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सरायकेला में 358 वर्ष पुराना है दुर्गा पूजा का इतिहास, सरकारी पैसे से आज भी होती है पूजा

दुर्गा पूजा को लेकर हर जगह अलग महत्व है, लेकिन सरायकेला में दुर्गा पूजा का ऐतिहासिक परंपरा है. यहां मां पाउड़ी मंदिर में सरकारी पैसे से हर साल पूजा का आयोजन होता है. 358 वर्षों से तांत्रिक विधि से आज तक दुर्गा पूजा का आयोजन होता आया है. राजमहल में जिउतिया अष्टमी से 16 पूजा के साथ दुर्गा पूजा शुभारंभ होता है.

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दुर्गा पूजा का इतिहास
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Published : Oct 20, 2020, 6:04 AM IST

सरायकेला: झारखंड में 24 अलग-अलग जिले हैं और सभी जिलों की कोई ना कोई विशेषता है, लेकिन सरायकेला-खरसावां में आज भी पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं को अपने में संजोए रखा है. झारखंड में सरायकेला जिला एकमात्र ऐसा जिला है जहां आजादी के 70 साल बीतने के बाद भी सरकारी फंड से दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, इतना ही नहीं दुर्गा पूजा के अलावा अन्य नौ पूजा परंपरा तरीके से सरकार अपने खर्च से करती है.

देखें स्पेशल स्टोरी
राजघराना और सरकार के बीच तय हुआ था इकरारनामाआजादी से पहले सरायकेला जिला तत्कालीन उड़ीसा राज्य के अंतर्गत आता था. ओडिशा राज्य के मयूरभंज जिला में तब सरायकेला रियासत का विलय हुआ था. आजादी के बाद जब लोकतंत्र में राजतंत्र का विलय होने लगा तब एकमात्र मयूरभंज ही ऐसा जिला था जो 1 साल बाद ओडिशा राज्य में शामिल हुआ. इस बीच सरायकेला रियासत को बिहार राज्य में कुछ समय के लिए विलय किया गया, लेकिन उस वक्त से लेकर आज तक सरायकेला रियासत पहले बिहार और अब झारखंड का हिस्सा बनकर है. आजादी के बाद सरायकेला राजतंत्र का जब लोकतंत्र में विलय होने लगा तब भारत सरकार और तत्कालीन सरायकेला रियासत के राजा के बीच एक इकरारनामा तय किया गया, जिसके अनुसार आजादी के पहले से जिन पूजा की परंपरा का निर्वहन राज्य परिवार करता आया है, वह आजादी के बाद अब भारत सरकार के ओर से किया जाएगा, जिस पर सरायकेला राजतंत्र और सरकार के बीच सहमति बनी और इसी आधार पर इकरारनामा तय हुआ, जिसके बाद आजादी के आज 70 साल बीत जाने के बाद भी सरकार सरायकेला जिले में आयोजित होने वाले पब्लिक दुर्गा पूजा को हर साल सरकारी फंड मुहैया कराती है.

इसे भी पढ़ें:- बजट के अभाव में लाइब्रेरी बदहाल, सरकारी आस और नेताओं के आश्वासन के बाद भी नहीं आये अच्छे दिन



राज्य सरकार ने सरायकेला को धार्मिक अनुष्ठान और पूजा के लिए दिए 11 लाख
आजादी से लेकर अब तक राजतंत्र और सरकार के बीच हुए तय इकरारनामा के मुताबिक इस साल भी राज्य सरकार ने सरायकेला और खरसावां में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पूजा के लिए कुल 11 लाख रुपए का आवंटन उपलब्ध करा दिया है, जिनमें से सरायकेला को 5.50 लाख और खरसावां को 5.50 लाख का आवंटन प्राप्त हुआ है. सरकार के ओर से प्रदान की गई इस राशि से दुर्गा पूजा, काली पूजा, चड़क पूजा का आयोजन होगा. वहीं सरायकेला जिले में सरकारी राशि से कुल 13 पूजा का आयोजन हर किया जाता है, जबकि खरसावां में सरकारी राशि से 10 पूजा के आयोजन किए जाते हैं.

