए बंद हो गई.

आदिवासी छात्रों को हुआ काफी नुकसान

संस्थान में छात्र रहे सुभाष सवैंया बताते हैं कि शिक्षण संस्थान का बंद होना आदिवासी हो समुदाय के लिए काफी नुकसानदेह साबित हुआ है, क्योंकि वारंग क्षिति लिपि हमारे आदिवासी समुदाय का अपना लिपि है. उन्होंने कहा कि हो भाषा हमारी मातृभाषा है, ऐसे में कोल्हान में 10 लाख से भी अधिक लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं और ऐसे में शिक्षण संस्थान का अचानक से बंद हो जाना हमारी संस्कृति के लिए बड़ी नुकसानदेह है.

विधायक करेंगे हेमंत सरकार से संस्थान शुरू करने की मांग

सदर चाईबासा के विधायक दीपक बिरूवा ने इसे लेकर कहा कि इस संस्थान के 187 विद्यार्थियों की जेपीएससी परीक्षा उतीर्ण करने के बाद जनजातीय भाषा के लोगों की साक्षात्कार ली गई थी, लेकिन जब नियुक्ति की बात आई तो कहा गया कि किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान से इनकी डिग्री नहीं होने के कारण नियुक्ति नहीं हो सकती है. उन्होंने बताया कि हेमंत सरकार से इस संस्थान को फिर से शुरु करने का आग्रह किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सभी को मालूम है कि 2075 के तहत ट्राइबल क्षेत्र को विशेष फंड और पैकेज दिया जाता है. इन सारी चीजों का विकास होना चाहिए.

चाईबासा: पश्चिम सिंहभूम जिले के टोंटो प्रखंड के बड़ा झींकपानी में हो भाषा (वरंग क्षिति लिपि) शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र का इतिहास गौरवशाली है, लेकिन इस भाषा के विकास में मील का पत्थर माना जाने वाला अनुसंधान केंद्र 9 साल के बाद ही राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ गया और संस्थान हमेशा के लिए बंद हो गया.

देखें स्पेशल स्टोरी

हो भाषा और उसकी लिपि के संवर्धन और विकास के लिए निर्मित अनुसंधान केंद्र में किसी समय लगभग 15 सौ विद्यार्थी अपनी मातृभाषा की पढ़ाई करते थे. इस केंद्र के बगल में ही 6 कमरों का हॉस्टल भी मौजूद था, जिसमें दूरदराज से विद्यार्थी रहकर पढ़ाई करते थे. उस दौरान कोल्हान में हो भाषा और उसकी लिपि पढ़ाने वाली हो आदिवासियों की यह एकमात्र संस्थान था, जो लगभग डेढ़ दशक तक हो भाषा की पढ़ाई का केंद्र रहा. इस केंद्र में मुख्य रूप से हो भाषा के टीचर ट्रेनिंग के अलावा हो भाषा और व्याकरण, भाषा साहित्य आदि के बारे में पढ़ाया जाता था. इस संस्थान में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए उनकी फीस प्रतिमाह मात्र 100 रुपये हुआ करता था. एक विद्यार्थी को सप्ताह में सिर्फ तीन से चार दिन ही पढ़ाया जाता था.

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1992 में की गई थी अनुसंधान केंद्र की स्थापना

वरंग क्षिति लिपि के विकास और हो भाषा के प्रशिक्षण के उद्देश्य से अनुसंधान केंद्र की स्थापना 1992 में हो समाज के कुछ लोगों ने किया था. इनमें वरंग क्षिति लिपि के विकास में अपना संपूर्ण जीवन पाने वाले हो भाषा प्रेमियों की इच्छाशक्ति और जिद्द के कारण यह प्रशिक्षण केंद्र अस्तित्व में आया था. हो भाषा प्रेमियों के पास कोई अपना भवन नहीं था. इसलिए उन्होंने एसएस हाई स्कूल बड़ा झींकपानी के भवन में ही शुरुआत में हो भाषा की पढ़ाई शुरू करवाई थी.

