सरायकेला: कहते हैं किताबें हमारी सच्ची दोस्त होती हैं. किताबों की संगति और किताबों से दोस्ती हमेशा से फायदेमंद रहती है. छात्र-छात्राएं अपने पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों को पढ़ते हैं, लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि कुछ विषयों की किताबें या फिर किसी विषय पर जानकारी प्राप्त करने के लिए छात्रों को लाइब्रेरी की ओर रुख करना पड़ता है. वर्षों से चली आ रही लाइब्रेरी में पढ़ने की परंपरा जिले के विभिन्न क्षेत्रों में आज भी बदस्तूर कायम है, लेकिन यहां कई ऐसे पुस्तकालय और वाचनालय हैं जो आज फंड के अभाव में जर्जर हो चले हैं. शहरी क्षेत्र में घनी आबादी के बीच इन पुस्तकालयों की सुध लेने वाला आज कोई नहीं है, फिर भी छात्र इन सीमित संसाधन वाले पुस्तकालय के ही भरोसे सफलता के गगन चुम रहे हैं.
सरस्वती सदन पुस्तकालय बयां कर रहा बदहाली की दास्तां
जिले के आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में स्थापित सरस्वती सतन पुस्तकालय शहरी क्षेत्र का सबसे पुराना और पहला एक पुस्तकालय है. सन 1991 में स्थानीय लोगों के अथक प्रयास से क्षेत्र के युवाओं को बेहतर पठन-पाठन माहौल देने और खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्रों को तैयार करने के उद्देश्य से लाइब्रेरी की आधारशिला रखी गई थी. वर्षों पूर्व दो कमरे से शुरू हुआ यह पुस्तकालय आज 29 साल बीत जाने के बाद भी उसी दो कमरे में संचालित हो रहा है. कच्चे एसब्सटेंस के छत से शुरू हुई लाइब्रेरी का सफर आज 29 बसंत देखने के बाद अपने बदहाली पर आंसू बहाने को विवश हैं. राज्य में कई सरकारें आई और कई गई, जिले में कई आला अधिकारी आए और गए, लेकिन किसी ने इस छोटे से दो कमरे में शुरू हुई लाइब्रेरी की सुध नहीं ली. ऐसा नहीं है कि लाइब्रेरी से जुड़े सदस्यों ने लाइब्रेरी के बेहतर विकास को लेकर प्रयास नहीं किया. लाइब्रेरी के संस्थापक सदस्य बीएलएन कर्ण ने लाइब्रेरी के विस्तार को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी, लेकिन लाइब्रेरी को अपना जमीन तक नसीब नहीं हो पाया. आज लाइब्रेरी के सक्रिय सदस्य आपसी चंदा और सामाजिक सहयोग से किसी तरह इसका रखरखाव और संचालन कर रहे हैं, लेकिन महंगाई के इस युग में वह भी नाकाफी साबित हो रहे है.
मजदूर वर्ग के 200 से भी अधिक छात्र सफल
सरस्वती सदन पुस्तकालय आज इस क्षेत्र के लिए एक अदब से लिया जाने वाला नाम है. तकरीबन 29 साल पूर्व से चला आ रहा यह पुस्तकालय अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है. शहरी क्षेत्र होने के बावजूद इस लाइब्रेरी में पढ़ने वाले अधिकांश मजदूरों के बच्चे ही हैं. सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले ये बच्चे जो महंगी किताबें नहीं खरीद सकते थे और ऊंचे कीमत चुका कर दूसरे लाइब्रेरी से जुड़ नहीं सकते थे, वैसे जरूरतमंद छात्र-छात्राओं के लिए यह लाइब्रेरी किसी वरदान से कम साबित नहीं हुई. 29 साल बीत चुके हैं और इस लाइब्रेरी से पढ़कर तकरीबन 200 से भी अधिक छात्र-छात्राओं ने सफलता के झंडे गाड़े हैं. लाइब्रेरी में पढ़ने वाले अधिकांश छात्र छात्राओं ने बैंकिंग, रेलवे समेत कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता हासिल की है. इसके अलावा कई एक छात्रों ने बिहार प्रशासनिक सेवा बिहार प्रशासनिक सेवा और रक्षा विभाग में भी चयनित होकर लाइब्रेरी का नाम गर्व से ऊंचा किया हैं.