सरायकेला जिले में सरकारी राशि से आयोजित किए जाने वाले पूजा इस प्रकार हैं

1. दुर्गा पूजा

2 . चड़क पूजा

3. काली पूजा

4. जगाधत्री पूजा

5. रास पूजा

6. अन्नपूर्णा पूजा

7. झूम केश्वरी पूजा

8. भैरव पूजा

9. किचकेश्वरी पूजा

10. नुआखाई जान तालपूजा

समेत रथ यात्रा , चैत्रपर्व, इंद्र उत्सव का भी आयोजन सरकारी खर्च से किया जाता है.


सरायकेला एसडीओ होते हैं सरकारी पूजा के मुख्य यजमान
सरायकेला जिले में वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के बीच सरकार और आम लोगों में जबरदस्त आस्था और उल्लास बना रहता है. लोग बड़े ही धूमधाम के साथ दुर्गा पूजा मनाते हैं, हालांकि इस साल कोराना संक्रमण को लेकर सरकारी नियमों के अनुसार ही दुर्गा पूजा संपन्न होंगे. दुर्गा पूजा के आयोजन में सरायकेला सिविल एसडीओ पूजा के मुख्य यजमान बनकर पूजा में शामिल होते हैं.


सरायकेला राजमहल में 358 वर्ष पुराना है दुर्गा पूजा
सरायकेला राजमहल में 358 वर्षों से तांत्रिक विधि से आज तक दुर्गा पूजा का आयोजन होता आया है. राजमहल में जिउतिया अष्टमी से 16 पूजा के साथ दुर्गा पूजा शुभारंभ होता है. राजमहल परिसर में स्थित मां पाउड़ी मंदिर में जिउतिया अष्टमी से महाअष्टमी तक कुल 16 दिनों तक पूजा की जाती है. पूजा के दौरान प्रतिदिन बलि चढ़ाई जाती है. वहीं महाष्टमी के बाद नुआखाई की परंपरा है. उस दिन राज परिवार के शादीशुदा पुरुष नदी से नए घड़े में पानी लेकर आते हैं और इन नए घड़े में नया चावल पकाकर आराध्य पाउड़ी देवी को अर्पित किया जाता है.

राजमहल मंदिर में राजा -रानी करते हैं पूजा
सरायकेला राजमहल में जिउतिया अष्टमी से 16 दिनों तक चलने वाले पूजा का आयोजन किया जाता है. इस दौरान राज परिवार के राजा-रानी समेत अन्य सदस्य पूजा में शामिल होते हैं. राज परिवार की सदियों की परंपरा रही है कि 16 दिनों तक दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें राज परिवार के सभी सदस्य पूरे भक्ति भाव के साथ शामिल होते हैं. सरायकेला रियासत के राजा प्रताप आदित्य सिंह देव ने बताया कि पहले राजतंत्र के दौरान विभिन्न राज परिवारों के ओर से मां पाउड़ी मंदिर में पूजा की जाती थी, लेकिन इसे अब केवल सरायकेला राज परिवार है निभा रहा है. जिउतिया अष्टमी से महाअष्टमी तक 16 दिनों की दुर्गा पूजा होती है. महाषष्टि तक यह पूजा राजमहल के अंदर पाउड़ी मंदिर में होती है, जिसके बाद शस्त्र -पूजा के साथ राजमहल के बाहर स्थित दुर्गा मंदिर में आम लोगों के लिए यह पूजा होती है.

