सरायकेला: जिले के आदित्यपुर नगर निगम क्षेत्र में दिण्डली बस्ती में 1818 ईस्वी से लगातार ग्रामीण चड़क पूजा का आयोजन करते आए हैं. 203 साल से यह परंपरा जारी है. हालांकि 2 वर्ष से कोरोना संक्रमण की वजह से पूजा और मेले की भव्यता प्रभावित हुई है. ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार और मंगलवार को गांव को सुरक्षित रखने के लिए की जानी वाली इस पूजा में ग्रामीण कोरोना के प्रकोप को कम करने के लिए प्रार्थना करेंगे.
सन 1818 ईस्वी से ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार और मंगलवार को प्रतिवर्ष सरायकेला में चड़क पूजा का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष का पहला सोमवार 14 जून को और पहला मंगलवार 15 जून को पड़ रहा है. स्थानीय ग्रामीण चड़क पूजा के बाद ही अपने खेती और गृहस्थी के कार्य की शुरुआत करते हैं. वर्षों से चली आ रही है परंपरा में ग्रामीण भक्तों की गहरी आस्था है और मान्यता है कि इस पूजा के दौरान भक्त भगवान शिव से जो भी मुराद मांगते हैं, वह जरूर पूरी होती है.
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मन्नत पूरी होने पर भक्त इसलिए चुभवाते हैं सुई श्रद्धालुओं के मुताबिक चड़क पूजा मेले में जिन भक्तों की मन्नत पूरी होती है, वह अगले साल पूजा में शामिल होकर अपने शरीर में लोहे की सुई चुभाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं. इस प्रक्रिया को रजनी फोड़ा कहा जाता है. कहते हैं कि भक्त अपने शरीर में लोहे की सुई आसानी से चुभवा लेते हैं और उन्हें कोई दर्द तक नहीं होता. हालांकि विगत 2 साल से कोरोना प्रकोप के कारण यहां कोई आयोजन नहीं हो रहा और केवल परंपरा के चलते पूजा पाठ किया जा रहा है.पूजा में 13 किस्म के फल-फूल की जरूरत
दिंडली बस्ती के श्रद्धालुओं ने बताया की चड़क पूजा में 13 किस्म के फल-फूल की जरूरत होती है. जिस पर आने वाले खर्च को ग्रामीण मिल जुलकर उठाते हैं. इसके लिए चंदा एकत्र कर उससे सामान जुटाकर मंदिर पहुंचते हैं और पूजा होती है.