सरायकेला: झारखंड का सरायकेला-खरसावां जिला विश्व में छऊ कला नगरी के रूप में विख्यात है. यह जिला छऊ कला में हर दिन नए मुकाम हासिल करता जा रहा है. इसी भूमि से उत्पन्न यह कला देश ही नहीं पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बना रही है. सरायकेला छऊ 1200 वर्ष पौराणिक कला है, अब तक झारखंड के सरायकेला के 6 गुरुओं को पद्मश्री मिल चुका है. इस वर्ष 2020 के लिए सरायकेला के छऊ नृत्य गुरू शशधर आचार्य को पद्मश्री से नवाजे जाने की घोषणा की गई. इससे जिले के सभी कलाकारों में खुशी की लहर देखने को मिल रही है.
सरायकेला के राजा ने दी नई पहचान
दरअसल, पिछले पांच पीढ़ियों से सरायकेला छऊ में समर्पित परिवार के सदस्य को पहली बार पदमश्री मिलने जा रहा है. इससे परिवार में खुशी की लहर है, सरायकेला छऊ पहले राज परिवार का पुश्तैनी नृत्य हुआ करता था.1960 में सरायकेला के राजा उदितनारायण सिंहदेव ने चैत्र पर्व के जरिये इस कला को एक नई उड़ान दी. यह कला भारत ही नहीं बल्की विश्व में भारतीय संस्कृति को दर्शा रही है. पिछले कई वर्षो से सरायकेला छऊ को भारत सरकार की तरफ से 6 बार पद्मश्री से नवाजा गया है. इस वर्ष 7वां पद्मश्री शशधर आचार्य को दिया जा रहा है. इस घोषणा के साथ ही सरायकेला में छऊ नृत्य प्रेमियों के बीच खुशी का माहौल है. सरायकेला छऊ कलाकार अपनी कला का नमूना देश ही नहीं विदेशों में भी प्रदर्शित कर चुके हैं.
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पांच पीढ़ियों से छऊ कला को बढ़ा रहे आगे
शशधर आचार्य 5 वर्ष की आयु से ही पिता गुरू लिंगराज आचार्य से इस कला मे प्रशिक्षण लेकर देश-विदेश में प्रदर्शन कर चुके हैं. आचार्य छवि चित्र संस्था के नाम पर सरायकेला छऊ को दिल्ली में नई पीढ़ियों को इस कला का ज्ञान देते हैं. वो दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में शिक्षक के रूप में अपना योगदान देते हैं.
गुरू ने जताया आभार
वहीं, राजकीय नृत्य कला केंद्र निदेशक गुरू तपन पटनायक ने एक लंबे अरसे के बाद भारत सरकार को पद्मश्री से पुरस्कृत किए जाने पर अभार प्रकट किया है. यह सम्मान इस कला के उत्थान में इसके पूर्व पद्मश्री गुरूओं के समर्पण सरायकेला की संस्कृति को गर्व से दर्शा रहा है.