पाउड़ी मंदिर में नहीं है बाहरी लोगों के जाने की अनुमति
मां पाउड़ी मंदिर में बाहरी लोगों के जाने की अनुमति नहीं है. इस मंदिर में केवल राजा और रानी ही पूजा करने जाते हैं. साल में एक बार दुर्गा पूजा के दौरान षष्ठी में शस्त्र पूजा को लेकर राज परिवार के लोग मंदिर में जाते हैं. इस मंदिर में केवल स्त्री को साड़ी पहनकर, जबकि पुरुष केवल धोती और गमछा पहनकर ही प्रवेश पा सकते हैं. 16 दिनों तक मां पाउड़ी मंदिर में आयोजित होने वाले दुर्गा पूजा का खास महत्व है, आज भी यहां वर्षों से चले आ रहे पौराणिक परंपरा का पूरे तन्मयता के साथ निर्वहन की जा रही है.

21वीं सदी में भी है राजपरिवार की परंपरा
सरायकेला जिले के राजमहल में आयोजित होने वाली दुर्गा पूजा कई मायनों में खास है. एक तो यह दुर्गा पूजा 16 दिनों तक आयोजित की जाती है, जबकि आज एक 21वीं सदी में भी यहां राजतंत्र के समय से ही चली आ रही तांत्रिक परंपरा और बलि प्रथा को कायम रखा गया है, हालांकि बदलते वक्त और दौर में केवल परंपरा निर्वहन को लेकर बलि की प्रथा आयोजित की जाती है. बताया जाता है कि राजतंत्र के समय में भी राजमहल में आयोजित होने वाले इस दुर्गा पूजा में आम जनता की भागीदारी को लेकर राजा आम जनता से लगान लेकर राजमहल में आयोजित होने वाले पूजा में इसे लगाते थे, ताकि राज परिवार के साथ-साथ आम जनता भी पूजा में अपनी भागीदारी निभाए.


राजघराने की बेटी हेमप्रभा ने कराया था मंदिर का निर्माण
सरायकेला राजघराने की बेटी हेमप्रभा देवी की शादी पटियाला के राजघराने में हुई थी. हेमप्रभा देवी ने राजमहल से बाहर सार्वजनिक मंदिर का निर्माण कराया था. वर्षों तक जनसहयोग से यहां दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता रहा है. वक्त बीतने के साथ श्रद्धालुओं ने नव मंदिर निर्माण का संकल्प लिया और आज जन सहयोग से यहां विभिन्न कलाकृतियों के साज-सज्जा के साथ मां दुर्गा का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो चुका है.

सरायकेला: झारखंड में 24 अलग-अलग जिले हैं और सभी जिलों की कोई ना कोई विशेषता है, लेकिन सरायकेला-खरसावां में आज भी पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाओं को अपने में संजोए रखा है. झारखंड में सरायकेला जिला एकमात्र ऐसा जिला है जहां आजादी के 70 साल बीतने के बाद भी सरकारी फंड से दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, इतना ही नहीं दुर्गा पूजा के अलावा अन्य नौ पूजा परंपरा तरीके से सरकार अपने खर्च से करती है.

देखें स्पेशल स्टोरी
राजघराना और सरकार के बीच तय हुआ था इकरारनामाआजादी से पहले सरायकेला जिला तत्कालीन उड़ीसा राज्य के अंतर्गत आता था. ओडिशा राज्य के मयूरभंज जिला में तब सरायकेला रियासत का विलय हुआ था. आजादी के बाद जब लोकतंत्र में राजतंत्र का विलय होने लगा तब एकमात्र मयूरभंज ही ऐसा जिला था जो 1 साल बाद ओडिशा राज्य में शामिल हुआ. इस बीच सरायकेला रियासत को बिहार राज्य में कुछ समय के लिए विलय किया गया, लेकिन उस वक्त से लेकर आज तक सरायकेला रियासत पहले बिहार और अब झारखंड का हिस्सा बनकर है. आजादी के बाद सरायकेला राजतंत्र का जब लोकतंत्र में विलय होने लगा तब भारत सरकार और तत्कालीन सरायकेला रियासत के राजा के बीच एक इकरारनामा तय किया गया, जिसके अनुसार आजादी के पहले से जिन पूजा की परंपरा का निर्वहन राज्य परिवार करता आया है, वह आजादी के बाद अब भारत सरकार के ओर से किया जाएगा, जिस पर सरायकेला राजतंत्र और सरकार के बीच सहमति बनी और इसी आधार पर इकरारनामा तय हुआ, जिसके बाद आजादी के आज 70 साल बीत जाने के बाद भी सरकार सरायकेला जिले में आयोजित होने वाले पब्लिक दुर्गा पूजा को हर साल सरकारी फंड मुहैया कराती है.

