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जिन्होंने कर दिया था अंग्रेजों का जीना मुहाल, पढ़ें ऐसे वीर शहीद सिद्धो-कान्हू की अमर गाथा - देश की आजादी

इतिहासकारों का कहना है कि अंग्रेजों के खिलाफ देश की आजादी में सबसे पहले वीर शहीद सिद्धो कान्हू ने बिगुल फूंका था. हालांकि इतिहासकारों ने इनकी वीरता का जिक्र इतिहास में ठीक तरह से नहीं किया है. जबकि सिद्धो कान्हू के पूरे परिवार ने आजादी की लड़ाई में साथ दिया.

वीर शहीद सिद्धो कान्हू
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Published : Aug 14, 2019, 1:04 PM IST

साहिबगंज: देश की आजादी में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सबसे पहले 1855 में सिद्धो कान्हो ने बिगुल फूंका था. संथाल परगना की धरती से यह आंदोलन साहिबगंज के बरहेट प्रखंड के भोगनाडीह गांव से शुरू हुआ था. भोगनडीह अमर शहीद सिद्धो कान्हू की जन्म स्थली है. अमर शहीद सिद्धो कान्हू ने 10 हजार आदिवासी और गैर आदिवासी के सहयोग से अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी. इन लोगों ने अपने पारंपरिक अस्त्र शस्त्र से ही युद्ध किया और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए.

वीडियो में देखें स्पेशल स्टोरी

अंग्रेज संथाल परगना के आदिवासी और गैर आदिवासी का शोषण कर रहे थे. वो आदिवासियों से लगान अधिक वसूलने लगे थे. आदिवसियों को लगान नहीं देने पर कोरे कागज पर अंगूठा लेकर जमीन अपने नाम कर लेते थे. इस तरह दोनों भाईयों ने संथाल परगना को ब्रिटिश सरकार से मुक्त करने के लिए अभियान छेड़ा और अंतिम सांस तक लड़े. उन्होंने अंग्रेजों को संथाल परगना छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन किसी अपने ने धोखा देकर दोनों भाईयों को पकड़वा दिया. बरहेट प्रखंड के पंचकठिया में दोनों भाइयों को फांसी दी गई. आज उस जगह को क्रांति स्थल के नाम जाना जाता है.

इतिहासकारों का कहना है कि अंग्रेजों के खिलाफ देश की आजादी में सबसे पहले सिद्धो कान्हू ने बिगुल फूंका था. हालांकि इतिहासकारों ने इनकी वीरता का जिक्र इतिहास में ठीक तरह से नहीं किया है. जबकि सिद्धो कान्हू के पूरे परिवार ने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया. इतिहासकारों का कहना है कि आज हम पढ़े लिखे हैं, जागरूक हैं, अपने अधिकार के लिए लड़ते हैं या किसी जुलूस में भाग ले सकते हैं, लेकिन आज हमारा परिवार भीड़ में भाग लेने से कतराता है. उनको डर सताता है कि हमारी जान चली जाएगी.

कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि सिद्धो कान्हू ने अंग्रेजों का जीना मुहाल कर दिया था. अंग्रेजों ने संथालवासियों को खुश करने के लिए संथाल परगना नाम से प्रमंडल घोषित कर दिया. जबकि संथाल परगना का पुराना नाम दामिन ईकोह था. अंग्रेजों ने संथालों को खुश करने के लिए एसपीटी, सीएनटी एक्ट का भी प्रावधान किया, जिससे संथाली उग्र न हो. अंग्रेजों का मानना था संथाल समुदाय के लोगों से जीतना नामुमकिन है, इसलिए उन्हें खुश करके ही शांत किया जा सकता है.

