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प्रकृति पुजारियों ने खास अंदाज में किया बसंत ऋतु का स्वागत, हाथों में हाथ डाल झूमती दिखीं महिलाएं

आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति के पुजारी होते हैं, इनका हर पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़ा होता है. वे अपने पर्व के आयोजन के साथ प्रकृति का भी संरक्षण करते हैं. ऐसा ही एक पर्व 'बाहा बोंगा' है. जिसमें आदिवासी समुदाय की गहरी आस्था जुड़ी होती है.

बाहा बोंगा पर्व की धूम
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Published : Mar 20, 2019, 11:46 AM IST

सरायकेला: आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति के पुजारी होते हैं, इनका हर पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़ा होता है. वे अपने पर्व के आयोजन के साथ प्रकृति का भी संरक्षण करते हैं. ऐसा ही एक पर्व 'बाहा बोंगा' है. जिसमें आदिवासी समुदाय की गहरी आस्था जुड़ी होती है.

बाहा बोंगा पर्व की धूम

जिले के सुदूर भर्ती गम्हरिया प्रखंड में संथाल आदिवासी समाज द्वारा हर्षोल्लास के साथ बहा बोंगा का आयोजन कर लोगों ने पर्यावरण की रक्षा का संकल्प भी लिया गया. होली से पहले बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए आदिवासी समुदाय द्वारा प्रकृति का पर्व 'बाहा बोंगा' हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दौरान आदिवासी समुदाय के लोग शाल के वृक्ष की पूजा करते हैं और प्रकृति देव से साल भर आरोग्य और सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

मान्यता है कि किसान इस दिन से अपने सारे कृषि संबंधित कार्य खत्म कर नए साल की तैयारी में जुट जाते हैं. इस मौके पर आदिवासी समाज के युवक युवतियों द्वारा पारंपारिक नृत्य कर प्रकृति देव की आराधना कर उनसे यह कामना की जाती है. कि आगे आने वाले साल में अच्छी फसल पैदावार के साथ अच्छी बारिश भी हो. वहीं इस बाहा पर्व के दौरान कई स्थानों पर पानी की होली भी खेली जाती है.

सरायकेला: आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति के पुजारी होते हैं, इनका हर पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़ा होता है. वे अपने पर्व के आयोजन के साथ प्रकृति का भी संरक्षण करते हैं. ऐसा ही एक पर्व 'बाहा बोंगा' है. जिसमें आदिवासी समुदाय की गहरी आस्था जुड़ी होती है.

बाहा बोंगा पर्व की धूम

जिले के सुदूर भर्ती गम्हरिया प्रखंड में संथाल आदिवासी समाज द्वारा हर्षोल्लास के साथ बहा बोंगा का आयोजन कर लोगों ने पर्यावरण की रक्षा का संकल्प भी लिया गया. होली से पहले बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए आदिवासी समुदाय द्वारा प्रकृति का पर्व 'बाहा बोंगा' हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दौरान आदिवासी समुदाय के लोग शाल के वृक्ष की पूजा करते हैं और प्रकृति देव से साल भर आरोग्य और सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

मान्यता है कि किसान इस दिन से अपने सारे कृषि संबंधित कार्य खत्म कर नए साल की तैयारी में जुट जाते हैं. इस मौके पर आदिवासी समाज के युवक युवतियों द्वारा पारंपारिक नृत्य कर प्रकृति देव की आराधना कर उनसे यह कामना की जाती है. कि आगे आने वाले साल में अच्छी फसल पैदावार के साथ अच्छी बारिश भी हो. वहीं इस बाहा पर्व के दौरान कई स्थानों पर पानी की होली भी खेली जाती है.

Intro:प्रकृति के पुजारियों ने बसंत ऋतु का किया स्वागत ,बाहा पर्व मना पर्यावरण संरक्षण का दिया संदेश.

आदिवासी समुदाय के लोग प्रकृति के पुजारी होते हैं , इनका हर एक पर्व और त्योहार प्रकृति से जुड़ा होता है, वहीं अपने पर्व के आयोजन के साथ ये प्रकृति का संरक्षण भी करते हैं. इसी कड़ी में आदिवासी संथाल समाज का बड़ा पर्व बाहा बोंगा है ,जिसमें आदिवासी समुदाय की गहरी आस्था जुड़ीं होती है।


Body:होली से पहले बसंत ऋतु का स्वागत करते हुए आदिवासी समुदाय द्वारा प्रकृति का पर्व बाहा बोंगा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसमें समुदाय के लोग शाल के वृक्ष की पूजा करते हैं और प्रकृति देव से साल भर आरोग्य और सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

वही मान्यता है कि किसान इस दिन से अपने सारे कृषि संबंधित कार्य निष्पादित कर नए साल की तैयारी में जुट जाते हैं, इस मौके पर आदिवासी समाज के युवक युवतियों द्वारा पारंपरिक नृत्य कर प्रकृति देव की आराधना कर उनसे यह कामना की जाती है कि आगे आने वाले साल में अच्छी फसल पैदावार के साथ अच्छी बारिश भी हो, वहीं इस बाहा पर्व के दौरान कई स्थानों पर पानी कि होली भी खेली जाती है वही इस पर्व से जुड़े कई प्रचलित गाथाएं भी हैं।

इसी कड़ी में सरायकेला जिले के सुदूर भर्ती गम्हरिया प्रखंड में संथाल आदिवासी समाज द्वारा हर्षोल्लास के साथ बहा बोंगा का आयोजन कर लोगो ने पर्यावरण की रक्षा का संकल्प भी लिया


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