इसे भी पढ़ें:- बजट के अभाव में लाइब्रेरी बदहाल, सरकारी आस और नेताओं के आश्वासन के बाद भी नहीं आये अच्छे दिन



राज्य सरकार ने सरायकेला को धार्मिक अनुष्ठान और पूजा के लिए दिए 11 लाख
आजादी से लेकर अब तक राजतंत्र और सरकार के बीच हुए तय इकरारनामा के मुताबिक इस साल भी राज्य सरकार ने सरायकेला और खरसावां में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पूजा के लिए कुल 11 लाख रुपए का आवंटन उपलब्ध करा दिया है, जिनमें से सरायकेला को 5.50 लाख और खरसावां को 5.50 लाख का आवंटन प्राप्त हुआ है. सरकार के ओर से प्रदान की गई इस राशि से दुर्गा पूजा, काली पूजा, चड़क पूजा का आयोजन होगा. वहीं सरायकेला जिले में सरकारी राशि से कुल 13 पूजा का आयोजन हर किया जाता है, जबकि खरसावां में सरकारी राशि से 10 पूजा के आयोजन किए जाते हैं.

सरायकेला जिले में सरकारी राशि से आयोजित किए जाने वाले पूजा इस प्रकार हैं

1. दुर्गा पूजा

2 . चड़क पूजा

3. काली पूजा

4. जगाधत्री पूजा

5. रास पूजा

6. अन्नपूर्णा पूजा

7. झूम केश्वरी पूजा

8. भैरव पूजा

9. किचकेश्वरी पूजा

10. नुआखाई जान तालपूजा

समेत रथ यात्रा , चैत्रपर्व, इंद्र उत्सव का भी आयोजन सरकारी खर्च से किया जाता है.


सरायकेला एसडीओ होते हैं सरकारी पूजा के मुख्य यजमान
सरायकेला जिले में वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के बीच सरकार और आम लोगों में जबरदस्त आस्था और उल्लास बना रहता है. लोग बड़े ही धूमधाम के साथ दुर्गा पूजा मनाते हैं, हालांकि इस साल कोराना संक्रमण को लेकर सरकारी नियमों के अनुसार ही दुर्गा पूजा संपन्न होंगे. दुर्गा पूजा के आयोजन में सरायकेला सिविल एसडीओ पूजा के मुख्य यजमान बनकर पूजा में शामिल होते हैं.


सरायकेला राजमहल में 358 वर्ष पुराना है दुर्गा पूजा
सरायकेला राजमहल में 358 वर्षों से तांत्रिक विधि से आज तक दुर्गा पूजा का आयोजन होता आया है. राजमहल में जिउतिया अष्टमी से 16 पूजा के साथ दुर्गा पूजा शुभारंभ होता है. राजमहल परिसर में स्थित मां पाउड़ी मंदिर में जिउतिया अष्टमी से महाअष्टमी तक कुल 16 दिनों तक पूजा की जाती है. पूजा के दौरान प्रतिदिन बलि चढ़ाई जाती है. वहीं महाष्टमी के बाद नुआखाई की परंपरा है. उस दिन राज परिवार के शादीशुदा पुरुष नदी से नए घड़े में पानी लेकर आते हैं और इन नए घड़े में नया चावल पकाकर आराध्य पाउड़ी देवी को अर्पित किया जाता है.