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पूर्व मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद भी पुस्तकालय को नहीं मिली जमीन
वर्षों पूर्व अर्जुन मुंडा सरकार में लाइब्रेरी को जमीन आवंटित करने और लाइब्रेरी भवन निर्माण को लेकर सदस्यों ने कई अथक प्रयास किए. वर्षों पूर्व जब झारखंड में अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री थे, तब इन्होंने लाइब्रेरी संचालन कमेटी को आश्वस्त किया था कि सरकार के प्रयास से सरस्वती सदन पुस्तकालय का अपना जमीन और भवन होगा. इसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री ने स्थानीय जिला प्रशासन को भी जमीन खोजने संबंधित आदेश दिए थे, लेकिन सरकारी वादे और आश्वासन की तरह इस लाइब्रेरी भवन निर्माण का आश्वासन भी वक्त बीतने के साथ भुला दिया गया.
डिजिटलाइजेशन की छात्रों ने रखी मांग
वर्षों से चला रही सरस्वती सदन पुस्तकालय अब वर्तमान सूचना और प्रौद्योगिकी क्रांति के युग में काफी पीछे चल रहा है. पुस्तकालय में रखी गई किताबें अब पुरानी हो चुकी हैं और बिना देखरेख के अभाव में किताबें अब इंसानों के बजाय धूल मिट्टी की दोस्त बन गई है. स्थानीय छात्र मानते हैं कि आज का युग इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी और डिजिटल युग है. ऐसे में यदि लाइब्रेरी में अधिक से अधिक किताबें बिना स्थापित किए डिजिटल लाइब्रेरी की परिकल्पना किए जाने से छात्रों को इसका भरपूर लाभ मिलेगा, लेकिन फंड के अभाव में यह निकट भविष्य में भी संभव होता नहीं दिख रहा. फिलहाल लॉकडाउन और कोरोना संक्रमण के कारण छात्र लाइब्रेरी नहीं आते, लेकिन कोरोना काल से पूर्व यहां सप्ताह में 2 दिन प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कराई जाती थी, जिस में हिस्सा लेने दूर-दूर से छात्र आते थे.
अस्तित्वविहीन हुआ अंबेडकर पुस्तकालय और वाचनालय
नगर निगम क्षेत्र के जयप्रकाश नगर में भी तकरीबन 29 साल पूर्व सामाजिक कार्यकर्ता ओम प्रकाश ने युवाओं को नि:शुल्क शैक्षणिक माहौल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अंबेडकर पुस्तकालय और वाचनालय निर्माण की परिकल्पना की थी. उस समय तत्कालीन बिहार राज्य में मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव ने खुद अपने हाथों से पुस्तकालय और वाचनालय निर्माण की आधारशिला रखी थी. वर्षों पूर्व जिस लाइब्रेरी निर्माण को छात्रों के बेहतर भविष्य के उद्देश्य से स्थापित किया गया था, वह आज बिना प्रशासनिक और सरकारी देख रेख के खंडहर में तब्दील हो चुका है. लाइब्रेरी के सर्वेसर्वा सामाजिक कार्यकर्ता ओमप्रकाश का कहना है कि जरूरतमंद और गरीब छात्रों को ज्ञान के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करने के उद्देश्य से उन्होंने लाइब्रेरी निर्माण की परिकल्पना की थी. लाईब्रेरी तो बना और कुछ वर्षों तक ठीक-ठाक चला, लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ बिना देख रेख और खर्च नहीं जुटा पाने के कारण लाइब्रेरी में समय से पूर्व ही ताला लटक गया. संचालक ओम प्रकाश का कहना है कि आज भी इन की तमन्ना है कि यह लाइब्रेरी पुराने दिनों की तरह चले और छात्र यहां आकर एक बार फिर किताबों से दोस्ती करें.
