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40 सालों से बंद एसबेस्टोस की माइंस ने बिगाड़ा पर्यावरण संतुलन, प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने लिया संज्ञान

सरायकेला के सीमावर्ती क्षेत्र चाईबासा स्थित रो-रो हिल के पास 40 साल पहले बंद हुए एसबेस्टोस खदान का असर अबतक देखने को मिल रहा है. डस्ट के पहाड़ वाले इस खदान के दुष्प्रभाव से आसपास के इलाके में लोग बीमारियों के चपेट में आ रहे हैं. इसे लेकर प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने अब जाकर संज्ञान लिया है.

Pollution Control Council has taken cognizance of closed mines in Chaibasa
प्रर्यावरण पर पड़ रहा असर
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Published : Jan 14, 2020, 10:15 AM IST

सरायकेला: जिले के सीमावर्ती क्षेत्र से सटे चाईबासा के रो-रो हिल के पास 40 साल पहले एसबेस्टोस की खदान चलने का खामियाजा पर्यावरण और प्रकृति अबतक भुगतना पड़ रहा है. इस क्षेत्र के वनों की स्थिती बद से बदतर हो रही है, जबकि आसपास के बस्तियों और टोले में लोग बीमारी से संक्रमित हो रहे हैं.

देखें पूरी खबर

पर्यावरण का संकट हमारे लिए एक चुनौती के रूप में उभर रहा है. संरक्षण के लिए अब तक बने सारे कानून और नियम सिर्फ किताबी साबित हो रहे हैं. चाईबासा मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर रोरो हिलटॉप के आसपास के वनों की स्थिति दिनों दिन खराब हो रही है, जबकि आसपास के बस्तियों और टोलों के लोग अब बीमारी से भी संक्रमित हो रहे हैं. स्थानीय क्षेत्र की स्थिति बिगड़ता देख एक स्वयंसेवी संगठन ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सूचित किया है. जिसके बाद एनजीटी के संज्ञान में मामला आने के बाद अब प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने भी कार्रवाई शुरू कर दी है.

खेती योग्य जमीन हो रही है बंजर

वहीं, स्थानीय जिला प्रशासन भी अब हरकत में आ गया है. मामले के संबंध में जानकारी देते हुए प्रदूषण नियंत्रण परिषद के क्षेत्रीय निदेशक सुरेश पासवान ने बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर कोल्हान आयुक्त ने इस समस्या को लेकर बैठक बुलाई थी. जिसमें वन विभाग, सिविल सर्जन, जिला कृषि पदाधिकारी समेत अन्य सरकारी कर्मियों ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर वहां कि स्थिति को जाना. इस दौरान अधिकारियों ने देखा कि स्थानीय लोगों में एक विशेष तरह की बीमारी फैल रही है. साथ ही खेतों में धूल-कण के कारण जमीन बंजर हो रहे हैं.

40 साल पहले का दुष्प्रभाव का असर अबतक

इस घटना को लेकर स्थानीय लोगों ने बताया कि 40 वर्ष पूर्व हैदराबाद इंडस्ट्रीज लिमिटेड नाम की कंपनी को खदान का लीज पर मिला था. जो आसपास के लोगों से ही खदान में काम करवाता था. यहां एसबेस्टोस बनने वाले पत्थरों की पिसाई और पाउडर को तैयार किया जाता था. हालांकि 40 वर्ष पहले ही खदान बंद हो चुका है, लेकिन इस खदान का दुष्प्रभाव अबतक देखने को मिल रहा है.

इसे भी पढ़ें- रांची: क्लोन चेक के जरिए स्कूल से 45 लाख रुपए गायब करने की कोशिश, साइबर अपराधियों का मंसूबा हुआ फेल

पुनर्वास और पर्यावरण संरक्षण के लिए 200 करोड़ का प्रोजेक्ट

प्रदूषण नियंत्रण परिषद के निदेशक सुरेश पासवान ने बताया कि जंगल बचाने और खेती योग्य जमीन को फिर से कृषि के लिए उपयोगी बनाने के उद्देश्य से वन विभाग की ओर से 200 करोड़ की योजना निर्गत की गई है. इस योजना को लेकर नई डीपीआर तैयार किया गया है. इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग और कृषि विभाग के सहयोग से इस योजना को धरातल पर उतारने की कवायद शुरू की जाएगी. साथ ही एनजीटी के आदेश के बाद इस योजना पर कार्य शुरू होगा.

सरायकेला: जिले के सीमावर्ती क्षेत्र से सटे चाईबासा के रो-रो हिल के पास 40 साल पहले एसबेस्टोस की खदान चलने का खामियाजा पर्यावरण और प्रकृति अबतक भुगतना पड़ रहा है. इस क्षेत्र के वनों की स्थिती बद से बदतर हो रही है, जबकि आसपास के बस्तियों और टोले में लोग बीमारी से संक्रमित हो रहे हैं.

देखें पूरी खबर

पर्यावरण का संकट हमारे लिए एक चुनौती के रूप में उभर रहा है. संरक्षण के लिए अब तक बने सारे कानून और नियम सिर्फ किताबी साबित हो रहे हैं. चाईबासा मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर रोरो हिलटॉप के आसपास के वनों की स्थिति दिनों दिन खराब हो रही है, जबकि आसपास के बस्तियों और टोलों के लोग अब बीमारी से भी संक्रमित हो रहे हैं. स्थानीय क्षेत्र की स्थिति बिगड़ता देख एक स्वयंसेवी संगठन ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सूचित किया है. जिसके बाद एनजीटी के संज्ञान में मामला आने के बाद अब प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने भी कार्रवाई शुरू कर दी है.

