रांची: झारखंड राज्य का नाम इस आधार पर रखा गया था कि राज्य में जंगलों और पेड़-पौधों का सम्मान हमेशा बना रहे. 2021 के सर्वे के अनुसार झारखंड में 30 फीसदी क्षेत्र ऐसे हैं जो वन क्षेत्र में आते हैं. लेकिन झारखंड का दुर्भाग्य है कि जिस क्षेत्र में घने जंगल हैं, उस क्षेत्र में गरीबी भी भरपूर है.
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आदिवासी समुदाय और परंपरागत वनवासियों की संस्कृति, परंपरा और आजीविका का साधन जंगल ही है. सदियों से जंगल से इनका अटूट संबंध रहा है, लेकिन वनोत्पाद को इकट्ठा कर बेचने पर कभी भी इन लोगों को इसका सही दाम नहीं मिल पाया है. इसी को देखते हुए वनोत्पाद को बाजार में उपलब्ध कराने के लिए झारखंड सरकार कार्य योजना बनाने को लेकर कार्य कर रही है.
झारखंड में पायलट प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू: झारखंड में प्रचुर मात्रा में साल, लाह, इमली, महुआ, चिरौंजी समेत अन्य वनोत्पाद को व्यवस्थित बाजार देने की कार्य योजना बनाने के लिए राज्य सरकार और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (Indian School of Business) की भारती इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी (Bharti Institute of Public Policy) के बीच हुए एमओयू का परिणाम सामने आने लगा है. वन विभाग, वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वन पदार्थों के महत्व के बारे में समझा रही हैं, साथ ही वन पदार्थों को बाजार तक कैसे पहुंचाना है, इसके लिए सोमवार को राज्य के आकांक्षी जिला सिमडेगा से वनोत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने के लिए झारखंड में पायलट प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू किया.
सिमडेगा में सबसे अधिक वनोत्पाद: सिमडेगा उपायुक्त सुशांत गौरव (Simdega DC Sushant Gaurav) ने पायलट प्रोजेक्ट के सफल क्रियान्वयन की दिशा में हैदराबाद के इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की. सिमडेगा में पायलट प्रोजेक्ट का अवलोकन करने के बाद अन्य वनोपज प्रधान जिलों में भी इसकी शुरुआत की जायेगी. झारखंड के सिमडेगा में अत्यधिक मात्रा में वनोत्पाद उपलब्ध है. यहां के जनजातीय समुदाय और अन्य सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए या अपनी जीविका चलाने के लिए पोषण आहार के साथ वनों से प्राप्त होने वाले विभिन्न उत्पादनों से अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त करते हैं.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने की कवायद: जनजातीय समुदाय के लिए अतिरिक्त आमदनी का वनोत्पाद प्रमुख स्रोत है. विभिन्न पौधों, पेड़ों के पत्ते, फूल-फल एवं बीज, मशरूम, कंदमूल आदि से वे अपनी जीविका चलाते हैं साथ ही वनों से प्राप्त कुछ प्रकार के घास, तेल प्राप्त होने वाले बीज, गोंद, लाह आदि से वे आमदनी प्राप्त करते हैं. यह भी देखा गया है कि जंगल के अंदर या आसपास बसे लोगों को पचीस प्रतिशत से ऊपर आय वनों से प्राप्त वनोत्पाद को बेचकर प्राप्त होता है. सखुआ के पत्ते से ही कटोरी एवं दतवन, बीजों से तेल प्राप्त होने वाले विभिन्न पेड़ो जैसे महुआ, करंज, कुसुम, नीम, सखुआ आदि के बीजों को अधिक मात्रा में जमा कर ग्रामीण इसे बाजार में बेचकर आमदनी प्राप्त करते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में अर्थव्यवस्था सुधार की दिशा में उपलब्ध संसाधनों को सही दिशा देते हुए झारखंड में पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई है.