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कोल्हान में नहीं रूक रहा बाल श्रम, मानव संसाधन विकास विभाग के पास नहीं है कोई आंकड़ा

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Published : Jun 12, 2020, 8:32 PM IST

विश्व भर में आज के दिन को बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि समाज में बाल श्रम के प्रति जागरूकता लाई जा सके और बाल मजदूरी के दलदल में गिरे मासूम बच्चों के बचपन को संवारा जा सके, लेकिन कोल्हान प्रमंडल में कितने बाल श्रमिक कार्यरत हैं, विभाग के पास इसका कोई आंकड़ा ही नहीं है.

कोल्हान में नहीं रूक रहा बाल श्रम
Child labor not stopping in Kolhan

चाईबासा: भारत समेत विश्व भर में आज के दिन को बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि समाज में बाल श्रम के प्रति जागरूकता लाई जा सके और बाल मजदूरी के दलदल में गिरे मासूम बच्चों के बचपन को संवारा जा सके. दुनिया भर में आज 152 लाख बच्चे कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में बाल मजदूरी के शिकार हो रहे हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

बाल श्रमिकों के आंकड़ों से अनजान अधिकारी

बाल अधिकारों के लिए विश्व भर में काम करने वाली संस्था 'सेव द चिल्ड्रन' ने हाल ही में जारी किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार भारतवर्ष में प्रत्येक चार में से एक को अपना बचपन नसीब नहीं होता है. ऐसे में झारखंड राज्य में वीरों की धरती कहे जाने वाली कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिलों में 'मजबूर बचपन भी मजदूर' हो गया है. यहां मासूम ख्वाहिशें होटल के चूल्हे में झुलस कर राख में तब्दील हो चुके हैं. प्रमंडल के ढाबों और गैरेजों में आज बचपन सिसक रहा है और मासूमों के सपने टूट रहे हैं. श्रम ने इन मासूमों के बचपन को वक्त से पहले ही सोख लिया है, लेकिन श्रम विभाग को इन बाल श्रमिकों के आंकड़ों से कोई लेना देना नहीं है.

ये भी पढ़ें-बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को चुनाव आयोग ने माना निर्दलीय विधायक: सूत्र

क्या है बाल श्रम

कोल्हान प्रमंडल के जमशेदपुर, चाईबासा और सरायकेला जिले में कितने बाल श्रमिक कार्यरत हैं इसकी जानकारी कोल्हान के किसी भी बाल सूचना कार्यालय में उपलब्ध नहीं है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार जब बच्चे अपने और परिवार की जीविका के लिए काम करने को मजबूर होता है, जिससे उन्हें शैक्षणिक और सामाजिक हानि होती है तो वही बाल श्रम कहलाता है. इसके अलावा जब बच्चों को उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है और समय से पहले व्यस्क जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है तो वह भी बाल श्रम कहलाता है.

काम की तलाश में बच्चे पहुंचते हैं चाईबासा

मानव संसाधन विकास विभाग के अनुसार स्कूल नहीं जाने वाले बच्चे बाल श्रमिक होते हैं. अधिकांश बाल मजदूर झारखंड से सटे बंगाल, बिहार और ओडिशा के सीमावर्ती राज्यों से कोल्हान के अलग-अलग जिलों में कार्य करने पहुंचते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं. कोल्हान प्रमंडल के चाईबासा शहर के एक होटल संचालक ने आम बातचीत में बताया कि बंगाल के पुरुलिया समेत बिहार-ओडिशा के साथ ही जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से अधिकांश बच्चे काम की तलाश में शहर पहुंचते हैं. यहां उन्हें सिर छुपाने की जगह और दो वक्त का खाना मिल जाता है. इसके अलावा होटलों और गैरेजों में मालिकों की ओर से बच्चों को 30 से 50 रुपये रोजाना हाजिरी देकर रख लिया जाता है.

ये भी पढ़ें-केन्द्र विमान की टिकटों का पैसा लौटाने के मामले में विमान कंपनियों से बात करे: न्यायालय

बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों का पुनर्वास

बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों के पुनर्वास को लेकर भी विभाग कोई खास पहल नहीं करती है. श्रम विभाग बाल श्रमिकों को लेकर बीच-बीच में अभियान चलाता रहता है. इसके तहत कोल्हान समेत राज्य भर में सरकार की ओर से साल 2015 में ऑपरेशन मुस्कान चलाया गया था, जिसमें कई बाल श्रमिकों को होटल और गैरेजों से मुक्त कराया गया था, लेकिन इससे बाल मजदूरों का कल तो नहीं बदलता है. उल्टे रिमांड होम में अपराधिक प्रवृत्ति के लिए बंद किशोर इन्हें भी अपराध की एबीसीडी सिखा देते हैं या फिर उनके सूत्र में फिट नहीं बैठने पर वह बालश्रम से मुक्त कराए गए बच्चों को यातनाएं देते हैं.