खेती योग्य जमीन हो रही है बंजर

वहीं, स्थानीय जिला प्रशासन भी अब हरकत में आ गया है. मामले के संबंध में जानकारी देते हुए प्रदूषण नियंत्रण परिषद के क्षेत्रीय निदेशक सुरेश पासवान ने बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर कोल्हान आयुक्त ने इस समस्या को लेकर बैठक बुलाई थी. जिसमें वन विभाग, सिविल सर्जन, जिला कृषि पदाधिकारी समेत अन्य सरकारी कर्मियों ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर वहां कि स्थिति को जाना. इस दौरान अधिकारियों ने देखा कि स्थानीय लोगों में एक विशेष तरह की बीमारी फैल रही है. साथ ही खेतों में धूल-कण के कारण जमीन बंजर हो रहे हैं.

40 साल पहले का दुष्प्रभाव का असर अबतक

इस घटना को लेकर स्थानीय लोगों ने बताया कि 40 वर्ष पूर्व हैदराबाद इंडस्ट्रीज लिमिटेड नाम की कंपनी को खदान का लीज पर मिला था. जो आसपास के लोगों से ही खदान में काम करवाता था. यहां एसबेस्टोस बनने वाले पत्थरों की पिसाई और पाउडर को तैयार किया जाता था. हालांकि 40 वर्ष पहले ही खदान बंद हो चुका है, लेकिन इस खदान का दुष्प्रभाव अबतक देखने को मिल रहा है.

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पुनर्वास और पर्यावरण संरक्षण के लिए 200 करोड़ का प्रोजेक्ट

प्रदूषण नियंत्रण परिषद के निदेशक सुरेश पासवान ने बताया कि जंगल बचाने और खेती योग्य जमीन को फिर से कृषि के लिए उपयोगी बनाने के उद्देश्य से वन विभाग की ओर से 200 करोड़ की योजना निर्गत की गई है. इस योजना को लेकर नई डीपीआर तैयार किया गया है. इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग और कृषि विभाग के सहयोग से इस योजना को धरातल पर उतारने की कवायद शुरू की जाएगी. साथ ही एनजीटी के आदेश के बाद इस योजना पर कार्य शुरू होगा.

Intro:सरायकेला जिले के सीमावर्ती क्षेत्र से सटे चाईबासा के रो रो हिल के पास 40 साल पूर्व एस्बेस्टस की खदानें चलने का खामियाजा पर्यावरण और प्रकृति अब भुगत रही है । चाईबासा मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर रो रो हिलटॉप के आसपास अब वनों की स्थिति बद से बदतर हो रही है, जबकि आसपास के बस्तियों और टोलों के लोग अब बीमारी से भी संक्रमित हो रहे हैं।


Body:स्थानीय क्षेत्र की स्थिति बिगड़ता देख एक स्वयंसेवी संगठन ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सूचित किया है । जिसके बाद एनजीटी के संज्ञान में मामला आने के बाद अब प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने भी कार्रवाई शुरू कर दी है।

वहीं स्थानीय जिला प्रशासन भी अब हरकत में है मामले के संबंध में जानकारी देते हुए प्रदूषण नियंत्रण परिषद के क्षेत्रीय निदेशक सुरेश पासवान ने बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश पर कोल्हान आयुक्त ने इस समस्या को लेकर बैठक बुलाई थी। जिसमें वन विभाग सिविल सर्जन जिला कृषि पदाधिकारी समेत अन्य सरकारी कर्मियों ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा कर वहां की वस्तु स्थिति जाने जिससे पाया गया कि स्थानीय लोगों में एक विशेष तरह की बीमारी फैल रही है और खेतों में धूल कण के कारण जमीन भी बंजर हो रही है।

बताया जाता है कि 40 वर्ष पूर्व हैदराबाद इंडस्ट्रीज लिमिटेड नामक कंपनी को खदान का लीज मिला था, जो आसपास के लोगों से ही खदान में काम करवाता था, यहां एस बेस्टेस्ट बनने वाले पत्थरों की पिसाई और पाउडर को तैयार किया जाता था। हालांकि 40 वर्ष पूर्व ही खदान बंद हो चुका है लेकिन इस खदान का दुष्प्रभाव अब खूब देखने को मिल रहा है।




Conclusion:पुनर्वास और पर्यावरण संरक्षण को लेकर 200 करोड़ का प्रोजेक्ट हुआ तैयार।

प्रदूषण नियंत्रण परिषद के निदेशक सुरेश पासवान ने बताया कि जंगल बचाने खेती योग्य जमीन को फिर से कृषि के लिए उपयोगी बनाने के उद्देश्य से वन विभाग द्वारा 200 करोड़ वाले नई योजना का डीपीआर तैयार किया गया है ।इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग और कृषि विभाग के सहयोग से इस योजना को धरातल पर उतारने की कवायद शुरू की जाएगी, साथ ही एनजीटी के आदेश के बाद इस योजना पर कार्य शुरू होगा।


बाइट - सुरेश पासवान , क्षेत्रीय निदेशक, प्रदूषण नियंत्रण पर्षद .
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