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जियाडा प्रशासनिक भवन में संचालित आधुनिक लाइब्रेरी
एक ओर जहां नगर निगम क्षेत्र में संचालित दो निजी लाइब्रेरी बदहाली का दंश झेल रही हैं. वहीं, झारखंड औद्योगिक विकास प्राधिकार जियाडा भवन में अत्याधुनिक लाइब्रेरी की भी सुविधा मौजूद है. वर्ष 2004 में सरायकेला जिले में पदस्थापित तत्कालीन डीसी वंदना डाडेल प्रयास से यहां आधुनिक लाइब्रेरी की शुरुआत की गई. इसका उद्देश्य था औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर तबके के लोग के बच्चों को बेहतर तालीम देने के साथ-साथ किताबों के दुनिया से भी रूबरू कराया जाए. इसी उद्देश्य से जियाडा भवन में लाइब्रेरी की शुरुआत की गई. आज जियाडा के इस लाइब्रेरी में सभी प्रकार की कुल 4,942 किताबें मौजूद हैं. यहां भी अधिकांश मजदूरों के बच्चे ही किताबों का अध्ययन करने आते हैं. नियम के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले स्थायी कर्मचारी और मजदूरों के बच्चों को सालाना 300 रुपये के शुल्क पर 14 दिनों के लिए विभिन्न किताबों को इशू किया जाता है. इसके अलावा 150 रुपये प्रतिवर्ष देने पर छात्र लाइब्रेरी में बैठकर किताबों का अध्ययन कर सकते हैं. जियाडा सेंट्रल लाइब्रेरी के संचालक मनोज कुमार प्रधान बताते हैं कि जियाडा का सेंट्रल लाइब्रेरी भी छात्रों के भविष्य गढ़ने का काम करता आया है. अब तक यहां 30 से भी अधिक अध्ययनरत छात्रों ने रेलवे, बैंकिंग, पुलिस, डिफेंस समेत अन्य प्रशासनिक सेवाओं में चयन होने में सफलता प्राप्त की है. हालांकि लाइब्रेरी 6 महीने से खुल तो रहा है, लेकिन छात्रों का प्रवेश कोरोना के कारण निषेध है.
लाइब्रेरी में पढ़ने से आंख और स्वास्थ्य रहता है बेहतर
लाइब्रेरी में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं मानते हैं कि लाइब्रेरी में किया जाने वाला अध्ययन काफी उपयोगी होता है. अभी कोरोना काल है, लेकिन कोरोना काल से पूर्व छात्र जब लाइब्रेरी में इकट्ठे बैठकर पढ़ते थे तब कई विषयों पर चर्चाएं होती थी और विचारों का आदान-प्रदान भी होता है. इसके अलावा मोबाइल या टेबलेट के मुकाबले किताबी ज्ञान आसानी से समझ में आता है और लंबे समय तक उसे याद भी रखा जा सकता हैं. छात्रा मानते है कि लैपटॉप टेबलेट या मोबाइल पर पढ़ने के दौरान अधिकांश छात्र लेट कर सो कर या फिर यूं ही चलते-चलते पढ़ लेते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है, लेकिन लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ने से आंख ठीक रहता है और स्वास्थ्य भी बना रहता है.
लाइब्रेरी विकास को लेकर जिला प्रशासन के पास नहीं होता फंड
छात्रों के भविष्य गढ़ने में मददगार साबित होने वाले निजी लाइब्रेरीओं की दुर्दशा को लेकर उपायुक्त ने बताया कि वैसे तो जिला प्रशासन के पास पुस्तकालय और वाचनालय विकसित करने या नया निर्माण किए जाने को लेकर फंड उपलब्ध नहीं रहता, लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि सांसद विधायक के अनुशंसा और उनकी ओर से दिए गए फंड से पुस्तकालयों को विकसित किया जा सकता है. वहीं जिले के उपायुक्त इकबाल आलम अंसारी ने बताया कि लाइब्रेरी के खस्ताहाल होने संबंधित मामले संज्ञान में नहीं है, लेकिन पुस्तकालय संचालकों की और से यदि जिला प्रशासन को इस मुद्दे से अवगत कराया जाएगा तो निश्चित तौर पर समुदाय विशेष के हितों को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन पुस्तकालयों को जमीन उपलब्ध कराने की पहल करेगा.