सिमडेगा: विश्व आदिवासी दिवस जो आदिवासी संस्कृति सभ्यता और उनकी जीवनशैली का परिचायक है. जिसकी घोषणा 9 अगस्त 1982 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने बैठककर विश्वभर में निवास कर रहे आदिवासियों के लिए 9 अगस्त का दिन निर्धारित किया था. जिससे आदिवासी संस्कृति और उनकी सभ्यता को एक अलग पहचान मिल सके. तब से लेकर आज तक 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है. जिसमें सदियों से दुनियाभर में निवास कर रहे आदिवासी अपनी परंपरा, भाषा, नृत्य आदि का प्रदर्शन सामूहिक रूप से उपस्थित होकर करते हैं. एक दूसरे की संस्कृति को करीब से जानते हैं. यूं कहा जाए तो विश्व आदिवासी दिवस आदिवासियों की सामाजिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इस दौरान विश्व भर के आदिवासी एकजुट होकर अपने देश और अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व से अपनी परंपरा, संस्कृति और उन्नति में सहयोग की मांग करते हैं.
घरों में सादगीपूर्वक मनायें विश्व आदिवासी दिवस
इसे लेकर केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष हरीशचंद्र भगत की अध्यक्षता में आदिवासियों की ऑनलाइन बैठक आयोजित की गई. जिसमें सर्वसम्मति से सामूहिक कार्यक्रम इस बार स्थगित करने का निर्णय लिया गया. इस मामले पर केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष हरीशचंद्र भगत ने बताया कि कोरोना महामारी के मद्देनजर इस साल शहीद तेलेंगा खड़िया के स्मारक के पास वृक्षारोपण कर विश्व आदिवासी दिवस को मनाया जाएगा. इस दौरान समाज के कुछ ही लोग मौजूद रहेंगे. इसके साथ ही उन्होंने जिलेभर के आदिवासियों को शुभकामना देते हुए कहा कि इस बार अपने-अपने घरों में सादगीपूर्वक विश्व आदिवासी दिवस मनायें. सामूहिक कार्यक्रम से बचें और अपने घरों में सुरक्षित रहें.
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आदिवासियों की अहम भूमिका
भारत देश की आजादी की बात हो या झारखंड आंदोलन की चर्चा आदिवासियों की भूमिका हमेशा से आग्रणी रही है. आदिवासियों के विकास को लेकर राज्य सरकार ने कई योजनाएं भी चला रहे है ताकि इनका आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक विकास हो सके.
झारखंड में आदिवासियों की 32 जातियां
बता दें कि झारखंड में आदिवासियों की 32 जातियां निवास करती हैं. जिनमें खड़िया, मुंडा, उरांव, बड़ाईक सहित अन्य जातियां शामिल हैं. जिनकी अपनी-अपनी परंपरा, संस्कृति, भाषा और रीति-रिवाज है. जो आदिवासी दिवस के दिन सामूहिक रूप से मौजूद होकर अपनी रीति-रिवाज और नृत्य आदि कार्यक्रम के माध्यम से पेश करते हैं. जिसमें एक अपनापन झलकता है.