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बर्न यूनिट बना स्टोर रूम, आग से झुलसे मरीजों को नहीं मिल रही राहत, अस्पताल प्रबंधन बेखबर - चाईबासा न्यूज

पश्चिम सिंहभूम जिला मुख्यालय परिसर स्थित सदर अस्पताल का बर्न यूनिट अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही से स्टोर रूम बन कर रह गया है. आग से झुलसे मरीजों को विशेष सुविधा देने में असमर्थ प्रबंधन ज्यादा झुलसे मरीजों को दूसरे अस्पताल रेफर कर रहा है.

सदर अस्पताल परिसर स्थित बर्न वार्ड
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Published : Jun 15, 2019, 12:47 PM IST

चाईबासाः दुर्घटना में आग से झुलसे मरीजों को चिकित्सीय भाषा में (क्रिटिकल केस) अति संवेदनशील माना जाता है. ऐसे मरीजों को संक्रमण से बचाए रखने के लिए अस्पतालों में अलग वार्ड (बर्न यूनिट) का प्रावधान है. पश्चिम सिंहभूम जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल परिसर में बर्न यूनिट बनाया गया है. इस बर्न यूनिट में मरीजों का इलाज नहीं किया जाता बल्कि अस्पताल प्रबंधन बर्न यूनिट का इस्तेमाल स्टोर रूम के तौर पर कर रही है.

देखें वीडियो

बता दें कि 42 डिग्री के तापमान के बीच आग से झुलस कर अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को आम मरीजों के साथ ही जनरल वार्ड में रखा जाता है. जिससे झुलसे मरीजों के बीच संक्रमण आदि फैलने का खतरा बढ़ जाता है.

बर्न वार्ड में होते हैं अस्पताल के दूसरे काम

सदर अस्पताल के प्रशासनिक भवन का जीर्णोद्धार होने के कारण पिछले 1 महीन से बर्न यूनिट के सिविल सर्जन डॉ मंजू दुबे का कार्यालय संचालित है. अस्पताल के जरूरी दस्तावेज आदि को बर्न यूनिट में ही स्टोर कर रखा गया है. हालांकि जीर्णोद्धार कार्य संपन्न होने के पश्चात सिविल सर्जन का कार्यालय अपने कक्ष में तब्दील हो गया. बावजूद इसके यूनिट को चालू नहीं कराया गया. बल्कि बर्न यूनिट को अस्पताल प्रबंधन ने स्टोर रूम में बदल दिया है. फिलहाल बर्न यूनिट में लगे 10 एसी की ठंडी हवा अस्पताल में लाए गए नए बेड खा रहे हैं. इससे पहले भी बने यूनिट के भवन में अस्पताल में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता आया है.

ये भी पढ़ें-रन फॉर योगा में दौड़ा गढ़वा, 21 जून को होगा योग का बड़ा आयोजन

चाईबासा सदर अस्पताल सिविल सर्जन मंजू दुबे कि माने तो अस्पताल में बर्न यूनिट बनकर तैयार तो हो गया है. लेकिन आग से झुलसे मरीजों के इलाज के लिए विशेष नर्स व डॉक्टर, प्लास्टिक सर्जन और दूसरे संबंधित उपकरणों की कमी होने के कारण बर्न वार्ड की शुरुआत नहीं हो पाई है. उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में अगर कोई आग से झुलसे हुए मरीज अस्पताल पहुंचते हैं तो उन्हें सामान्य मरीजों के वार्ड में भर्ती कराया जाता है.

संक्रमण से बचाने के लिए मच्छरदानी आदि का उपयोग कर रखा जाता है. इसके साथ ही अस्पताल के डॉक्टर्स उनका इलाज करते हैं. अगर मरीज अधिक जला हुआ होता है तो उसे दूसरे अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है.

चाईबासाः दुर्घटना में आग से झुलसे मरीजों को चिकित्सीय भाषा में (क्रिटिकल केस) अति संवेदनशील माना जाता है. ऐसे मरीजों को संक्रमण से बचाए रखने के लिए अस्पतालों में अलग वार्ड (बर्न यूनिट) का प्रावधान है. पश्चिम सिंहभूम जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल परिसर में बर्न यूनिट बनाया गया है. इस बर्न यूनिट में मरीजों का इलाज नहीं किया जाता बल्कि अस्पताल प्रबंधन बर्न यूनिट का इस्तेमाल स्टोर रूम के तौर पर कर रही है.

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बता दें कि 42 डिग्री के तापमान के बीच आग से झुलस कर अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को आम मरीजों के साथ ही जनरल वार्ड में रखा जाता है. जिससे झुलसे मरीजों के बीच संक्रमण आदि फैलने का खतरा बढ़ जाता है.