शहीद सिद्धो कान्हू के वंशज का कहना है कि शहीद ग्राम विकास योजना के तहत सभी परिवारों का पक्का घर बन गया है. सभी परिवारों को गैस चूल्हा भी मिल गया है. अब खाना पकाने में आराम है. भोगनाडीह गांव में बिजली भी पहुंच गई है. इसके साथ ही कुछ लोगों को सरकारी नौकरी मिली है. वहीं, उपायुक्त ने कहा कि आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. अब संथाल समाज को गाय मुहैया कराई जा रही है, जिससे जीविका का साधन भी बने और लोग स्वस्थ भी रहें.

साहिबगंज: देश की आजादी में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सबसे पहले 1855 में सिद्धो कान्हो ने बिगुल फूंका था. संथाल परगना की धरती से यह आंदोलन साहिबगंज के बरहेट प्रखंड के भोगनाडीह गांव से शुरू हुआ था. भोगनडीह अमर शहीद सिद्धो कान्हू की जन्म स्थली है. अमर शहीद सिद्धो कान्हू ने 10 हजार आदिवासी और गैर आदिवासी के सहयोग से अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी. इन लोगों ने अपने पारंपरिक अस्त्र शस्त्र से ही युद्ध किया और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए.

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अंग्रेज संथाल परगना के आदिवासी और गैर आदिवासी का शोषण कर रहे थे. वो आदिवासियों से लगान अधिक वसूलने लगे थे. आदिवसियों को लगान नहीं देने पर कोरे कागज पर अंगूठा लेकर जमीन अपने नाम कर लेते थे. इस तरह दोनों भाईयों ने संथाल परगना को ब्रिटिश सरकार से मुक्त करने के लिए अभियान छेड़ा और अंतिम सांस तक लड़े. उन्होंने अंग्रेजों को संथाल परगना छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन किसी अपने ने धोखा देकर दोनों भाईयों को पकड़वा दिया. बरहेट प्रखंड के पंचकठिया में दोनों भाइयों को फांसी दी गई. आज उस जगह को क्रांति स्थल के नाम जाना जाता है.

इतिहासकारों का कहना है कि अंग्रेजों के खिलाफ देश की आजादी में सबसे पहले सिद्धो कान्हू ने बिगुल फूंका था. हालांकि इतिहासकारों ने इनकी वीरता का जिक्र इतिहास में ठीक तरह से नहीं किया है. जबकि सिद्धो कान्हू के पूरे परिवार ने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया. इतिहासकारों का कहना है कि आज हम पढ़े लिखे हैं, जागरूक हैं, अपने अधिकार के लिए लड़ते हैं या किसी जुलूस में भाग ले सकते हैं, लेकिन आज हमारा परिवार भीड़ में भाग लेने से कतराता है. उनको डर सताता है कि हमारी जान चली जाएगी.

कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि सिद्धो कान्हू ने अंग्रेजों का जीना मुहाल कर दिया था. अंग्रेजों ने संथालवासियों को खुश करने के लिए संथाल परगना नाम से प्रमंडल घोषित कर दिया. जबकि संथाल परगना का पुराना नाम दामिन ईकोह था. अंग्रेजों ने संथालों को खुश करने के लिए एसपीटी, सीएनटी एक्ट का भी प्रावधान किया, जिससे संथाली उग्र न हो. अंग्रेजों का मानना था संथाल समुदाय के लोगों से जीतना नामुमकिन है, इसलिए उन्हें खुश करके ही शांत किया जा सकता है.

शहीद सिद्धो कान्हू के वंशज का कहना है कि शहीद ग्राम विकास योजना के तहत सभी परिवारों का पक्का घर बन गया है. सभी परिवारों को गैस चूल्हा भी मिल गया है. अब खाना पकाने में आराम है. भोगनाडीह गांव में बिजली भी पहुंच गई है. इसके साथ ही कुछ लोगों को सरकारी नौकरी मिली है. वहीं, उपायुक्त ने कहा कि आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. अब संथाल समाज को गाय मुहैया कराई जा रही है, जिससे जीविका का साधन भी बने और लोग स्वस्थ भी रहें.

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