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पद्मश्री अवार्ड से नवाजे जाएंगे सरायकेला के शशधर आचार्य, सरायकेला के राजा ने दिलाई थी इसे नई पहचान - छऊ नृत्य के लिए मिलेगा अवार्ड

सरायकेला छऊ 1200 वर्ष पौराणिक कला है, अब तक झारखंड के सरायकेला के 6 गुरुओं को पद्मश्री सम्मान मिल चुका है. इस वर्ष 2020 के लिए सरायकेला के छऊ नृत्य गुरू शशधर आचार्य को पद्मश्री से नवाजे जाने की घोषणा की गई. इससे जिले के सभी कलाकारों में खुशी की लहर देखने को मिल रही है.

Shashadhar acharya, शशधर आचार्य
शशधर आचार्य
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Published : Jan 27, 2020, 12:35 PM IST

सरायकेला: झारखंड का सरायकेला-खरसावां जिला विश्व में छऊ कला नगरी के रूप में विख्यात है. यह जिला छऊ कला में हर दिन नए मुकाम हासिल करता जा रहा है. इसी भूमि से उत्पन्न यह कला देश ही नहीं पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बना रही है. सरायकेला छऊ 1200 वर्ष पौराणिक कला है, अब तक झारखंड के सरायकेला के 6 गुरुओं को पद्मश्री मिल चुका है. इस वर्ष 2020 के लिए सरायकेला के छऊ नृत्य गुरू शशधर आचार्य को पद्मश्री से नवाजे जाने की घोषणा की गई. इससे जिले के सभी कलाकारों में खुशी की लहर देखने को मिल रही है.

देखें पूरी खबर

सरायकेला के राजा ने दी नई पहचान
दरअसल, पिछले पांच पीढ़ियों से सरायकेला छऊ में समर्पित परिवार के सदस्य को पहली बार पदमश्री मिलने जा रहा है. इससे परिवार में खुशी की लहर है, सरायकेला छऊ पहले राज परिवार का पुश्तैनी नृत्य हुआ करता था.1960 में सरायकेला के राजा उदितनारायण सिंहदेव ने चैत्र पर्व के जरिये इस कला को एक नई उड़ान दी. यह कला भारत ही नहीं बल्की विश्व में भारतीय संस्कृति को दर्शा रही है. पिछले कई वर्षो से सरायकेला छऊ को भारत सरकार की तरफ से 6 बार पद्मश्री से नवाजा गया है. इस वर्ष 7वां पद्मश्री शशधर आचार्य को दिया जा रहा है. इस घोषणा के साथ ही सरायकेला में छऊ नृत्य प्रेमियों के बीच खुशी का माहौल है. सरायकेला छऊ कलाकार अपनी कला का नमूना देश ही नहीं विदेशों में भी प्रदर्शित कर चुके हैं.

ये भी पढ़ें- बोकारो: अपराधियों के हौसले बुलंद, होटल में की 5 राउंड फायरिंग

पांच पीढ़ियों से छऊ कला को बढ़ा रहे आगे
शशधर आचार्य 5 वर्ष की आयु से ही पिता गुरू लिंगराज आचार्य से इस कला मे प्रशिक्षण लेकर देश-विदेश में प्रदर्शन कर चुके हैं. आचार्य छवि चित्र संस्था के नाम पर सरायकेला छऊ को दिल्ली में नई पीढ़ियों को इस कला का ज्ञान देते हैं. वो दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में शिक्षक के रूप में अपना योगदान देते हैं.

गुरू ने जताया आभार
वहीं, राजकीय नृत्य कला केंद्र निदेशक गुरू तपन पटनायक ने एक लंबे अरसे के बाद भारत सरकार को पद्मश्री से पुरस्कृत किए जाने पर अभार प्रकट किया है. यह सम्मान इस कला के उत्थान में इसके पूर्व पद्मश्री गुरूओं के समर्पण सरायकेला की संस्कृति को गर्व से दर्शा रहा है.

सरायकेला: झारखंड का सरायकेला-खरसावां जिला विश्व में छऊ कला नगरी के रूप में विख्यात है. यह जिला छऊ कला में हर दिन नए मुकाम हासिल करता जा रहा है. इसी भूमि से उत्पन्न यह कला देश ही नहीं पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बना रही है. सरायकेला छऊ 1200 वर्ष पौराणिक कला है, अब तक झारखंड के सरायकेला के 6 गुरुओं को पद्मश्री मिल चुका है. इस वर्ष 2020 के लिए सरायकेला के छऊ नृत्य गुरू शशधर आचार्य को पद्मश्री से नवाजे जाने की घोषणा की गई. इससे जिले के सभी कलाकारों में खुशी की लहर देखने को मिल रही है.