शिक्षण संस्थान खोलने के लिए बुधन सिंह ने दी थी जमीन

शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र के स्थापना के लिए बड़ा झींकपानी के रामसाई निवासी समाजसेवी बुधन सिंह हांसदा ने अपनी ढाई एकड़ पैतृक जमीन भी दान में दिया था. साल1995 में तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने टोंटो प्रखंड के बड़ा झींकपानी में इस केंद्र के लिए कई कमरों का एक भवन का शिलान्यास किया, जो 1997 में बनकर तैयार हो गया, जिसके बाद हो भाषा शिक्षण संस्थान में पढ़ाई शुरु कर दी गई.

187 विद्यार्थियों ने निकाली थी जेपीएससी की परीक्षा

इस प्रशिक्षण केंद्र से 2006 में हो भाषा के लिए हुए जेपीएससी के शिक्षकों की बहाली के लिए चयन परीक्षा में187 विद्यार्थियों ने सफलता पाई थी, जिसके बाद यह संस्था चर्चा का केंद्र बन गया. परीक्षा में उत्तीर्ण विद्यार्थियों की साक्षात्कार भी गया था, लेकिन नियुक्ति करना ही बांकी रह गया था. इसी बीच राज्य सरकार ने यह कहते हुए उनकी नियुक्ति रद्द कर दी कि उन्होंने जिस संस्थान से टीचर की ट्रेनिंग ली है वह राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त नहीं है, जबकि टीचर ट्रेनिंग देने वाली संस्थाओं से पास एनसीटीई की मान्यता जरूरी है, वरना वह अवैध होगी. इस तरह से सरकार ने हो भाषा शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र को गैर मान्यता प्राप्त घोषित कर दिया. सरकार के इस फैसले के बाद अभ्यर्थियों में काफी गुस्सा हुए और वो सड़क पर उतरे, लेकिन सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी.

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राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ा शिक्षण संस्थान

संस्थान के प्रबंधन समिति के सचिव डोबरो बीरूउली ने बताया कि उस दौरान टीचर ट्रेनिंग की विधि अनुसार प्रशिक्षण दी जा रही थी, जिसमें हो भाषा शिक्षण पद्धति में वरंग क्षिति लिपि को भी सिखाया जाता था. उन्होंने बताया कि संस्थान 1992 से 2001 तक काफी अच्छी तरीका से संचालित हुआ, लेकिन जैसे ही 15 नवंबर 2000 को झारखंड अस्तित्व में आया, वैसे ही संस्थान में राजनीति ने अपने पांव पसार लिया. धीरे-धीरे संस्थान में राजनीति बढ़ती चली गई. नतीजतन राजनीतिक गुटबाजी से केंद्र चलाने के लिए बनी संचालन समिति में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ने लगा, जिस कारण 2005 में यह संस्थान पूरी तरह से राजनीतिक गुटबाजी की भेंट चढ़ गया और वरंग क्षिति लिपि सिखाने वाली एकमात्र संस्था हमेशा के लिए बंद हो गई.

आदिवासी छात्रों को हुआ काफी नुकसान

संस्थान में छात्र रहे सुभाष सवैंया बताते हैं कि शिक्षण संस्थान का बंद होना आदिवासी हो समुदाय के लिए काफी नुकसानदेह साबित हुआ है, क्योंकि वारंग क्षिति लिपि हमारे आदिवासी समुदाय का अपना लिपि है. उन्होंने कहा कि हो भाषा हमारी मातृभाषा है, ऐसे में कोल्हान में 10 लाख से भी अधिक लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं और ऐसे में शिक्षण संस्थान का अचानक से बंद हो जाना हमारी संस्कृति के लिए बड़ी नुकसानदेह है.

विधायक करेंगे हेमंत सरकार से संस्थान शुरू करने की मांग

सदर चाईबासा के विधायक दीपक बिरूवा ने इसे लेकर कहा कि इस संस्थान के 187 विद्यार्थियों की जेपीएससी परीक्षा उतीर्ण करने के बाद जनजातीय भाषा के लोगों की साक्षात्कार ली गई थी, लेकिन जब नियुक्ति की बात आई तो कहा गया कि किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान से इनकी डिग्री नहीं होने के कारण नियुक्ति नहीं हो सकती है. उन्होंने बताया कि हेमंत सरकार से इस संस्थान को फिर से शुरु करने का आग्रह किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सभी को मालूम है कि 2075 के तहत ट्राइबल क्षेत्र को विशेष फंड और पैकेज दिया जाता है. इन सारी चीजों का विकास होना चाहिए.

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