सरायकेला: जिला के गम्हरिया प्रखंड के बीरबास गांव की रहने वाली छुटनी देवी जिन्हें कभी डायन कहकर प्रताड़ित किया गया था. समाज ने जिनके साथ कई अत्याचार किए उस छुटना देवी ने झारखंड का नाम पूरे देश में गर्व से ऊंचा किया है. खुद पर बीती घटना दूसरों पर ना बीते इसके लिए छुटनी देवी ने लड़ाई लड़ी. आज वह सैकड़ों डायन प्रताड़ित महिलाओं की एक बुलंद आवाज है.
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सरायकेला-खरसावां के बीरबास की रहने वाली छुटनी देवी को नई दिल्ली में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पद्मश्री से नवाजा गया, आज पूरा समाज छुटनी के सम्मान से गर्व महसूस कर रहा है, लेकिन तकरीबन 25 साल पहले इसी समाज के कुछ तथाकथित लोगों ने भोली-भाली गांव की महिला को डायन के नाम पर इतना प्रताड़ित किया कि यह महिला आत्मविश्वास से इतनी लवरेज हुई कि इसने ठाना की, जो दुर्दशा मेरे साथ हुई है, वह अब और किसी के साथ नहीं होगी, इसी का नतीजा है कि आज सरकार ने भी छुटनी के हिम्मत और संघर्ष को सलाम किया है.
भले ही आज पूरी दुनिया छूटने के जज्बे को सलाम कर रही है लेकिन 1995 का वह दिन याद कर आज भी छुटनी देवी सिहर उठती हैं. पद्मश्री मिलना छुटनी के लिए किसी सपने से कम नहीं लेकिन डायन के नाम पर जो गहरा जख्म उसने झेला है, वह आज भी तरोताजा है. 12 साल की कच्ची उम्र में शादी, डायन करार दिए जाने पर पति का साथ ना मिलना और फिर चार छोटे बच्चों को लेकर घर छोड़ना छुटनी को आज भी बुरे सपने की तरह लगता है, लेकिन प्रताड़ित होकर कर गांव से निकाले जाने के बाद छुटनी ने प्रण लिया था कि अब वह ना प्रताड़ित होगी और ना ही किसी अन्य महिला को प्रताड़ित होने देगी उसने एक जंग की शुरुआत की यह जंग किसी व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि समाज में फैली कुरीति, कुप्रथा और अंधविश्वास के खिलाफ था. जंग जीतना काफी कठिन था लेकिन वह अपने मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़ती रही.
डायन करार दिए जाने के बाद दुष्कर्म की कोशिश: 60 साल की पद्मश्री छुटनी देवी का जीवन संघर्षशील रहा. 1995 में भरे पंचायत में छुटनी को डायन करार दिया गया, उसी रात गांव के कुछ लोगों ने घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की दरवाजा तोड़ लोग अंदर आ गए, उस वक्त इस महिला ने किसी तरह अपने आप को तो बचा लिया लेकिन ठीक अगले दिन पंचायत ने 500 रुपए का जुर्माना लगाया, छुटनी ने बड़ी मुश्किल से पंचायत को जुर्माना भी अदा कर दिया, उस वक्त छुटनी को लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था, समाज के ठेकेदारों ने अपना अत्याचार यही कम नहीं किया, पंचायत में एक बार फिर ओझा गुनी को बुलाया गया लोगों ने छुटनी देवी को मानव मल-मूत्र पिलाने की कोशिश की. छुटनी किसी तरह जान बचाकर पंचायत से भागी, तो लोगों ने उसके शरीर पर ही मैला फेक दिया, पूरा गांव एक तरफ और एक लाचार बेबस महिला एक तरफ, पति ने भी उस वक्त साथ छोड़ा दिया था. जिसके बाद छूटनी गांव से निकाल दी गई. अगले दिन छुटनी ने हिम्मत दिखाई और थाने में रिपोर्ट दर्ज कराया, तब पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए कुछ लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन वे जल्द ही जमानत पर छूट गए. इसके बाद भी गांव में कुछ नहीं बदला, लेकिन यही वह समय था जब छुटनी की किस्मत बदलने लगी, छुटनी ससुराल छोड़ मायके आ गई. यहां भी लोग उसे देख दरवाजा बंद कर लेते थे, अपने बच्चों को छुपा लेते थे. 8 महीने खुले आसमान में रहने के बाद, छुटनी के भाइयों ने कुछ पैसे देकर उसकी मदद की. जिससे छुटनी ने अपना एक छोटा सा आशियाना बनाया और अपने चारों बच्चों का भरण पोषण किया.
फ्लैक बना छुटनी का सहारा: छुटनी देवी के साथ हुई यह घटना 1995 में ही एक हिंदी दैनिक में छपी. जिसके बाद सन 1977 में बेसहारा और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सलाह देने के उद्देश्य से बने फ्री लीगल एंड कमेटी फ्लैक (Free Legal And Committee FLAC) की नजर इस पर पड़ी, सन 1991 से डायन प्रथा के खिलाफ काम कर रहे फ्लैक के चेयरमैन प्रेमचंद बताते हैं कि छुटनी के साथ हुई यह घटना, छुटनी और फ्लैक के लिए टर्निंग प्वाइंट थी, हमने छुटनी का साथ दिया और जिला प्रशासन के सहयोग से डायन प्रथा अंधविश्वास के खिलाफ जागरुकता अभियान फैलाना शुरू किया. छुटनी के साथ हुए विध्वंस घटना के ठीक बाद 1995 में ही सरायकेला जिले के कुचाई में एक ही परिवार के 6 लोगों को डायन के नाम पर कत्ल कर दिया गया था. तब छुटनी और प्रेमचंद ने मिलकर अंधविश्वास उन्मूलन के अपने इस मिशन को और आगे बढ़ाया, तब तत्कालीन अविभाजित पश्चिम सिंहभूम जिले के उपायुक्त अमित खरे और पूर्वी सिंहभूम जिले के उपायुक्त संजय कुमार के प्रयास से डायन प्रथा उन्मूलन को लेकर कई जागरुकता कार्यक्रम किए गए. इसी अभियान का नतीजा रहा कि जिला प्रशासन की ओर से छुटने को वीरबास में डायन प्रथा रोकने को लेकर सन 1996 कल्याण केंद्र बना कर दिया गया, जहां डायन के नाम पर प्रताड़ित होकर आने वाली महिलाओं को छुटनी यहां न सिर्फ शरण देती थी बल्कि, उनकी आवाज बंद कर उन्हें न्याय भी दिलाती थी. आज छुटनी ने उन सैकड़ों बेबस महिलाओं को तबाह होने से बचाया है, जो कुव्यवस्था का शिकार हुई थी और आज छुटनी उन पीड़ित महिलाओं के लिए किसी भगवान से कम नहीं.