सिमडेगा: कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले सुप्रसिद्ध श्रीरामरेखाधाम मेला में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं. विदित हो कि शनिवार को लोहरदगा सांसद सुदर्शन भगत ने मेला का विधिवत उद्घाटन किया था. यह मेला 28 नवंबर तक चलेगा. उद्घाटन के दौरान सांसद सुदर्शन भगत ने धाम स्थित मंदिर के अंदर जाकर भगवान श्रीराम, माता जानकी के विग्रहों के समक्ष बैठकर विधिवत पूजन किया था और सिमडेगा सहित पूरे क्षेत्र के लिए अमन-शांति की प्रार्थना की थी.
श्रीरामरेखा मेला में उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़ः बता दें की श्रीरामरेखा मेला में हर साल तीन दिनों तक लाखों की संख्या में ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस वर्ष भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी है. यह मेला पूरे प्रांत में खास महत्व रखता है.
सांसद सुदर्शन भगत ने किया था मेला का उद्घाटनः सांसद सुदर्शन भगत ने उद्घाटन के दौरान मंदिर के सभी विग्रहों सहित रामरेखा बाबा और देवराहा बाबा के विग्रह के समक्ष भी पूजा की थी. पूजा-अर्चना के बाद रामरेखाधाम के महंत अखंड दास महाराज के पास जाकर धाम के संदर्भ में सांसद सुदर्शन भगत ने बातचीत की थी. इस दौरान धाम के महंत ने सांसद सहित वहां मौजूद सभी आगंतुकों को आशीर्वाद स्वरूप अंगवस्त्र दिया था.सांसद सुदर्शन भगत ने कहा कि श्रीरामरेखाधाम से लोगों की अपार आस्था जुड़ी है. इसका कारण है कि सदियों से प्रतीक्षारत अयोध्या के राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होने वाला है. उन्होंने कहा कि राम मंदिर उद्घाटन का उत्साह आज से ही रामरेखा धाम में दिख रहा है.
सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्वः वहीं कार्तिक पूर्णिमा मेला के संदर्भ में धाम के संत अखंड दास जी महाराज ने कहा कि कार्तिक मास सनातन में सबसे पवित्र मास माना जाता है. उन्होंने कहा कि इस पवित्र मास में श्रीराम के चरणों से पवित्र इस धरती में स्नान कर विग्रहों के दर्शन करने से जीवन धन्य हो जाता है. महंत अखंड दास जी ने कहा कि राम के नाम में सब समाहित है. उन्होंने राम नाम के संदर्भ में कहा कि राम शब्द संस्कृत के दो धातुओं, रम् और घम से बना है। रम् का अर्थ है रमना या निहित होना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान. इस प्रकार राम का अर्थ सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म. उन्होंने कहा कि शास्त्रों में भी लिखा है कि रमन्ते योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते, अर्थात योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं. उन्होंने कहा कि राम शब्द के संदर्भ में स्वयं गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि करऊं कहा लगि नाम बड़ाई, राम न सकहि नाम गुण गाई, अर्थात स्वयं राम भी 'राम' शब्द की व्याख्या नहीं कर सकते, ऐसा नाम राम है.
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