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सरायकेला के राजा ने दी नई पहचान
दरअसल, पिछले पांच पीढ़ियों से सरायकेला छऊ में समर्पित परिवार के सदस्य को पहली बार पदमश्री मिलने जा रहा है. इससे परिवार में खुशी की लहर है, सरायकेला छऊ पहले राज परिवार का पुश्तैनी नृत्य हुआ करता था.1960 में सरायकेला के राजा उदितनारायण सिंहदेव ने चैत्र पर्व के जरिये इस कला को एक नई उड़ान दी. यह कला भारत ही नहीं बल्की विश्व में भारतीय संस्कृति को दर्शा रही है. पिछले कई वर्षो से सरायकेला छऊ को भारत सरकार की तरफ से 6 बार पद्मश्री से नवाजा गया है. इस वर्ष 7वां पद्मश्री शशधर आचार्य को दिया जा रहा है. इस घोषणा के साथ ही सरायकेला में छऊ नृत्य प्रेमियों के बीच खुशी का माहौल है. सरायकेला छऊ कलाकार अपनी कला का नमूना देश ही नहीं विदेशों में भी प्रदर्शित कर चुके हैं.

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पांच पीढ़ियों से छऊ कला को बढ़ा रहे आगे
शशधर आचार्य 5 वर्ष की आयु से ही पिता गुरू लिंगराज आचार्य से इस कला मे प्रशिक्षण लेकर देश-विदेश में प्रदर्शन कर चुके हैं. आचार्य छवि चित्र संस्था के नाम पर सरायकेला छऊ को दिल्ली में नई पीढ़ियों को इस कला का ज्ञान देते हैं. वो दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में शिक्षक के रूप में अपना योगदान देते हैं.

गुरू ने जताया आभार
वहीं, राजकीय नृत्य कला केंद्र निदेशक गुरू तपन पटनायक ने एक लंबे अरसे के बाद भारत सरकार को पद्मश्री से पुरस्कृत किए जाने पर अभार प्रकट किया है. यह सम्मान इस कला के उत्थान में इसके पूर्व पद्मश्री गुरूओं के समर्पण सरायकेला की संस्कृति को गर्व से दर्शा रहा है.

Intro:सरायकेला खरसावाँ जिला विश्व में छउ कला नगरी के रूप में विख्यात है । यह जिला छऊ कला में नित नए मुकाम को हासिल कर रहा है, इसी भूमि से उत्पन यह कला देश ही नहीं पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बना रखा है । सरायकेला छऊ 1200 वर्ष पौराणिक कला है । अब तक झारखण्ड के सरायकेला कला के क्षेत्र में छह 6 गुरुओं को पद्मश्री मिल चुका है । इस वर्ष 2020 के लिए सरायकेला के छऊ नृत्य गुरू ससधर आचार्या को पद्मश्री से नवाजे जाने की घोषणा की गई । जिस जिले के सभी कलाकारों में खुशी की लहर देखने को मिल रही है । Body:पीछले पांच पीढ़ी से सरायकेला छऊ में समर्पित परिवार में प्रथम पदमश्री मिलने से परिवार में खुशी का लहर है । सरायकेला छऊ पहले राज परिवार का पुस्तेनी नृत्य हुआ करता था 1960 में सरायकेला राज उदितनारायण सिंहदेव के द्वारा सरायकेला में चै़त्रपर्व के जरिय इस कला को एक नया उड़ान दी । जो आज यह कला को भारत ही नही बल्की विश्व में भारतीय संस्कृति को दर्शा रही है । पीछले कई वर्षो से सरायकेला छऊ को भारत सरकार द्बारा 6 बार पद्यमश्री से नवाजा गया । इस वर्ष 7 वाॅ पद्याश्री के रूप में ससधर आचार्या को छौउ कला के क्षेत्र में पुरस्कृत किया जायेगा । इस घोषणा के साथ ही सरायकेला में के छऊ नृत्य प्रेमियों के बीच खुशी का माहौल है सरायकेला छऊ कलाकार अपनी कला का नमूना देश ही नहीं विदेशों में भी प्रदर्शित कर चुके हैं.

पांच पीढीयों से छऊ कला को बढ़ा रहे आगे

छऊ कलाकार एक ऐसा ही बड़ा नाम है 5 पीढ़ियों से इस कला को आगे बढ़ाते रहे है। 5 वर्ष की आयु से ही पिता गुरू लिंगराज आचार्य से इस कला में प्रशि़क्षण लेकर आज देश ही नहीं कई विदेशों में भी अपना प्रदर्शन किया , आज आचार्य छवि चित्र संस्था के नाम पर यह सरायकेला छऊ को दिल्ली में नई पीढ़ियों को इस कलाकार ज्ञान देते हैं । इन्हें यह दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तथा पुणे के फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया संस्थान में शिक्षक के रूप में अपना योगदान देते हैं.

Conclusion:वही राजकीय नृत्य कला केंद्र निदेशक गुरू तपन पटनायक ने एक लम्बे अरसे के वाद भारत सरकार की पद्यश्री से पुरस्कृत किये जाने पर अभार प्रगट किया है . आज यह सम्मान इस कला के उत्थान में इसके पर्व के पद्यम श्री गुरूओ के समर्पण सरायकेला के संस्कृति को गर्व से दर्शा रहा है ।

बाइट - पद्मश्री ससधर आचार्या,


बाइट - तनप पटनायक , गुरु , पद्मश्री ससधर आचार्या,

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