ऑपरेशन मुस्कान की शुरूआत

बाल श्रम से ऑपरेशन मुस्कान के तहत मुक्त कराए गए बच्चे आखिर वर्तमान में कहां हैं और क्या कर रहे हैं. इस बात से भी विभाग पूरी तरह से बेखबर है. इसके साथ ही ऑपरेशन मुस्कान भी पूरी तरह ठंडे बस्ते में चला गया है. झारखंड किशोर बोर्ड के सदस्य विकास दोदराजका ने बताया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार, 6 से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा ग्रहण करने के लिए बनाया गया है. ऐसे बच्चों से बाल श्रम नहीं करवाया जा सकता है. बच्चों के लिए बाल श्रम हमारे समाज के लिए एक अभिशाप है. इसे लेकर बनाये गए कानून में आवश्यक संशोधन की जरूरत पड़ी.

ये भी पढ़ें-लोन मोरेटोरियम: सुप्रीम कोर्ट का आरबीआई को निर्देश, वित्त मंत्रालय के साथ मिलकर तीन दिन में लें निर्णय

बाल श्रम कानून में संशोधन

विकास दोदराजका ने बताया कि 2016 में इसमें कई संसोधन भी किये गए और कानून को और भी कड़ा बनाया गया. 2017 में भी बाल श्रम कानून में संशोधन किया गया पर आज यह कानून काफी कड़े रूप से लागू है. अगर कोई छोटे बच्चों से बाल श्रम करवाता है तो उसे 2 साल तक की सजा और 50 हजार का जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है. झारखंड किशोर बोर्ड के सदस्य ने बताया कि हमारे जिले में भी कई मामले बाल श्रम को लेकर दर्ज किए गए हैं, जिसमें चाइल्ड लाइन की सूचना और श्रम विभाग की ओर से कई मामले दर्ज हुए हैं, जिससे समाज में चेतना, जागरूकता और भय भी आया है.

चाइल्डलाइन 120 बच्चों की ही कर सकी है रिकवरी

वहीं, चाईबासा चाइल्ड लाइन के सेंटर कोऑर्डिनेटर जयदू करजी ने बताया कि चाइल्ड लाइन 120 मामले पर काम कर चुकी है और सभी मामले को सुलझा लिया गया है. बाल श्रम के दलदल में पश्चिम सिंहभूम जिले के आंकड़े काफी ज्यादा है. इस जिले में 13 हजार 608 बाल मजदूर पाए गए हैं, जिसमें से 10 हजार 308 लड़के और 3 हजार 300 लड़कियां शामिल है, लेकिन अब तक चाइल्डलाइन ने 120 बच्चों की रिकवरी की है. इसे लेकर जगह-जगह जागरूकता फैलाई जा रही है.

चाईबासा: भारत समेत विश्व भर में आज के दिन को बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि समाज में बाल श्रम के प्रति जागरूकता लाई जा सके और बाल मजदूरी के दलदल में गिरे मासूम बच्चों के बचपन को संवारा जा सके. दुनिया भर में आज 152 लाख बच्चे कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में बाल मजदूरी के शिकार हो रहे हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

बाल श्रमिकों के आंकड़ों से अनजान अधिकारी

बाल अधिकारों के लिए विश्व भर में काम करने वाली संस्था 'सेव द चिल्ड्रन' ने हाल ही में जारी किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार भारतवर्ष में प्रत्येक चार में से एक को अपना बचपन नसीब नहीं होता है. ऐसे में झारखंड राज्य में वीरों की धरती कहे जाने वाली कोल्हान प्रमंडल के तीनों जिलों में 'मजबूर बचपन भी मजदूर' हो गया है. यहां मासूम ख्वाहिशें होटल के चूल्हे में झुलस कर राख में तब्दील हो चुके हैं. प्रमंडल के ढाबों और गैरेजों में आज बचपन सिसक रहा है और मासूमों के सपने टूट रहे हैं. श्रम ने इन मासूमों के बचपन को वक्त से पहले ही सोख लिया है, लेकिन श्रम विभाग को इन बाल श्रमिकों के आंकड़ों से कोई लेना देना नहीं है.

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क्या है बाल श्रम

कोल्हान प्रमंडल के जमशेदपुर, चाईबासा और सरायकेला जिले में कितने बाल श्रमिक कार्यरत हैं इसकी जानकारी कोल्हान के किसी भी बाल सूचना कार्यालय में उपलब्ध नहीं है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार जब बच्चे अपने और परिवार की जीविका के लिए काम करने को मजबूर होता है, जिससे उन्हें शैक्षणिक और सामाजिक हानि होती है तो वही बाल श्रम कहलाता है. इसके अलावा जब बच्चों को उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है और समय से पहले व्यस्क जीवन जीने के लिए मजबूर किया जाता है तो वह भी बाल श्रम कहलाता है.

