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शहीद सिदो-कान्हू के बलिदान को आज भी याद करते हैं लोग, 'हूल क्रांति' के महानायक थे दोनों भाई - हूल क्रांति के महानायक

हूल क्रांति के महानायक शहीद सिदो-कान्हू के बलिदान को लोग आज भी याद करते हैं. जिन्होंने अंग्रेजों को पानी पिला दिया था. पचकठिया क्रांति स्थल पर दोनों भाईयों को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया था.

sidho and kanho, सिदो-कान्हू
सिदो-कान्हू की प्रतिमा
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Published : Jan 26, 2020, 10:13 AM IST

Updated : Jan 26, 2020, 10:53 AM IST

साहिबगंज: आजादी के दीवाने हूल क्रांति के महानायक शहीद सिदो-कान्हू के बलिदान को लोग आज भी याद करते हैं. जिन्होंने अंग्रेजों को पानी पिला दिया था. पचकठिया क्रांति स्थल पर दोनों भाईयों को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया था. जिले के बरहेट प्रखंड के जन्म स्थल भोगनाडीह गांव से लगभग दस हजार संथालों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था.

देखें पूरी खबर

अंग्रेजों के खिलाफ फूंका था बिगुल
शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव यह चार भाई थे, जिन्होंने1855 में पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था. वे अपने पारंपरिक हथियार से लड़ते रहे, चांद-भैरव को अंग्रेजों ने गोली मार दी थी और सिदो-कान्हू को पकड़कर बरहेट प्रखंड के पचकठिया में पेड़ के नीचे सरेआम फांसी दे दी गई थी. इस जगह को लोग आज क्रांति स्थल के नाम से जानते हैं. इतिहासकारों का कहना है कि अंग्रेजी लड़ाके संथाल से लड़ रहे इनको खुश करने के लिए संथाल परगना के नाम से प्रमंडल घोषित कर दिया जो पहले दामिनी-ई-कोह के नाम से जाना जाता था.

ये भी पढ़ें- दुमकाः पुलिस लाइन मैदान में सीएम हेमंत सोरेन ने फहराया तिरंगा, ली परेड की सलामी

इनके गांव को मॉडल बनाने का प्रयास
पहाड़िया कल्याण अधिकारी ने कहा कि बरहेट के भोगनाडीह में शहीद ग्राम विकास योजना के तहत इन शहीदों के गांव में सभी को पक्का मकान बनाया जा रहा है. इसके साथ ही मूलभूत सुविधा की व्यवस्था की जा रही है. शहीद ग्राम विकास योजना के तहत इन शहीदों का गांव को मॉडल बनाने का प्रयास किया जा रहा है. निश्चित रूप से1855 में सिदो-कान्हू ने पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था. इन दोनों भाई को हुल क्रांति का महानायक कहा जाता है.

साहिबगंज: आजादी के दीवाने हूल क्रांति के महानायक शहीद सिदो-कान्हू के बलिदान को लोग आज भी याद करते हैं. जिन्होंने अंग्रेजों को पानी पिला दिया था. पचकठिया क्रांति स्थल पर दोनों भाईयों को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया था. जिले के बरहेट प्रखंड के जन्म स्थल भोगनाडीह गांव से लगभग दस हजार संथालों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था.

देखें पूरी खबर

अंग्रेजों के खिलाफ फूंका था बिगुल
शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव यह चार भाई थे, जिन्होंने1855 में पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था. वे अपने पारंपरिक हथियार से लड़ते रहे, चांद-भैरव को अंग्रेजों ने गोली मार दी थी और सिदो-कान्हू को पकड़कर बरहेट प्रखंड के पचकठिया में पेड़ के नीचे सरेआम फांसी दे दी गई थी. इस जगह को लोग आज क्रांति स्थल के नाम से जानते हैं. इतिहासकारों का कहना है कि अंग्रेजी लड़ाके संथाल से लड़ रहे इनको खुश करने के लिए संथाल परगना के नाम से प्रमंडल घोषित कर दिया जो पहले दामिनी-ई-कोह के नाम से जाना जाता था.

