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खरसावां गोलीकांड की बरसीः जलियांवालाबाग जैसी बर्बरता में शहीद हुए थे कई आदिवासी, अब तक नहीं मिला न्याय

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Published : Jan 1, 2023, 7:21 AM IST

1 जनवरी को पूरी दुनिया जश्न में डूबी रहती है. लेकिन झारखंड के खरसावां में लोग जश्न नहीं मनाते हैं, यह दिन उनके लिए काला दिन है. साल का पहला दिन उन्हें उस वीभत्स गोलीकांड की याद दिलाती है, जिसमें कई लोग शहीद हुए थे(Kharsawan firing anniversary today). खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए लोगों को आज भी न्याय का इंतजार है.

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सरायकेलाः देश की आजादी के महज चार महीने बाद 1 जनवरी 1948 को खरसावां में जलियांवाला बाग जैसी ही घटना घटी थी(Kharsawan firing anniversary today). जिसे आज लोग याद नहीं करना चाहेंगे. लेकिन आज तक इस गोलीकांड के गुनहगारों को सजा नहीं मिल सकी है. बहरहाल इस घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने कई राज्यों के आदिवासी झारखंड के खरसावां पहुंचते हैं.

क्या है कहानीः स्थानीय लोग बताते हैं कि 1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था, तभी अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को ही खरसावां-सरायकेला रियासतों का विलय ओडिशा राज्य में कर दिया गया था. औपचारिक तौर पर एक जनवरी को कार्यभार हस्तांतरण करने की तिथि मुकर्रर हुई थी. इस दौरान एक जनवरी 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने खरसावां-सरायकेला का ओडिशा में विलय करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में जनसभा बुलाई थी. विभिन्न क्षेत्रों से जनसभा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे. एक जनवरी 1948 के दिन गुरुवार और साप्ताहिक बाजार-हाट का दिन था, इस कारण भीड़ अधिक थी. लेकिन, किसी कारणवश जनसभा में जयपाल सिंह मुंडा नहीं पहुंच सके. रैली के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में पुलिस भी तैनात थी. इसी दौरान पुलिस और जनसभा में पहुंचे लोगों में किसी बात को लेकर संघर्ष हो गया, तभी अचानक फायरिंग शुरू हो गई और पुलिस की गोलियों से सैकड़ों की संख्या में लोग शहीद हो गए.


शहीदों की संख्या बताने वाला कोई सरकारी दस्तावेज नहींः शहीदों की संख्या कितनी थी, इसका सही आंकलन नहीं हो सका है. कहा तो यहां तक जाता है कि लाशों को खरसावां हाट मैदान स्थित एक कुएं में भर कर मिट्टी पाट दी गई. घटना के बाद पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई. उन दिनों देश की राजनीति में बिहार के नेताओं का अहम स्थान था और वे भी यह विलय नहीं चाहते थे. ऐसे में इस घटना का असर यह हुआ कि इलाके का ओडिशा में विलय रोक दिया गया. सरायकेला और खरसावां रियासत क्षेत्र का विलय बिहार राज्य में किया गया. खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए लोगों की संख्या बताने वाला कोई सरकारी दस्तावेज सरकार के पास नहीं है. खरसावां या सरायकेला थाना में इससे संबंधित कोई प्राथमिकी या अन्य दस्तावेज नहीं है. खरसावां गोलीकांड के 74 साल बाद भी अब तक शहीद हुए लोगों की वास्तविक संख्या का पता नहीं चल सका है. आजादी के बाद यह देश का सबसे बड़ा गोलीकांड था. जांच के लिए ट्रिब्यूनल बनाए गए, लेकिन उसकी रिपोर्ट कहां गई आज तक पता नहीं चल सका.

सरायकेलाः देश की आजादी के महज चार महीने बाद 1 जनवरी 1948 को खरसावां में जलियांवाला बाग जैसी ही घटना घटी थी(Kharsawan firing anniversary today). जिसे आज लोग याद नहीं करना चाहेंगे. लेकिन आज तक इस गोलीकांड के गुनहगारों को सजा नहीं मिल सकी है. बहरहाल इस घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने कई राज्यों के आदिवासी झारखंड के खरसावां पहुंचते हैं.

क्या है कहानीः स्थानीय लोग बताते हैं कि 1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था, तभी अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को ही खरसावां-सरायकेला रियासतों का विलय ओडिशा राज्य में कर दिया गया था. औपचारिक तौर पर एक जनवरी को कार्यभार हस्तांतरण करने की तिथि मुकर्रर हुई थी. इस दौरान एक जनवरी 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने खरसावां-सरायकेला का ओडिशा में विलय करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में जनसभा बुलाई थी. विभिन्न क्षेत्रों से जनसभा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे. एक जनवरी 1948 के दिन गुरुवार और साप्ताहिक बाजार-हाट का दिन था, इस कारण भीड़ अधिक थी. लेकिन, किसी कारणवश जनसभा में जयपाल सिंह मुंडा नहीं पहुंच सके. रैली के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में पुलिस भी तैनात थी. इसी दौरान पुलिस और जनसभा में पहुंचे लोगों में किसी बात को लेकर संघर्ष हो गया, तभी अचानक फायरिंग शुरू हो गई और पुलिस की गोलियों से सैकड़ों की संख्या में लोग शहीद हो गए.


शहीदों की संख्या बताने वाला कोई सरकारी दस्तावेज नहींः शहीदों की संख्या कितनी थी, इसका सही आंकलन नहीं हो सका है. कहा तो यहां तक जाता है कि लाशों को खरसावां हाट मैदान स्थित एक कुएं में भर कर मिट्टी पाट दी गई. घटना के बाद पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई. उन दिनों देश की राजनीति में बिहार के नेताओं का अहम स्थान था और वे भी यह विलय नहीं चाहते थे. ऐसे में इस घटना का असर यह हुआ कि इलाके का ओडिशा में विलय रोक दिया गया. सरायकेला और खरसावां रियासत क्षेत्र का विलय बिहार राज्य में किया गया. खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए लोगों की संख्या बताने वाला कोई सरकारी दस्तावेज सरकार के पास नहीं है. खरसावां या सरायकेला थाना में इससे संबंधित कोई प्राथमिकी या अन्य दस्तावेज नहीं है. खरसावां गोलीकांड के 74 साल बाद भी अब तक शहीद हुए लोगों की वास्तविक संख्या का पता नहीं चल सका है. आजादी के बाद यह देश का सबसे बड़ा गोलीकांड था. जांच के लिए ट्रिब्यूनल बनाए गए, लेकिन उसकी रिपोर्ट कहां गई आज तक पता नहीं चल सका.

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