काम की तलाश में बच्चे पहुंचते हैं चाईबासा

मानव संसाधन विकास विभाग के अनुसार स्कूल नहीं जाने वाले बच्चे बाल श्रमिक होते हैं. अधिकांश बाल मजदूर झारखंड से सटे बंगाल, बिहार और ओडिशा के सीमावर्ती राज्यों से कोल्हान के अलग-अलग जिलों में कार्य करने पहुंचते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं. कोल्हान प्रमंडल के चाईबासा शहर के एक होटल संचालक ने आम बातचीत में बताया कि बंगाल के पुरुलिया समेत बिहार-ओडिशा के साथ ही जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से अधिकांश बच्चे काम की तलाश में शहर पहुंचते हैं. यहां उन्हें सिर छुपाने की जगह और दो वक्त का खाना मिल जाता है. इसके अलावा होटलों और गैरेजों में मालिकों की ओर से बच्चों को 30 से 50 रुपये रोजाना हाजिरी देकर रख लिया जाता है.

ये भी पढ़ें-केन्द्र विमान की टिकटों का पैसा लौटाने के मामले में विमान कंपनियों से बात करे: न्यायालय

बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों का पुनर्वास

बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों के पुनर्वास को लेकर भी विभाग कोई खास पहल नहीं करती है. श्रम विभाग बाल श्रमिकों को लेकर बीच-बीच में अभियान चलाता रहता है. इसके तहत कोल्हान समेत राज्य भर में सरकार की ओर से साल 2015 में ऑपरेशन मुस्कान चलाया गया था, जिसमें कई बाल श्रमिकों को होटल और गैरेजों से मुक्त कराया गया था, लेकिन इससे बाल मजदूरों का कल तो नहीं बदलता है. उल्टे रिमांड होम में अपराधिक प्रवृत्ति के लिए बंद किशोर इन्हें भी अपराध की एबीसीडी सिखा देते हैं या फिर उनके सूत्र में फिट नहीं बैठने पर वह बालश्रम से मुक्त कराए गए बच्चों को यातनाएं देते हैं.

ऑपरेशन मुस्कान की शुरूआत

बाल श्रम से ऑपरेशन मुस्कान के तहत मुक्त कराए गए बच्चे आखिर वर्तमान में कहां हैं और क्या कर रहे हैं. इस बात से भी विभाग पूरी तरह से बेखबर है. इसके साथ ही ऑपरेशन मुस्कान भी पूरी तरह ठंडे बस्ते में चला गया है. झारखंड किशोर बोर्ड के सदस्य विकास दोदराजका ने बताया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार, 6 से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा ग्रहण करने के लिए बनाया गया है. ऐसे बच्चों से बाल श्रम नहीं करवाया जा सकता है. बच्चों के लिए बाल श्रम हमारे समाज के लिए एक अभिशाप है. इसे लेकर बनाये गए कानून में आवश्यक संशोधन की जरूरत पड़ी.

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बाल श्रम कानून में संशोधन

विकास दोदराजका ने बताया कि 2016 में इसमें कई संसोधन भी किये गए और कानून को और भी कड़ा बनाया गया. 2017 में भी बाल श्रम कानून में संशोधन किया गया पर आज यह कानून काफी कड़े रूप से लागू है. अगर कोई छोटे बच्चों से बाल श्रम करवाता है तो उसे 2 साल तक की सजा और 50 हजार का जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है. झारखंड किशोर बोर्ड के सदस्य ने बताया कि हमारे जिले में भी कई मामले बाल श्रम को लेकर दर्ज किए गए हैं, जिसमें चाइल्ड लाइन की सूचना और श्रम विभाग की ओर से कई मामले दर्ज हुए हैं, जिससे समाज में चेतना, जागरूकता और भय भी आया है.

चाइल्डलाइन 120 बच्चों की ही कर सकी है रिकवरी

वहीं, चाईबासा चाइल्ड लाइन के सेंटर कोऑर्डिनेटर जयदू करजी ने बताया कि चाइल्ड लाइन 120 मामले पर काम कर चुकी है और सभी मामले को सुलझा लिया गया है. बाल श्रम के दलदल में पश्चिम सिंहभूम जिले के आंकड़े काफी ज्यादा है. इस जिले में 13 हजार 608 बाल मजदूर पाए गए हैं, जिसमें से 10 हजार 308 लड़के और 3 हजार 300 लड़कियां शामिल है, लेकिन अब तक चाइल्डलाइन ने 120 बच्चों की रिकवरी की है. इसे लेकर जगह-जगह जागरूकता फैलाई जा रही है.

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