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इनके गांव को मॉडल बनाने का प्रयास
पहाड़िया कल्याण अधिकारी ने कहा कि बरहेट के भोगनाडीह में शहीद ग्राम विकास योजना के तहत इन शहीदों के गांव में सभी को पक्का मकान बनाया जा रहा है. इसके साथ ही मूलभूत सुविधा की व्यवस्था की जा रही है. शहीद ग्राम विकास योजना के तहत इन शहीदों का गांव को मॉडल बनाने का प्रयास किया जा रहा है. निश्चित रूप से1855 में सिदो-कान्हू ने पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था. इन दोनों भाई को हुल क्रांति का महानायक कहा जाता है.

Intro:हुल का महानायक शाहिद सिदो कान्हू के बलिदान को लोग आज भी याद करते है। अंग्रेजो को पानी पिला दिया था। पचकठिया क्रांति स्थल पर दोनों भाई को सरेआम फांसी पर लटका दिया था।
आजादी के दीवाने हुल क्रांति का महानायक सिद्धू कान्हू के बलिदान को आज भी लोग याद करते हैं। किस तरह अंग्रेजों को पानी पिला दिया था ।जिला के बरहेट प्रखंड के जन्म स्थल भोगनाडीह गांव से लगभग दस हजार संथालों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था।



Body:हुल का महानायक शाहिद सिदो कान्हू के बलिदान को लोग आज भी याद करते है। अंग्रेजो को पानी पिला दिया था। पचकठिया क्रांति स्थल पर दोनों भाई को सरेआम फांसी पर लटका दिया था।
स्टोरी-साहिबगंज-- आजादी के दीवाने हुल क्रांति का महानायक सिद्धू कान्हू के बलिदान को आज भी लोग याद करते हैं। किस तरह अंग्रेजों को पानी पिला दिया था ।जिला के बरहेट प्रखंड के जन्म स्थल भोगनाडीह गांव से लगभग दस हजार संथालों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था।
शहीद सिद्धू ,कान्हू ,चांद, भैरव यह चार भाई थे जो 1855 में पहली बार अंग्रेजो के खिलाफ बिगुल फूंका था ।अपनी पारंपरिक हथियार से लड़ने रहे थे। चांद भैरव को अंग्रेजों ने गोली मार दिया था और सिदो कान्हू को पकड़कर बरहेट प्रखंड के पचकठिया में पेड़ के नीचे सरेआम फाँसी दिया था जो आज भी स्थान और पेड़ है जिसे क्रांति स्थल के नाम से जाना जाता है।
इतिहासकार का कहना है कि अंग्रेजी लड़ाकू संथाल से लड़ रही सके तो इनको खुश करने के लिए संथाल परगना के नाम से प्रमंडल घोषित कर दिया जो पहले दामिनी ई कोह के नाम से जाना जाता है आज भी पुराने रशीद या खतियान में दामिनी ई कोह के नाम से लिखा हुआ मिलता है ।इनके बलिदान को हम कभी भुला नहीं सकते।
बाइट- कमल महावर,इतिहासकार, (डबल लोगो वाला)
पहाड़िया कल्याण अधिकारी ने कहा कि बरहेट के भोगनाडीह में शहीद ग्राम विकास योजना के तहत इन शहीदों के गांव में सभी को पक्का मकान बनाया जा रहा है साथ ही मूलभूत सुविधा की व्यवस्था की जा रही है ।शहीद ग्राम विकास योजना के तहत इन शहीदों का गांव को मॉडल बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
बाइट-- चंद्र शेखर प्रसाद,परियोजना निर्देशक, ITDA-- साहिबगंज



Conclusion:निश्चित रूप से 1855 में सिधु कान्हू ने पहली बार अंग्रेजो के खिलाफ बिगुल फूंका था। इन दोनों भाई को हुल क्रांति का महानायक कहा जाता है।
Last Updated : Jan 26, 2020, 10:53 AM IST
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