बर्न वार्ड में होते हैं अस्पताल के दूसरे काम

सदर अस्पताल के प्रशासनिक भवन का जीर्णोद्धार होने के कारण पिछले 1 महीन से बर्न यूनिट के सिविल सर्जन डॉ मंजू दुबे का कार्यालय संचालित है. अस्पताल के जरूरी दस्तावेज आदि को बर्न यूनिट में ही स्टोर कर रखा गया है. हालांकि जीर्णोद्धार कार्य संपन्न होने के पश्चात सिविल सर्जन का कार्यालय अपने कक्ष में तब्दील हो गया. बावजूद इसके यूनिट को चालू नहीं कराया गया. बल्कि बर्न यूनिट को अस्पताल प्रबंधन ने स्टोर रूम में बदल दिया है. फिलहाल बर्न यूनिट में लगे 10 एसी की ठंडी हवा अस्पताल में लाए गए नए बेड खा रहे हैं. इससे पहले भी बने यूनिट के भवन में अस्पताल में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता आया है.

ये भी पढ़ें-रन फॉर योगा में दौड़ा गढ़वा, 21 जून को होगा योग का बड़ा आयोजन

चाईबासा सदर अस्पताल सिविल सर्जन मंजू दुबे कि माने तो अस्पताल में बर्न यूनिट बनकर तैयार तो हो गया है. लेकिन आग से झुलसे मरीजों के इलाज के लिए विशेष नर्स व डॉक्टर, प्लास्टिक सर्जन और दूसरे संबंधित उपकरणों की कमी होने के कारण बर्न वार्ड की शुरुआत नहीं हो पाई है. उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में अगर कोई आग से झुलसे हुए मरीज अस्पताल पहुंचते हैं तो उन्हें सामान्य मरीजों के वार्ड में भर्ती कराया जाता है.

संक्रमण से बचाने के लिए मच्छरदानी आदि का उपयोग कर रखा जाता है. इसके साथ ही अस्पताल के डॉक्टर्स उनका इलाज करते हैं. अगर मरीज अधिक जला हुआ होता है तो उसे दूसरे अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है.

Intro:चाईबासा। दुर्घटना में आग से झुलसे मरीजों को चिकित्सीय भाषा में (क्रिटिकल केस) अति संवेदनशील माना जाता है। अति संवेदनशील होने के कारण ऐसे मरीजों को संक्रमण आदि से बचाए रखने के लिए अस्पतालों में अलग वार्ड (बर्न यूनिट) का प्रावधान है। ऐसे में पश्चिम सिंहभूम जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल परिसर में आग की चपेट में आने वाले मरीजों के लिए बर्न यूनिट तो बनाया गया है। लेकिन इस बर्न यूनिट में आग से जलने वाले मरीज का इलाज नहीं किया जाता है। बल्कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा बर्न यूनिट का इस्तेमाल स्टोर रूम के तौर पर किया जा रहा है।


Body:वहीं 42 डिग्री के तापमान के बीच आग से झुलस कर अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को आम मरीजों के साथ ही जनरल वार्ड में रखा जाता है जिससे झुलसे मरीजों के बीच संक्रमण आदि फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

बर्न वार्ड में होते हैं अस्पताल के अन्य कार्य -
सदर अस्पताल के प्रशासनिक भवन का जीर्णोद्धार होने के कारण विगत 1 माह पूर्व बर्न यूनिट के सिविल सर्जन डॉ मंजू दुबे का कार्यालय संचालित है साथ ही अस्पताल के जरूरी दस्तावेज आदि को बर्न यूनिट में ही स्टोर कर रखा गया था। हालांकि जीर्णोद्धार कार्य संपन्न होने के पश्चात सिविल सर्जन का कार्यालय अपने कक्ष में तब्दील हो गया। लेकिन बावजूद इसके बढ़ने यूनिट को चालू नहीं कराया गया। बल्कि बर्न यूनिट को अस्पताल प्रबंधन द्वारा स्टोर रूम की शक्ल दे दिया गया है। वर्तमान में बर्न यूनिट में लगे 10 एसी की ठंडी हवा अस्पताल में लाए गए नए बेड खा रहे हैं। इससे पहले भी बने यूनिट के भवन में अस्पताल में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता आया है।

चाईबासा सदर अस्पताल सिविल सर्जन मंजू दुबे की माने तो अस्पताल में बर्न यूनिट बनकर तैयार तो हो गया है। परंतु आग से झुलसे मरीजों के इलाज के लिए विशेष नर्स व डॉक्टर, प्लास्टिक सर्जन एवं अन्य संबंधित उपकरणों की कमी होने के कारण बर्न वार्ड की शुरुआत नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में अगर कोई आग से झुलसे हुए मरीज अस्पताल पहुंचते हैं तो उन्हें सामान्य मरीजों के वार्ड में भर्ती कराया जाता है एवं संक्रमण से बचाने के लिए मछरदानी आदि का उपयोग कर रखा जाता है। इसके साथ ही अस्पताल के डॉक्टर्स उनकी इलाज करते हैं। अगर मरीज अधिक जला हुआ होता है तो उसे अन्य अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है।


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