राजमहल मंदिर में राजा -रानी करते हैं पूजा
सरायकेला राजमहल में जिउतिया अष्टमी से 16 दिनों तक चलने वाले पूजा का आयोजन किया जाता है. इस दौरान राज परिवार के राजा-रानी समेत अन्य सदस्य पूजा में शामिल होते हैं. राज परिवार की सदियों की परंपरा रही है कि 16 दिनों तक दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें राज परिवार के सभी सदस्य पूरे भक्ति भाव के साथ शामिल होते हैं. सरायकेला रियासत के राजा प्रताप आदित्य सिंह देव ने बताया कि पहले राजतंत्र के दौरान विभिन्न राज परिवारों के ओर से मां पाउड़ी मंदिर में पूजा की जाती थी, लेकिन इसे अब केवल सरायकेला राज परिवार है निभा रहा है. जिउतिया अष्टमी से महाअष्टमी तक 16 दिनों की दुर्गा पूजा होती है. महाषष्टि तक यह पूजा राजमहल के अंदर पाउड़ी मंदिर में होती है, जिसके बाद शस्त्र -पूजा के साथ राजमहल के बाहर स्थित दुर्गा मंदिर में आम लोगों के लिए यह पूजा होती है.

पाउड़ी मंदिर में नहीं है बाहरी लोगों के जाने की अनुमति
मां पाउड़ी मंदिर में बाहरी लोगों के जाने की अनुमति नहीं है. इस मंदिर में केवल राजा और रानी ही पूजा करने जाते हैं. साल में एक बार दुर्गा पूजा के दौरान षष्ठी में शस्त्र पूजा को लेकर राज परिवार के लोग मंदिर में जाते हैं. इस मंदिर में केवल स्त्री को साड़ी पहनकर, जबकि पुरुष केवल धोती और गमछा पहनकर ही प्रवेश पा सकते हैं. 16 दिनों तक मां पाउड़ी मंदिर में आयोजित होने वाले दुर्गा पूजा का खास महत्व है, आज भी यहां वर्षों से चले आ रहे पौराणिक परंपरा का पूरे तन्मयता के साथ निर्वहन की जा रही है.

21वीं सदी में भी है राजपरिवार की परंपरा
सरायकेला जिले के राजमहल में आयोजित होने वाली दुर्गा पूजा कई मायनों में खास है. एक तो यह दुर्गा पूजा 16 दिनों तक आयोजित की जाती है, जबकि आज एक 21वीं सदी में भी यहां राजतंत्र के समय से ही चली आ रही तांत्रिक परंपरा और बलि प्रथा को कायम रखा गया है, हालांकि बदलते वक्त और दौर में केवल परंपरा निर्वहन को लेकर बलि की प्रथा आयोजित की जाती है. बताया जाता है कि राजतंत्र के समय में भी राजमहल में आयोजित होने वाले इस दुर्गा पूजा में आम जनता की भागीदारी को लेकर राजा आम जनता से लगान लेकर राजमहल में आयोजित होने वाले पूजा में इसे लगाते थे, ताकि राज परिवार के साथ-साथ आम जनता भी पूजा में अपनी भागीदारी निभाए.


राजघराने की बेटी हेमप्रभा ने कराया था मंदिर का निर्माण
सरायकेला राजघराने की बेटी हेमप्रभा देवी की शादी पटियाला के राजघराने में हुई थी. हेमप्रभा देवी ने राजमहल से बाहर सार्वजनिक मंदिर का निर्माण कराया था. वर्षों तक जनसहयोग से यहां दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता रहा है. वक्त बीतने के साथ श्रद्धालुओं ने नव मंदिर निर्माण का संकल्प लिया और आज जन सहयोग से यहां विभिन्न कलाकृतियों के साज-सज्जा के साथ मां दुर्गा का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो चुका है.

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